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[[चित्र:Ramlila01.jpg|thumb|right| रामलीला का एक दृश्य।]]
 
'''रामलीला''' उत्तरी [[भारत]] में परम्परागत रूप से खेला जाने वाला [[राम]] के चरित पर आधारित [[नाटक]] है। यह प्रायः [[दशहरा|विजयादशमी]] के अवसर पर खेला जाता है।
 
== इतिहास ==
समुद्र से लेकर हिमाचल तक प्रख्यात रामलीला का आदि प्रवर्तक कौन है, यह विवादास्पद प्रश्न है। भावुक भक्तों की दृष्टि में यह अनादि है। एक किंवदंति का संकेत है कि त्रेता युग में श्री रामचंद्र के वनगमनोपरांत अयोध्यावासियों ने चौदह वर्ष की वियोगावधि राम की बाल लीलाओं का अभिनय कर बिताई थी। तभी से इसकी परंपरा का प्रचलन हुआ। एक अन्य जनश्रुति से यह प्रमाणित होता है कि इसके आदि प्रवर्तक मेघा भगत थे जो काशी के कतुआपुर महल्ले में स्थित फुटहे हनुमान के निकट के निवासी माने जाते हैं। एक बार पुरुषोत्तम रामचंद्र जी ने इन्हें स्वप्न में दर्शन देकर लीला करने का आदेश दिया ताकि भक्त जनों को भगवान के चाक्षुष दर्शन हो सकें। इससे सत्प्रेरणा पाकर इन्होंने रामलीला संपन्न कराई। तत्परिणामस्वरूप ठीक भरत मिलाप के मंगल अवसर पर आराध्य देव ने अपनी झलक देकर इनकी कामना पूर्ण की। कुछ लोगों के मतानुसार रामलीला की अभिनय परंपरा के प्रतिष्ठापक [[तुलसीदास|गोस्वामी तुलसीदास]] हैं, इन्होंने हिंदी में जन मनोरंजनकारी नाटकों का अभाव पाकर इसका श्रीगणेश किया। इनकी प्रेरणा से अयोध्या और काशी के तुलसी घाट पर प्रथम बार रामलीला हुई थी।
 
== रामलीला के प्रकार ==
रंगमंचीय दृष्टि से रामलीला तीन प्रकार की हैं - सचल लीला, अचल लीला तथा स्टेज़ लीला। काशी नगरी के चार स्थानों में अचल लीलाएँ होती हैं। [[गोस्वामी तुलसीदास|गो. तुलसीदास]] द्वारा स्थापित रंगमंच की कई विशेषताओं में से एक यह भी है कि स्वाभाविकता, प्रभावोत्पादकता और मनोहरता की सृष्टि के लिए, [[अयोध्या]], [[जनकपुर]], [[चित्रकूट धाम|चित्रकूट]], [[लंका]] आदि अलग-अलग स्थान बना दिए गए थे और एक स्थान पर उसी से संबंधित सब लीलाएँ दिखाई जाती थीं। यह ज्ञातव्य है कि रंगशाला खुली होती थी और पात्रों को संवाद जोड़ने घटाने में स्वतंत्रता थी। इस तरह [[हिंदी रंगमंच]] की प्रतिष्ठा का श्रेय गो. तुलसीदास को और इनके कार्यक्षेत्र काशी को प्राप्त है।
 
[[गोपीगंज]] आदि में भरतमिलाप के दिन विमान तथा लागें निकाली जाती हैं। [[इलाहाबाद]] के [[दशहरा|दशहरे]] के अवसर पर रामलीला के सिलसिले में जो विमान और चौकियाँ निकलती है, उनका दृश्य बड़ा भव्य होता है।
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रामलीला में [[नृत्य]], [[संगीत]] की प्रधानता नहीं होती क्योंकि चरितनायक गंभीर, वीर, धीर, शालीन एवं मर्यादाप्रिय पुरुषोत्तम हैं। परिणामस्वरूप वातावरण में विशेष प्रकार की गंभीरता विराजती रहती है। इस लीला की पहले मंडली नहीं होती थी अब कुछ पेशेवर लोग मंडलियाँ बनाकर लीलाभिनय से अर्थोपार्जन करते हैं। भारत के [[ग्वालियर]], [[जयपुर]], [[इलाहाबाद]] आदि नगरों में इसका मूक अभिनय (dumbshows) होता है।
 
पूर्वी उत्तर प्रदेश के [[देवरिया]] जिले में [[सलेमपुर]] की "सांस्कृतिक संगम" संस्था द्वारा रामायण का मंचन एक नए आयाम में प्रस्तुत किया गया है। इस संस्था का उद्देश्य आजकल रामायण, या रामलीला के नाम से मात्र कमाई का माध्यम बनाने में भाषा की शुद्धता पर ध्यान कम देकर, अश्लीलता का प्रयोग कर समाज को भ्रमित करने वालों के विरुद्ध एक अभियान की तरह कार्य आरम्भ कर आस-पास के क्षेत्रों में ख्याति प्राप्त की है। यह संस्था "रामलीला" शब्द का प्रयोग न कर रामायण मंचन के नाम से प्रस्तुति देती है, ताकि इसमें अच्छे कुलीन घर के लोग, स्त्री एवं पुरुष, दूरदर्शन व सिने कलाकार भी सम्मिलित होकर यह पुनीत कार्य कर सके। इसमें ६० कलाकार भाग लेते हैं। गायक मंडली के साथ प्रकाश एवं ध्वनि की व्यवस्था साथ लिए [[सोनपुर पशु मेला|सोनपुर के मेले]] में भी विगत दो वर्षों से मेले में आकर्षण के केंद्र बने।
 
दर्शकों को अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है। रामलीला देखने से [[भारतेन्दु हरिश्चंद्र|भारतेंदु हरिश्चंद्र]] के हृदय से रामलीला गान की उत्कंठा जगी। परिणामत: [[हिंदी साहित्य]] को "रामलीला" नामक [[चंपू]] की रचना मिली।
 
== प्रसिद्ध रामलीला-स्थल ==
रामलीला का मूलाधार गोस्वामी [[तुलसीदास]] कृत "[[श्रीरामचरितमानस|रामचरितमानस]]" है लेकिन एकमात्र वही नहीं। श्री [[राधेश्याम कथावाचक]] द्वारा रचित रामायण को भी कहीं-कहीं यह गौरव प्राप्त है। ऐसे [[काशी]] की सभी रामलीला में गोस्वामी जी विरचित "मानस" ही प्रतिष्ठित है। इस लोक आयोजन के लिए वर्ष भर दो माह ही अधिक उपयुक्त माने गए हैं - [[अश्विनीकुमार (पौराणिक पात्र)|आश्विन]] और [[कार्तिक]]। ऐसे इसका प्रदर्शन कभी भी और कहीं भी किया जा सकता है। काशी के रामनगर की लीला [[भाद्रपद]] शुक्ल चौदह को प्रारंभ होकर शरत्पूर्णिमा को पूर्णता प्राप्त करती है और नक्खीघाट की शिवरात्रि से चैत्र अमावस्या अर्थात् 33 दिनों तक चलती है। गोस्वामी तुलसीदास अयोध्या में प्रतिवर्ष [[राम नवमी|रामनवमी]] के उपलक्ष्य में इसका आयोजन कराते थे। कहीं दिन के अपराह्न काल में और कहीं रात्रि के पूर्वार्ध में इसका प्रदर्शन होता था।
[[चित्र:Ram Leela Mela As Performed before at Ram Nugur before the Raja of Benares by James Prinsep 1834.jpg|right|thumb|300px| काशी के रामनगर की रामलीला काशी नरेश के सामने होती है। इसकी समाप्ति रावण के पुतले के दहन के साथ होती है। (जेम्स प्रिंसेप १८३४)]]
लोकनायक राम की लीला भारत के अनेक क्षेत्रों में होती है। भारत के बाहर के भूखंडों जैसे [[बाली]], [[जावा]], [[श्रीलंका|श्री लंका]] आदि में प्राचीन काल से यह किसी न किसी रूप में प्रचलित रही है। जिस तरह [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] की [[रासलीला]] का प्रधान केंद्र उनकी लीलाभूमि [[वृन्दावन|वृंदावन]] है उसी तरह रामलीला का स्थल है [[काशी]] और [[अयोध्या]]। मिथिला, मथुरा, आगरा, अलीगढ़, एटा, इटावा, कानपुर, काशी आदि नगरों या क्षेत्रों में आश्विन माह में अवश्य ही आयोजित होती है लेकिन एक साथ जितनी लीलाएँ नटराज की क्रीड़ाभूमि वाराणसी में होती है उतनी भारत में अन्यत्र कहीं नहीं। इस दृष्टि से काशी इस दिशा में नेतृत्व करती प्रतीत होती है। [[राजस्थान]] और [[मालवा]] आदि भूभागों में यह चैत्रमास में ससमारोह संपन्न होती है। वीर, करुण, अद्भुत, शृंगार आदि रसों से आप्लावित रामलीला अपना रंगमंच संकीर्ण नहीं वरन् उन्मुक्त, विराट, प्रशस्त स्वीकार करती है। कहीं भी किसी मैदान में बाँसों, रस्सियों तारों आदि से घेरकर रंगमंच और प्रेक्षागृह का सहज ही निर्माण कर लिया जाता है।
 
=== दिल्ली की रामलीला ===
[[चित्र:Ramlila Dasratha.jpg|right|thumb|300px|रामलीला मैदान के रामलीला (२०१२) का एक दृश्य]]
दिल्ली में रामलीलाओं का इतिहास बहुत पुराना है। दिल्ली में, सबसे पहली रामलीला [[बहादुर शाह ज़फ़र|बहादुरशाह ज़फर]] के समय पुरानी दिल्ली के [[रामलीला मैदान]] में हुई थी। लवकुश रामलीला कमेटी, अशोक विहार रामलीला] कमेटी आदि दिल्ली की प्राचीन रामलीलाओं में से हैं। राम भारतीय कला केन्द्र द्वारा रामलीला का मंचन तीन घंटों में दर्शाया जाता है। यहाँ की रामलीला में पात्रों की वेशभूषा दर्शनीय है। इनके अतिरिक्त दिलशाद गार्डन रामलीला, दिल्ली छावनी की रघुनन्दन लीला समिति मयूर यूथ क्लब] मयूर विहार-1 रामलीला, सूरजमल विहार रामलीला आदि भी दिल्ली की चर्चित रामलीलाओं में से हैं।
 
रामलीलाओं में '''[[छम्मिलाल ढोंढियाल]]''' द्वारा लिखित "रामलीला" पुस्तक बहुत प्रचलित पुस्तक है। अधिकतर रामलीलाएँ इसी पुस्तक पर आधारित हैं।