"राम लीला": अवतरणों में अंतर

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रामलीला का मूलाधार गोस्वामी [[तुलसीदास]] कृत "[[रामचरितमानस]]" है लेकिन एकमात्र वही नहीं। श्री [[राधेश्याम कथावाचक]] द्वारा रचित रामायण को भी कहीं-कहीं यह गौरव प्राप्त है। ऐसे [[काशी]] की सभी रामलीला में गोस्वामी जी विरचित "मानस" ही प्रतिष्ठित है। इस लोक आयोजन के लिए वर्ष भर दो माह ही अधिक उपयुक्त माने गए हैं - [[आश्विन]] और [[कार्तिक]]। ऐसे इसका प्रदर्शन कभी भी और कहीं भी किया जा सकता है। काशी के रामनगर की लीला [[भाद्रपद]] शुक्ल चौदह को प्रारंभ होकर शरत्पूर्णिमा को पूर्णता प्राप्त करती है और नक्खीघाट की शिवरात्रि से चैत्र अमावस्या अर्थात् 33 दिनों तक चलती है। गोस्वामी तुलसीदास अयोध्या में प्रतिवर्ष [[रामनवमी]] के उपलक्ष्य में इसका आयोजन कराते थे। कहीं दिन के अपराह्न काल में और कहीं रात्रि के पूर्वार्ध में इसका प्रदर्शन होता था।
[[चित्र:Ram Leela Mela As Performed before at Ram Nugur before the Raja of Benares by James Prinsep 1834.jpg|right|thumb|300px| काशी के रामनगर की रामलीला काशी नरेश के सामने होती है। इसकी समाप्ति रावण के पुतले के दहन के साथ होती है। (जेम्स प्रिंसेप १८३४)]]
लोकनायक राम की लीला भारत के अनेक क्षेत्रों में होती है। भारत के बाहर के भूखंडों जैसे [[बाली]], [[जावा]], [[श्री लंका]] आदि में प्राचीन काल से यह किसी न किसी रूप में प्रचलित रही है। जिस तरह [[श्रीकृष्ण]] की [[रासलीला]] का प्रधान केंद्र उनकी लीलाभूमि [[वृंदावन]] है उसी तरह रामलीला का स्थल है [[काशी]] और [[अयोध्या]], [[सोरों]] शूकरक्षेत्र, मिथिला, मथुरा, आगरा, अलीगढ़, एटा, इटावा, कानपुर, काशी आदि नगरों या क्षेत्रों में आश्विन माह में अवश्य ही आयोजित होती है लेकिन एक साथ जितनी लीलाएँ नटराज की क्रीड़ाभूमि वाराणसी में होती है उतनी भारत में अन्यत्र कहीं नहीं। इस दृष्टि से काशी इस दिशा में नेतृत्व करती प्रतीत होती है। [[राजस्थान]] और [[मालवा]] आदि भूभागों में यह चैत्रमास में ससमारोह संपन्न होती है। वीर, करुण, अद्भुत, शृंगार आदि रसों से आप्लावित रामलीला अपना रंगमंच संकीर्ण नहीं वरन् उन्मुक्त, विराट, प्रशस्त स्वीकार करती है। कहीं भी किसी मैदान में बाँसों, रस्सियों तारों आदि से घेरकर रंगमंच और प्रेक्षागृह का सहज ही निर्माण कर लिया जाता है।
 
=== दिल्ली की रामलीला ===