"कल्प (वेदांग)": अवतरणों में अंतर
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'''कल्प''' [[वेद]] के छह अंगों (वेदांगों) में एक है जो कर्मकाण्डों का विवरण देता है। अन्य [[वेदांग]] हैं- [[शिक्षा]] (प्रातिशाख्यादि), [[व्याकरण]], [[निरुक्त]], [[छन्दशास्त्र|छंदशास्त्र]] और [[ज्योतिष]]। अनेक वैदिक ऐतिहासिकों के मत से कल्पग्रंथ या कल्पसूत्र षट् वेदांगों में प्राचीनतम और [[वैदिक साहित्य]] के अधिक निकट हैं। षट् वेदांगों में कल्प का विशिष्ट महत्व है - क्योंकि जन्म, उपनयन, विवाह, अंत्येष्टि और यज्ञ जैसे विषय इसमें विहित हैं।
== परिचय ==
वेद और वेदांग की भारतीय इतिहास में बड़ी चर्चा है। [[संहिता]] (मंत्र संहिता), [[ब्राह्मण]], [[आरण्यक]] और [[
कल्प का तात्पर्य है - 'वेद (संहिता, ब्राह्मण, आरण्यकादि) विहित कर्मो, अनुष्ठानों का क्रमपूर्वक कल्पना करनेवाला शास्त्र या ग्रंथ'।
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== कल्पसूत्रों का प्रतिपाद्य विषय ==
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वैदिक ज्ञान, कर्म और परंपरा की जो धारा दुर्बोध्य या अबोध्य हो रही थी उस परंपरा को सुरक्षित रखने एवं नवोद्भव ज्ञानादि के साथ उनका सामंजस्य बैठाने में इन वैदिक कल्पसूत्रों का बड़ा योगदान रहा है। आगे धार्मिक [[स्मृति]]यों ने उसी दिशा में बहुत कुछ कार्य किया। वैदिक शाखाओं के अनुयायी तपोवन आश्रमवासी ऋषि आचार्यों के आश्रमों में ही इन कल्पसूत्रों का निर्माण हुआ। इनमें वैदिक आर्यों के पुरायुगीन पारिवारिक, धार्मिक याज्ञिक एवं सामजिक जीवन में उन कर्मधर्मादि का निरूपण किया गया जिसके कारण आज भी पूर्ववैदिकयुगीन आर्यों की जीवनचर्या, समाज एवं आचारविचार की गतिविधि का हमें ज्ञान हो पाता है।
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इन कल्पसूत्रों का प्रधान प्रतिपाद्य विषय है संस्कारों, यज्ञों और वर्णाश्रम धर्मों की व्याख्या, विधिविधान तथा अनुष्ठानचर्या। इन्हीं के आधार पर कल्पसूत्रों का तीन मुख्य वर्गो में विभाजन किया गया है–
* (१) [[श्रौतसूत्र]],
* (२) [[स्मार्त सूत्र|गृह्यसूत्र]] और
* (३) [[धर्मसूत्र]]
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=== धर्मसूत्र ===
धर्मसूत्रों में सामाजिक आचार-विचार तथा वर्णों एवं आश्रमों से संबद्ध धर्मकर्माचारों के विषय में विधिनिषेधों तथा कर्तव्याकर्तव्यों का वैदिककालीन स्वरूप वर्णित है। राजधर्म, शासनव्यवस्था, राजा-प्रजा-धर्म-धर्म आदि का भी वर्णन यहाँ मिल जाता है। [[दण्ड|दंड]] आदि के विधान भी यहाँ वर्णित हैं। आचार विषयक नियमों से इनका संबंध था और वर्णाश्रमाचार तथा सामाजिक आचरण के लिए धर्मसूत्रों को प्रमाण माना जाता था। धर्मसूत्रों का गृह्यसूत्रों के वर्ण्य विषय से वर्णधर्मों एवं आश्रमधर्मों के संदर्भ में निकटता भी लक्षित होती है। इनमें संस्कारों की चर्चा यद्यपि यत्रतत्र ही हुई है तथापि वर्णाश्रमाचार संबंधी विधिनिषेधों का निरूपण इनका मुख्य लक्ष्य था। अनेक धर्मसूत्र ग्रंथ आज भी उपलब्ध हैं और उनमें भी अधिकांश प्रकाशित हैं। विभिन्न धर्मसूत्रों के साथ वेदशाखाओं के धर्मसूत्रों का [[कुमारिल भट्ट]] के [[तंत्रवार्तिक]] में उल्लेख मिलता है।
=== शुल्बसूत्र ===
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* [[धर्मसूत्र]]
* [[श्रौतसूत्र]]
* [[स्मार्त सूत्र|गृह्यसूत्र]]
* [[शुल्बसूत्र]]
* [[कल्पसूत्र (जैन)]] - [[जैन धर्म|जैन]] धर्मग्रन्थ
* [[स्मार्त सूत्र]]
* [[मीमांसा दर्शन|मीमांसा]]
[[श्रेणी:वेद]]
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