"पीपाजी": अवतरणों में अंतर

JAY RAJPUTANA
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'''पीपाजी''' (१४वीं-१५वीं शताब्दी) [[गागरौन दुर्ग|गागरोन]] के शाक्त राजा एवं सन्त [[कवि]] थे। वे भक्ति आंदोलन के प्रमुख संतों में से एक थे। [[गुरु ग्रन्थ साहिब|गुरु ग्रंथ साहिब]] के अलावा २७ पद, १५४ साखियां, चितावणि व क-कहारा जोग ग्रंथ इनके द्वारा रचित संत साहित्य की अमूल्य निधियां हैं।
 
==JAY RAJPUTANA ==
भक्तराज पीपाजी का जन्म विक्रम संवत १३८० में [[राजस्थान]] में [[कोटा]] से ४५ मील पूर्व दिशा में [[गागरौन दुर्ग|गागरोन]] में हुआ था।<ref>{{cite web|title=हमारे संत/ पीपा जी |url=http://www.livehindustan.com/news/tayaarinews/tayaarinews/article1-story-67-67-199583.html |publisher= लाइव हिन्दुस्तान |date=७ नवम्बर २०११ |accessdate=२७ जुलाई २०१५ |author=विश्वनाथ सिंह}}</ref> वे चौहान गौत्र की खींची वंश शाखा के प्रतापी राजा थे। सर्वमान्य तथ्यों के आधार पर [[पीपाजी|पीपानन्दाचार्य जी]] का जन्म चैत्र शुक्ल पूर्णिम, बुधवार विक्रम संवत १३८० तदनुसार दिनांक २३ अप्रैल १३२३ को हुआ था। उनके बचपन का नाम प्रतापराव खींची था। उच्च राजसी शिक्षा-दीक्षा के साथ इनकी रुचि आध्यात्म की ओर भी थी, जिसका प्रभाव उनके साहित्य में स्पष्ट दिखाई पड़ता है। किवदंतियों के अनुसार आप अपनी कुलदेवी से प्रत्यक्ष साक्षात्कार करते थे व उनसे बात भी किया करते थे।
 
पिता के देहांत के बाद संवत १४०० में आपका गागरोन के राजा के रूप में राज्याभिषेक हुआ। अपने अल्प राज्यकाल में पीपाराव जी द्वारा फिरोजशाह तुगलक, मलिक जर्दफिरोज व लल्लन पठान जैसे योद्धाओं को पराजित कर अपनी वीरता का लोहा मनवाया। आपकी प्रजाप्रियता व नीतिकुशलता के कारण आज भी आपको गागरोन व मालवा के सबसे प्रिय राजा के रूप में मान सम्मान दिया जाता है।
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== रचना की संभाल ==
[[गुरु नानक|गुरु नानक देव]] जी ने आपकी रचना आपके पोते अनंतदास के पास से टोडा नगर में ही प्राप्त की। इस बात का प्रमाण अनंतदास द्वारा लिखित 'परचई' के पच्चीसवें प्रसंग से भी मिलता है। इस रचना को बाद में [[गुरु अर्जुन देव]] जी ने [[गुरु ग्रन्थ साहिब|गुरु ग्रंथ साहिब]] में जगह दी।
 
== रचना ==
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<b><center>जो ब्रहमंडे सोई पिंडे
जो खोजे सो पावै॥</b></center>
<center>([[गुरु ग्रन्थ साहिब|गुरु ग्रंथ साहिब]], पन्ना ६८५)</center>
<center>(जो प्रभु पूरे ब्रह्माँड में मौजूद है, वह मनुष्य के हृदय में भी विद्यमान है।)</center>
 
<br />'''<center>पीपा प्रणवै परम ततु है, सतिगुरु होए लखावै॥२॥'''</center>
<center>([[गुरु ग्रन्थ साहिब|गुरु ग्रंथ साहिब]], पन्ना ६८५)</center>
<center>(पीपा परम तत्व की आराधना करता है, जिसके दर्शन पूर्ण सतिगुरु द्वारा किये जाते हैं।)</center>