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[[चित्र:मानव शरीर.svg|right|thumb|300px|मानव पुरुष और स्त्री का वाह्य दृष्य]]
[[जीव विज्ञान|जीवविज्ञान]] में '''लिंग''' (Sex, Gender) से तात्पर्य उन पहचानों या लक्षणों से जिनके द्वारा जीवजगत् में नर को मादा से पृथक् पहचाना जाता है। जंतुओं में असंख्य जंतु ऐसे होते हैं जिन्हें केवल बाह्य चिह्नों से ही नर, या मादा नहीं कहा जा सकता। नर तथा मादा का निर्णय दो प्रकार के चिह्नों, प्राथमिक (primary) और गौण (secondary) लैंगिक लक्षणों (sexual characters), द्वारा किया जाता है। वानस्पतिक जगत् में नर तथा मादा का भेद, विकसित प्राणियों की भाँति, पृथक्-पृथक् नहीं पाया जाता। जो की सत्य है।
 
==शब्दार्थ==
आज हिन्दी में लिंग यानि लिंग शब्द का अर्थ [[नर]] [[शिश्न]] से लगाया जाता है लेकिन मूल संस्कृत में इसका अर्थ ''चिह्न'', ''प्रतीक'' अथवा ''लक्षण'' (यानि पहचान) के अर्थ में है। [[कणाद]] मुनि कृत [[वैशेषिक दर्शन|वैशेषिक]] दर्शन ग्रंथ में यह शब्द कई बार आता है।
 
== लिंग का विकास ==
[[जनन]] का इतिहास देखा जाए तो ज्ञात होगा कि संसार के आदि जीवों की उत्पत्ति अलैंगिक (asexual) ढंग से हुई; जैसे [[प्रजीवगण|प्रोटोज़ोआ]] (Protozoa) तथा प्रोटोफ़ाइटा (Protophyta) के अनेक रूपों में नर तथा मादा द्वारा मिलकर सृष्टि नहीं हुई। इन जीवों की उत्पत्ति शरीर विखंडन (fission), मुकुलन (budding) तथा बीजाणु निर्माण (spore formation) द्वारा हुई।
विकास के दूसरे चरण में नर तथा मादा के अत्यंत सूक्ष्म लक्षण प्रकट होने लगे। प्रोटोज़ोआ श्रेणी के कुछ अन्य जीव संयुग्मन (conjugation) द्वारा संतानोत्पादन करने लगे। इसमें एक ही प्रकार के दो जीव आपस में मिलकर एकाकार होने पर फिर विभाजित होकर अनेक संख्या में उत्पन्न होने लगे, जैसे [[वॉल्वॉक्स]] (Volvox) के निवहों (colonies) में देखा जाता है।
इसके पश्चात् लिंग विकास की तीसरी अवस्था आई, जिसमें एक ही प्राणी के अंदर नर तथा मादा दोनों जननांग विकसित हुए, जैसे, [[केंचुआ]] (earth-worm), [[जोंक]] (leech) आदि में।
लिंग विकास की अंतिम अवस्था में नर तथा मादा [[यौन अंग|जननांग]] सर्वथा पृथक् हो गए, जैसा कुत्तों, बंदरों, गाय, बकरियों तथा मनुष्यों आदि में देखा जाता है।
प्राथमिक लैंगिक लक्षणों के अंतर्गत नर में वृषण (testes) तथा मादा में अंडाशय (ovaries) आते हैं। गौण लैंगिक लक्षणों में उन अंगों तथा लक्षणों की गणना की जाती है, जिनसे नर और मादा को उनकी [[आकारिकी]] (morphology) द्वारा ही पृथक् पहचान लिया जाता है, जैसे कुछ कशेरुकी (vertebrate) जंतुओं में मैथुनांगों (copulatory organs) को स्पष्टत: पृथक् देखा जा सकता है। नर प्राणी में [[शिश्न]] (penis) तथा मादा में [[भग]] (vulva) [[मैथुनांग]] होते हैं। कतिपय अन्य जीवों में गौण लैंगिक लक्षणों के अंतर्गत [[मूँछ]], [[दाढ़ी]], सुंदर तथा भड़कीले पंख, सिर की कलगी, [[सींग]], [[स्तन]], प्रभुत्व जमाना, मधुर स्वर, मातृत्व की इच्छा, आक्रमण क्षमता आदि आते हैं। इसी प्रकार वनस्पति जगत में भी फूलों की सुगंध, रंग, भड़कीलापन, फलोत्पादन आदि लैंगिक लक्षण होते हैं।
 
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(3) निषेचन के बाद।
 
किंतु, सामान्यतः लिंग का निर्धारण [[निषेचन]] के ही समय होना माना जाता है। नर के शुक्राणु (sperm) का मादा के अंडाशय से संयुक्त होना निषेचन कहा जाता है। वातावरण में निषेचित अंडे, या [[युग्मज|युग्मनज]] (fertilized egg or Zygote) की क्रमश: वृद्धि होती रहती है।
 
नर तथा मादा का निर्धारण कुछ जटिल प्रक्रियाओं द्वारा होता है। वैज्ञानिकों ने इस संबंध में कई सिद्धांत उपस्थित किए हैं। इन सिद्धांतों में निम्नलिखित दो सिद्धांत अपेक्षाकृत अधिक प्रसिद्ध हैं : (1) गुणसूत्र, या क्रोमोसोम सिद्धांत तथा (2) हॉर्मोन सिद्धांत।
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=== क्रोमोसोम सिद्धांत ===
[[आनुवंशिकी|आनुवंशिक विज्ञान]] (Genetics) के अनुसार प्राणियों के शरीर में जो कोशिकाएँ (cells) पाई जाती हैं, उनमें कुछ ऐसी रचनाएँ होती है जो विशेष प्रकार के रंजकों और अभिरंजकों (dyes and stains) को ग्रहण कर लेती हैं, इन रचनाओं को [[गुणसूत्र|क्रोमोसोम]] कहा जाता है। आनुवंशिक विज्ञान में विशेषकर युग्मकों, या लिंग कोशिकाओं (gametes or sex-cells) में पाए जाने वाले क्रोमोसोमों पर ही विचार किया जाता हे। भिन्न-भिन्न प्राणियों की जनन कोशिकाओं में क्रोमोसोमों की संख्या इस प्रकार पाई गई हैं :
 
प्राणी का नाम --- क्रोमोसोमों की संख्या
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ऊँट (Camel) --- 70
 
सन् 1901-2 में मैक्क्लंग (Macclung) नामक विद्वान् ने [[गुणसूत्र|क्रोमोसोम]] का पता लगाया। उसी ने कुछ सिद्धांत भी बनाए, जो कालांतर में वैज्ञानिक अनुसंधानों द्वारा पुष्ट होते गए। इस सिद्धांत में यह माना जाता है कि प्रत्येक प्राणी के कुछ विशिष्ट क्रोमोसोमों की संख्या पर उसका लिंग निर्भर करता है। क्रोमोसोमों की रचना को यदि अधिक शक्तिशाली [[सूक्ष्मदर्शी]], जैसे [[इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी]] द्वारा देखा जाए तो उसमें भी कुछ बहुत ही सूक्ष्म रचनाएँ दिखाई पड़ेगी। इनको जीन (Genes) कहा जाता है और यह विश्वास किया जाता है कि ये ही जनक के आनुवंशिक (hereditary) गुणों को उनकी संतानों तक पहुँचाते हैं। जंतुओं और वनस्पतियों के क्रोमोसोमों तथा जीनों को लेकर बहुत अधिक अनुसंधान और प्रयोग हुए हैं।
 
यह पाया गया है कि प्रत्येक प्राणी की जनन कोशिकाओं में पाए जानेवाले क्रोमोसोमों में कुछ ऐसे होते हैं, जिन्हें अलिंगसूत्र (Autosomes) कहते हैं। ये नर तथा मादा दोनों में एक प्रकार के ही होते हैं और सदा युग्म (pair) में रहते हैं। कुछ दूसरे प्रकार के क्रोमोसोम भी पाए जाते हैं, जिन्हें लिंग निर्धारक (Sex determiner) कहा जाता है। अब तक जितने प्रकार के क्रोमोसोम पाए गए हैं, उन्हें एक्स (X), वाई (Y), डब्ल्यू (W), ज़ेड (Z) तथा ओ (O) की संज्ञा दी गई है। माना जाता है कि नर तथा मादा का निर्धारण इन्हीं लिंगनिर्धारक क्रोमोसोमों की सम तथा विषम संख्या द्वारा होता है, जैसे मनुष्यों में लिंग का निर्धारण इस प्रकार होता है :
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बहुत से जन्तुओं के नर और मादा के आकार एवं स्वरूप में स्पष्ट अन्तर होता है। इसे '''[[लैंगिक द्विरूपता]]''' कहते हैं।
 
यह बतलाया जा चुका है कि लैंगिक विकास के तृतीय चरण में नर मादा के भेद प्रकट होने लग गए थे। धीरे-धीरे [[डिम्बग्रंथि|अंडाशय]] तथा [[वृषण|वृषणों]] का विकास हुआ और सहायक अंग भी क्रमश: विकसित होते गए। अनेक निम्न जीवों में, तथा वनस्पतियों में भी नर तथा मादा जननांग एक ही शरीर में पाए जाते हैं। ज्यों ज्यों उच्च वर्ग की ओर बढ़ा जाएगा तो यह मिलेगा कि लिंग स्पष्ट ही पृथक् हो गए हैं और नर तथा मादा शरीर की रचना भी पृथक् है।
 
लैंगिक द्विरूपता का परिचित उदाहरण [[बोनेलिया विरिडिस]] (Bonellia viridis) नामक एक समुद्री कृमि है। इसकी मादा हरे रंग की तथा आकृति में बेर जैसी होती है। समुद्र के तल में पत्थरों के नीचे या उनके छिद्रों में, यह कृमि निवास करता है। वहीं से अपनी द्विशाखित (bifurcated) शुंड (proboscis) को बाहर लहराते हुए यह जीव आहार ढूँढता रहता है। नर कृमि अत्यंत सूक्ष्म होता है और जननांगों के अतिरिक्त इसके अन्य सभी अंगों का ह्रास हो गया होता है। मादा के शरीर के भीतर नर कृमि परोपजीवी की भाँति रहता है। निषेचित अंडाशय विकसित होकर जल में स्वतंत्र रूप से तैरते हुए लार्वा की भाँति होते हैं। यदि कोई लार्वा समुद्रतल में बैठ जाता है, अथवा किसी मादा के शुंड में पहुँच नहीं पाता है, तो वह मादा के रूप में विकसित होने लगता है। किंतु यदि किसी प्रकार वह मादा के शुंड में आकर्शित होकर पहुँच जाता है, तो वह नर के रूप में विकसित होता है। मादा के शुंड में बंदी बौना नर, सरकते हुए उसे मुँह में तथा वहाँ से भी धीरे धीरे नीचे सरकते हुए मादा की जनन नलिका में पहुँचकर, डिंबाशयों को निषेचित करता है। निषेचित अंडाशय पुन: जल में त्याग दिए जाते हैं और स्वतंत्र रूप से लार्वा की भाँति तैरने लग जाते हैं।
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== इन्हें भी देखें ==
* [[ऍक्स गुण सूत्र]]
* [[वाई गुण सूत्र|वाए गुण सूत्र]]
 
== बाहरी कड़ियाँ ==
"https://hi.wikipedia.org/wiki/लिंग" से प्राप्त