"टामस हाब्स": अवतरणों में अंतर

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टामस हाव्स का जन्म [[माम्सबरी]] में हुआ था। ९१ वर्ष की इस दीर्घायु में हाब्स ने अनेक सामाजिक राजनीतिक विप्लव और परिवर्तन देखे-मध्यमवर्ग का उत्थान, स्टुअर्ट राजाओं ओर पार्लमेंट का संघर्ष, चार्ल्स प्रथम की फाँसी, क्रामवेल का शासन तथा रेस्टोरेशन, अपनी सहज भीरुता के कारण हाब्स शांति और सुरक्षा को अत्यधिक महत्व देता था। इंग्लैड के गृहयुद्ध ने उसके इस विचार को और भी दृढ़ कर दिया कि पारस्परिक कलह और युद्ध सभ्य जीवन के लिये घातक है। यद्यपि पार्लमेंट और राजा के झगड़े में हाब्स ने राजा का पक्ष लिया, तथापि उसके तर्क ऐसी किसी भी सत्ता का समर्थन करते हैं जो शांति एवं व्यवस्था स्थापित कर सके।
 
हाब्स का दर्शन [[गैलीलियो गैलिली|गैलीलियो]], [[योहानेस केप्लर|केप्लर]], [[रेने देकार्त|डेकार्ट]] तथा गैसेंडी जैसे वैज्ञानिकों की धारणाओं से अनुप्राणित है। कहा जाता है कि संपूर्ण मानवज्ञान को एक सूत्र में बाँधकर वैज्ञानिक आधारशिला पर प्रतिष्ठत करना ही उसका उद्देश्य था। किंतु हाब्स के दर्शन और तत्कालीन विज्ञान में वास्तविक संबंध क्या है, यह विवादास्पद है। लिओ स्ट्राउस का मत है कि यद्यपि हाब्स का चिंतन वैज्ञानिक रूप में प्रस्तुत किया गया है, तथापि उसका स्रोत क्लैसिकल मानववाद है, न कि आधुनिक भौतिकवाद। गैलीलियो और केप्लर की खोज के पूर्व हाब्स पर थ्यूमीडिडीज तथा अरस्तू का अमिट प्रभाव पड़ चुका था। गाइकेल ओक शॉट के अनुसार हाब्स के दर्शन की मूल प्रेरणा वैज्ञानिक भौतिकवाद नहीं, अपितु दार्शनिक बुद्धिवाद-दर्शन के स्वरूप के विषय में एक विशेष धारणा - है। यह धारणा विज्ञान और दर्शन को मित्र मानती है। हाब्स का दर्शन बुद्धि के दर्पण में प्रतिबिंबित जगत् है। इस दर्पण में देखने से विश्व यंत्रवत् दिखाई देता है चाहे, वह वस्तुत: यंत्र न हो। इसीलिए मानव समाज का बौद्धिक विवेचन भी उसे यंत्रवत् मानकर ही किया जा सकता है।
 
हाब्स प्रधानत: राजनीतिक विचारक है। परन्तु उसका राजशास्त्र उसके सामान्य दर्शन का एक अंग है। इस दर्शन की विशेषता है- [[ज्यामिति]] की [[निगमनात्मक तर्क|निगमनात्मक प्रणाली]]। इस प्रणाली की मान्यता [[बुद्धिवाद]] है। हाब्स का बुद्धिवाद प्लेटो, सेंट टामस तथा स्पिनोजा के बुद्धिवाद से भिन्न है। यह उत्तरमध्ययुगीन नामवादी (nominalist) परंपरा के अंतर्गत है। हाब्स के दर्शन में बुद्धि का स्थान गौण है, प्रधानता इच्छाशक्ति तथा मनोभावों की है। बुद्धि एक कला अथवा साधन है जिसके द्वारा पूर्वनिश्चित प्रतिज्ञाओं से सही निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं। ये प्रतिज्ञाएँ सर्वथा स्वकल्पित होती हैं। अत: दार्शनिक ज्ञान की दूसरी विशेषता है उसका कल्पित (hypothetical) स्वरूप। दर्शन को हाब्स कार्य कारण-ज्ञान कहता है और करण को पूर्ववर्ती गति (antecedent motion) मानता है। सभी ज्ञान गति की विभिन्नता से प्राप्त होता है। इस प्रकार सर्वव्यापी गति ही संपूर्ण मानवज्ञान का सार्वभौम निमित्त कारण है। ज्यामिति का संबंध बिंदुओं और रेखाओं की गति से है, भौतिक जगत् परमाणुओं की गति है; [[मनोविज्ञान]] मानव शरीर के अंतर्गत स्नायुस्पंदन का विवरण है तथा राज्य व्यक्तियों के पारस्परिक आघात प्रतिघात से उत्पन्न संश्लिष्ट गति का परिणाम है। इस प्रकार उपर्युक्त सभी शास्त्र विभिन्न रूपों में एक ही विषय का अध्ययन करते हैं। हाब्स यह स्पष्ट नहीं करता कि भौतिक तथा मानव जगत् की व्याख्या कल्पित प्रमेयों पर आधारित ज्यामिति की निगमनात्मक प्रणाली पर कैसे हो सकती है। उसके राजशास्त्र का उसके यांत्रिक भौतिकवाद और उसके भौतिकवाद का उसके बुद्धिवाद से कोई तार्किक संबंध नहीं स्थापित हो पाता।
 
राज्य को उसके मौलिक तत्वों में विघटित करने पर प्राकृतिक अवस्था प्राप्त होती है। यह अवस्था ऐतिहासिक तथ्य नहीं बल्कि [[अराजकता]] की तार्किक अवधारणा है। बाह्य जगत् में व्याप्त गति के प्रतिघात से मानव शरीर में दो प्रकार की गतियाँ उत्पन्न होती हैं- आकर्षण और विकर्षण। मनोवैज्ञानिक स्तर पर उन्हें इच्छा और विद्वेष कहते हैं। जो वस्तुएँ जीवनरक्षा में सहायक होती हैं, मनुष्य उनके प्रति आकृष्ट होता है और जिनसे जीवन नष्ट होता है उनसे वह पलायन करता है। वांछित वस्तुएँ शुभ कही जाती हैं और अवांछित अशुभ। चूँकि जीवन की रक्षा तथा संवृद्धि करनेवाली वस्तुएँ सीमित है और सभी व्यक्ति अपनी दैहिक तथा मानसिक शक्तियों को मिलाकर लगभग समान हैं, अत: वांछित वस्तुओं की प्राप्ति तथा उसको संचित रखने के लिए प्रतिद्वंद्वित प्रारंभ होती है जो शीघ्र ही गौरव तथा शक्ति के लिए संघर्ष के रूप में परिणत हो जाती है। इस संघर्ष का पर्यवसान केवल मृत्यु में होता है क्योंकि शक्तिलिप्सा अनंत होती है। उसमें विवेक एवं मर्यादा के लिये कोई स्थान नहीं होता। सदैव अतृप्त वासनाओं की तुष्टि में संलग्न, मदांध तथा एक दूसरे के प्रति सशंक व्यक्तियों के निरंतर युद्ध के परिणामस्वरूप प्राकृतिक अवस्था में मानव जीवन एकाकी, तुच्छ, घृणित, पाशविक और क्षणिक हो जाता है। ऐसी परिस्थिति में सभ्यता, संस्कृति तथा व्यवसाय का सर्वथा अभाव रहता है। न्याय अन्याय का प्रश्न ही नहीं उठता। व्यक्ति अपनी जीवनरक्षा के लिए जो कुछ कर सकता है वही उसका प्राकृतिक अधिकार है। प्राकृतिक अधिकार केवल प्राकृतिक शक्ति से ही सीमित होते हैं।
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संविदा के द्वारा प्रत्येक व्यक्ति अपने असीम प्राकृतिक अधिकारों को एक अन्य व्यक्ति, या व्यक्तिसमूह, को स्थानांतरित कर देता है जो सबकी शांति और सुरक्षा के लिए उत्तरदायी होता है। संबिदा का अंग ने होने के कारण यह व्यक्ति, या व्यक्तिसमूह, किसी भी मानवीय कानून से बाध्य नहीं है। वह सभी व्यक्तियों का प्रतिनिधि है। अत: उसका विरोध आत्मविरोध है। उसमें संनिहित संप्रभुता अविभाज्य, असीम अदेय तथा स्थायी है। चर्च तथा अन्य समुदायों का वह एकमात्र स्वामी है। उसके आदेश ही कानून हैं और जहाँ कानून मौन है, वहीं जनता स्वतंत्र है। संप्रभु की आज्ञा की अवहेलना व्यक्ति आत्मरक्षा हेतु ही कर सकता है। संविदा के अतिरिक्त राज्य की स्थापना विजय के द्वारा भी हो सकती है किंतु दोनों में कोई तात्विक अंतर नहीं है।
 
हाब्स आधुनिक राजदर्शन का जन्मदाता कहा जाता है। [[जेरेमी बेन्थम|बेंथम]] के [[उपयोगितावाद]] तथा [[जॉन आस्टिन|आस्टिन]] के [[संप्रभुता सिद्धांत]] (Theory of Sovereignty) पर उसका प्रभाव स्पष्ट है। यद्यपि उसने निरंकुश संप्रभुता का समर्थन किया, तथापि [[व्यक्तिवाद]] उसके दर्शन की आधारशिला है। संप्रभु की असीम अधिकार देते हुए भी व्यक्ति के जीवन में राज्य के अनावश्यक हस्तक्षेप को वह अवांछनीय मानता है। फिर, व्यक्ति की राजभक्ति की आधार है संप्रभु की सुरक्षा तथा शांति प्रदान करने की क्षमता। यदि यह ऐसा नहीं कर सकता, तो जनता दूसरा शासक चुनने के लिए स्वतंत्र है। संप्रभु को राज्य करने का दैवी अधिकार नहीं है।
 
== सन्दर्भ ग्रन्थ ==
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::*ΣΤΙΓΜΑΙ, or Marks of the absurd Geometry etc. of Dr Wallis
::*Extract of a letter from Henry Stubbe
::*Three letters presented to the [[रॉयल सोसायटी|Royal Society]] against Dr Wallis
::*Considerations on the answer of Dr Wallis
::*Letters and other pieces