"आर्थिक विकास": अवतरणों में अंतर
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नव औद्योगिक देश|नए औद्योगिक देश]]। इनमें से कई 1997 के [[एशियाई आर्थिक संकट]] की चपेट में आ गए थे।]]
देशों, क्षेत्रों या व्यक्तिओं की आर्थिक समृद्धि के वृद्धि को '''आर्थिक विकास''' कहते हैं। नीति निर्माण की दृष्टि से आर्थिक विकास उन सभी प्रयत्नों को कहते हैं जिनका लक्ष्य किसी जन-समुदाय की आर्थिक स्थिति व जीवन-स्तर के सुधार के लिये अपनाये जाते हैं।
वर्तमान युग की सबसे महत्वपूर्ण समस्या 'आर्थिक विकास' की समस्या है। आर्थिक स्वतन्त्रता के बिना राजनैतिक स्वतन्त्रता का कोई महत्व (उपयोग) नहीं है। विकास और उससे जुड़े हुए tha के इस महत्व के कारण ही अर्थशास्त्र]के क्षेत्र में [विकास-अर्थशास्त्र]नामक एक अलग विषय का ही उदय हो गया। किन्तु पिछले कुछ वर्षों से विकास-अर्थशास्त्र के एक स्वतंत्र विषय के रूप में अस्तित्व पर प्रश्न चिह्न-सा उभरता दिखाई दे रहा है। कई अर्थशास्त्री हैं जो "विकास-अर्थशास्त्र" नामक अलग विषय की आवश्यकता से ही इनकार करने लगे हैं, इनमें प्रमुख हैं- स्लट्ज, हैबरलर, बार, लिटिल, वाल्टर्स आदि। अर्थशास्त्रियों का एक वर्ग "विकास-अर्थशास्त्र" को ही समाप्त कर देने की मांग करने लगा है।कुछ अर्थशास्त्रियों ने 'आर्थिक विकास' (इकनॉमिक डेवलपमेन्ट), 'आर्थिक प्रगति' (इकनॉमिक ग्रोथ) और दीर्घकालीन परिवर्तन (सेक्युलर डेवलपमेन्ट) की अलग-अलग परिभाषाएँ की हैं। किन्तु मायर और बोल्डविन ने इन तीनों श्ब्द-समूहों का एक ही अर्थ में प्रयोग किया है तथा अलग-अलग अर्थ निकालने को 'बाल की खाल निकालना' कहा है। उनके अनुसार आर्थिक विकास एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा किसी अर्थव्यवस्था की [[सकल राष्ट्रीय आय|वास्तविक राष्ट्रीय आय]] में दीर्घकालिक वृद्धि होती है
== विकास का अर्थ एवं माप ==
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==== प्रति व्यक्ति जी.डी.पी.====
अधिकांश अर्थशास्त्री प्रति व्यक्ति वास्तविक जी.डी.पी. में वृद्धि को ही विकास का सर्वोत्तम, व्यावहारिक एवं सुविधाजनक मापदंड मानते हैं। किंडलबर्जर, मेयर, हिगीन्स, हार्वे लेबेन्स्टीन, डब्ल्यू.ए. लेविस, जेकब वाइनर आदि अर्थशास्त्री इसी मत के हैं। [[संयुक्त राष्ट्र|संयुक्त राष्ट्र संघ]] ने भी इसी माप को स्वीकार किया है। प्रति व्यक्ति जी.डी.पी. को विकास का मापदंड स्वीकार कर लेने पर [[जनसंख्या]] की वृद्धि के प्रभाव का भी विचार हो जाता है, क्योंकि कुल जी.डी.पी. में कुल जनसंख्या का भाग देने पर ही प्रति व्यक्ति जी.डी.पी. की गणना होती है। किन्तु विकास के मापदंड के रूप में प्रति व्यक्ति जी.डी.पी. भी अधूरा मापदंड है और इसके भी कई दोष हैं। इनमें से प्रमुख हैं-
*(क) यदि किसी देश की जी.डी.पी. और जनसंख्या में समान दर से वृद्धि हो तब भी हमें यह कहना पड़ेगा कि उस देश का विकास नहीं हुआ है। इसी प्रकार यदि किसी कारण से किसी देश की जनसंख्या घट जाए किन्तु जी.डी.पी. स्थिर रहे तो कहना पड़ेगा कि उस देश का विकास हुआ है।
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*(घ) प्रति व्यक्ति वास्तविक जी.डी.पी. में वृद्धि होने पर भी यह संभव है कि देश में गरीबी की रेखा के नीचे गुजर करने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि हो जाए।
सार रूप में, [[सकल घरेलू उत्पाद|जी.डी.पी.]] एवं [[प्रति व्यक्ति आय|प्रति व्यक्ति जी.डी.पी.]] को विकास के मापदंड रूप में स्वीकार किए जाने के कुछ दोष हैं जो निम्नलिखित हैं-
*(क) जी.डी.पी. की अभी तक कोई सर्वमान्य परिभाषा नहीं बन सकी है। इसकी गणना में क्या शामिल किया जाए और क्या नहीं- अभी तक इस प्रश्न का कोई संतोषजनक हल नहीं निकल पाया है।
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*(ख) विभिन्न देशों की जी.डी.पी. की गणना करते समय अमौद्रिक क्षेत्र की बहुत-सी वस्तुएं गणना से छूट जाती है। स्व-उपभोग तथा बाजार में विनिमय के लिए न लाई जाने वाली वस्तुओं व सेवाओं की राष्ट्रीय आय में ठीक से गणना नहीं हो पाती। उदाहरण के लिए, [[भारत]] जैसे देशों के गांवों में आज भी बहुत सारा लेन-देन मुद्रा के बिना ही होता है। किसान अनाज के बदले कपड़ा, बर्तन, लकड़ी का सामान व अन्य सेवाएं प्राप्त कर लेता है। इसी तरह किसान अपनी उपज का एक बड़ा भाग स्व-उपभोग के लिए भी रख लेते हैं। ये सब वस्तुएं बाजार में बिक्री के लिए प्रस्तुत ही नहीं की जाती। इसी प्रकार अवैतनिक सेवाओं की गणना भी राष्ट्रीय आय में नहीं हो पाती। उदाहरण के लिए: खाना बनाने, कपड़ा धोने, सफाई करने आदि का काम जब कोई नौकरानी वेतन लेकर करती है, तब तो ये सेवाएं राष्ट्रीय आय का अंग बन जाती हैं। किन्तु यही सेवाएं गृहणियों द्वारा की जाने पर वे राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं हो पाती।
*(ग) विभिन्न देशों की जी.डी.पी. की गणना उन देशों की मुद्रा में होती है। अत: विभिन्न देशों की जी.डी.पी. की तुलना करते समय उन्हें किसी एक मुद्रा में व्यक्त करना पड़ता है और इसके लिए [[विदेशी मुद्रा बाज़ार|विदेशी विनिमय दर]] का सहारा लिया जाता है। किन्तु कोई भी विदेशी विनिमय दर यह काम ठीक से नहीं कर पाती।
*(घ) अल्पविकसित देशों में जी.डी.पी. के आंकड़े अपर्याप्त, अपूर्ण एवं अविश्वसनीय होते हैं। अत: ऐसे आंकड़ों के आधार पर विकास का सही माप हो ही नहीं सकता।
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==== आर्थिक कल्याण ====
कुछ विद्वानों के अनुसार [[समाज कल्याण|आर्थिक कल्याण]] ही आर्थिक विकास का सर्वोत्तम मापदंड हो सकता है। आर्थिक कल्याण का विचार करते समय हम केवल यह नहीं देखेंगे कि क्या और कितना उत्पादन किया जा रहा है, बल्कि इसके अंतर्गत यह भी देखेंगे कि यह किस प्रकार पैदा किया जा रहा है और इसका बंटवारा किस प्रकार हो रहा है। आर्थिक कल्याण में यह भी ध्यान में रखना होगा कि देश में जिन-जिन वस्तुओं का उत्पादन किया जा रहा है उनका तुलनात्मक महत्व कितना है? इस प्रकार इसमें हमें मूल्यात्मक निर्णय (वेल्यू जजमेंट) लेने होंगे। इसी तरह उत्पादन की सामाजिक लागत का भी विचार करना होगा। यद्यपि आर्थिक कल्याण का मापदंड विकास का अधिक उपयुक्त मापदंड है किन्तु फिर भी अभी तक अर्थशास्त्रियों ने इसका व्यवहार में प्रयोग नहीं किया है। इसका कारण उन्होंने यह बताया है कि मूल्यात्मक निर्णयों, न्यायपूर्ण वितरण, सामाजिक लागत आदि ऐसी बातें हैं जिनकी व्यवहार में गणना करना बहुत कठिन है, अत: आर्थिक कल्याण को अव्यावहारिक मानकर छोड़ दिया गया है।
==== समायोजित सकल राष्ट्रीय उत्पाद माप ====
विभिन्न देशों के बीच तुलनात्मक अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से कुछ अर्थशास्त्रियों ने [[समायोजित सकल राष्ट्रीय उत्पाद]] को विकास के मापदंड के रूप में स्वीकार करने का सुझाव दिया है। इस माप के माध्यम से [[सकल राष्ट्रीय आय|राष्ट्रीय आय]] के लेखों को समायोजित करने के लिए [[क्रय-शक्ति समता|क्रयशक्ति समता]] () की अवधारणा का प्रयोग किया जाता है। किन्तु इस मापदंड में भी राष्ट्रीय आय के माप की सभी सीमाएं तो हैं ही, उसके अलावा राष्ट्रीय आय का समायोजन करना ही कोई सरल काम नहीं है, उसकी अपनी कठिनाइयां व सीमाएं हैं।
==== अन्य मापदण्ड ====
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* प्रति पुरुष कृषि-श्रमिक कृषि उत्पादन
* कृषि में वयस्क पुरुष श्रमिकों का प्रतिशत
* प्रति व्यक्ति कितने [[वॉट|किलोवाट]] बिजली उपभोग होता है
* प्रति व्यक्ति कितने किलोग्राम स्टील उपभोग होता है
* प्रति व्यक्ति [[ऊर्जा]] उपभोग
* विनिर्माण कार्यों से प्राप्त सकल घरेलू उत्पाद (प्रतिशत में)
* प्रति व्यक्ति [[अंतर्राष्ट्रीय व्यापार|विदेशी व्यापार]]
* आर्थिक दृष्टि से सक्रिय कुल जनसंख्या में वेतन एवं मजदूरी पर कार्य करने वालों का प्रतिशत।
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