"आयुर्विज्ञान": अवतरणों में अंतर

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== इतिहास ==
आयुर्विज्ञान का जन्म [[भारत]] में कई हजार वर्ष ई.पू. में हुआ,{{cn|date=जनवरी 2016}}
प्रारंभ में आयुर्विज्ञान का अध्ययन [[जीव विज्ञान|जीवविज्ञान]] की एक शाखा की भाँति किया गया और [[शरीर-रचना-विज्ञान]] (अनैटोमी) तथा [[शरीरक्रिया विज्ञान|शरीर-क्रिया-विज्ञान]] (फ़िज़िऑलॉजी) को इसका आधार बनाया गया। शरीर में होनेवाली क्रियाओं के ज्ञान से पता लगा कि उनका रूप बहुत कुछ रासायनिक है और ये घटनाएँ रासानिक क्रियाओं के फल हैं। ज्यों-ज्यों खोजें हुईं त्यों-त्यों शरीर की घटनाओं का रासायनिक रूप सामने आता गया। इस प्रकार रसायन विज्ञान का इतना महत्व बढ़ा कि वह आयुर्विज्ञान की एक पृथक् शाखा बन गया, जिसका नाम [[जीवरसायन]] (बायोकेमिस्ट्री) रखा गया। इसके द्वारा न केवल शारीरिक घटनाओं का रूप स्पष्ट हुआ, वरन् रोगों की उत्पत्ति तथा उनके प्रतिरोध की विधियाँ भी निकल आईं। साथ ही भौतिक विज्ञान ने भी शारीरिक घटनाओं को भली भाँति समझने में बहुत सहायता दी। यह ज्ञात हुआ कि अनेक घटनाएँ भौतिक नियमों के अनुसार ही होती हैं। अब जीवरसायन की भाँति [[जीवभौतिकी]] (बायोफ़िज़िक्स) भी आयुर्विज्ञान का एक अंग बन गई है और उससे भी रोगों की उत्पत्ति को समझने में तथा उनका प्रतिरोध करने में बहुत सहायता मिली है। विज्ञान की अन्य शाखाओं से भी रोगरोधन तथा चिकित्सा में बहुत सहायता मिली है। और इन सबके सहयोग से मनुष्य के कल्याण में बहुत प्रगति हुई है, जिसके फलस्वरूप जीवनकाल बढ़ गया है।
 
शरीर, शारीरिक घटनाओं और रोग संबंधी आंतरिक क्रियाओं का सूक्ष्म ज्ञान प्राप्त करने में अनेक प्रकार की प्रायोगिक विधियों और यंत्रों से, जो समय-समय पर बनते रहे हैं, बहुत सहायता मिली है। किंतु इस गहन अध्ययन का फल यह हुआ कि आयुर्विज्ञान अनेक शाखाओं में विभक्त हो गया और प्रत्येक शाखा में इतनी खोज हुई है, नवीन उपकरण बने हैं तथा प्रायोगिक विधियाँ ज्ञात की गई हैं कि कोई भी विद्वान् या विद्यार्थी उन सब से पूर्णतया परिचित नहीं हो सकता। दिन--प्रति--दिन चिकित्सक को प्रयोगशालाओं तथा यंत्रों पर निर्भर रहना पड़ रहा है और यह निर्भरता उत्तरोत्तर बढ़ रही है।
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== आयुर्विज्ञान और समाज ==
चिकित्साविज्ञान की शक्ति अब बहुत बढ़ गई है और निरंतर बढ़ती जा रही है। आजकल [[संततिनिरोध|गर्भनिरोध]] किया जा सकता है। [[गर्भ]] का अंत भी हो सकता है। पीड़ा का शमन, बहुत काल तक मूर्छावस्था में रखना, अनेक संक्रामक रोगों की सफल चिकित्सा, सहज प्रवृत्तियों का दमन और वृद्धि, औषधियों द्वारा भावों का परिवर्तन, शल्यक्रिया द्वारा व्यक्तित्व पर प्रभाव आदि सब संभव हो गए हैं। मनुष्य का जीवनकाल अधिक हो गया है। दिन--प्रति--दिन नवीन औषधियाँ निकल रही हैं; रोगों का कारण ज्ञात हो रहा है; उनकी चिकित्सा ज्ञात की जा रही है।
 
सरकार के स्वास्थ्य संबंधी तीन प्रमुख कार्य हैं। पहले तो जनता में रोगों को फैलने न देना; दूसरे, जनता की स्वास्थ्यवृद्धि, जिसके लिए उपयुक्त भोजन, शुद्ध जल, रहने के लिए उपयुक्त स्थान तथा नगर की स्वच्छता आवश्यक है; तीसरे, रोगग्रस्त होने पर चिकित्सा संबंधी उपयुक्त और उत्तम सहायता उपलब्ध करना। इन तीनों उद्देश्यों की पूर्ति में चिकित्सक का बहुत बड़ा स्थान और उत्तरदायित्व है।
 
== मूलभूत चिकित्साविज्ञान ==
* [[शारीरिकी|शरीररचना विज्ञान]] (एनाटॉमी)
* [[शरीरक्रिया विज्ञान]] (फिजियोलॉजी)
* [[भ्रूणविज्ञान]]
* [[ऊतक विज्ञान]] (Histology)
* [[प्रतिरक्षा विज्ञान]] (immunology / इम्मुनोलोजी)
* [[जीवरसायन|जैवरसायन]]
* [[जैवभौतिकी]] (biophysics)
* [[चिकित्सा जीवविज्ञान]]
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* [[योग]]
* [[मनोरोग विज्ञान]] (Psychiatry)
* [[तंत्रिका विज्ञान|तंत्रिकाविज्ञान]]
* [[औषधनिर्माण|भेषजी]] (फार्मेसी)
* [[वैकल्पिक चिकित्सा]]
पंक्ति 119:
* [[पशु चिकित्सा विज्ञान]] (वेटनरी मेडिसिन)
* [[विकृतिविज्ञान]] (पैथोलॉजी)
* [[अर्बुदविज्ञान|अर्बुद विज्ञान]] (Oncology)
* [[मूर्छाशास्त्र|निश्चेतना विज्ञान]] (Anaesthesiology)
 
== बाहरी कड़ियाँ ==