"गांधी-इरविन समझौता": अवतरणों में अंतर

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5 मार्च सन् 1931 को [[लंदन]] [[गोलमेज सम्मेलन (भारत)|द्वितीय गोल मेज सम्मेलन]] के पूर्व [[महात्मा गांधी]] और तत्कालीन वाइसराय [[लॉर्ड इर्विन|लार्ड इरविन]] के बीच एक राजनैतिक समझौता हुआ जिसे '''गांधी-इरविन समझौता''' (Gandhi–Irwin Pact) कहते हैं।
 
ब्रिटिश सरकार प्रथम गोलमेज सम्मेलन से समझ गई कि बिना कांग्रेस के सहयोग के कोई फैसला संभव नहीं है। वायसराय लार्ड इरविन एवं महात्मा गांधी के बीच 5 मार्च 1931 को गाँधी-इरविन समझौता सम्पन्न हुआ। इस समझौते में लार्ड इरविन ने स्वीकार किया कि -
 
# हिंसा के आरोपियों को छोड़कर बाकी सभी राजनीतिक बन्दियों को रिहा कर दिया जाएगा।
# भारतीयों को समुद्र किनारे [[साधारण नमक|नमक]] बनाने का अधिकार दिया जाएगा।
# भारतीय शराब एवं विदेशी कपड़ों की दुकानों के सामने धरना दे सकते हैं।
# आन्दोलन के दौरान त्यागपत्र देने वालों को उनके पदों पर पुनः बहाल किया जायेगा।
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कांग्रेस की ओर से गांधीजी ने निम्न शर्तें स्वीकार की -
# [[दांडी मार्च|सविनय अवज्ञा आन्दोलन]] स्थगित कर दिया जाएगा।
# कांग्रेस [[द्वितीय गोलमेज सम्मेलन]] में भाग लेगी।
# कांग्रेस ब्रिटिश सामान का बहिष्कार नहीं करेगी।