"समराङ्गणसूत्रधार": अवतरणों में अंतर

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{{एक स्रोत}}
'''समरांगणसूत्रधार''' भारतीय [[वास्तु शास्त्र|वास्तुशास्त्र]] से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना [[धार]] के परमार राजा [[भोज]] (1000–1055 ई) ने की थी।
 
==परिचय==
इस ग्रन्थ में ८३ अध्याय हैं जिनमें नगर-योजना, भवन शिल्प, मंदिर शिल्प, [[मूर्ति कला|मूर्तिकला]] तथा [[मुद्रा (भाव भंगिमा)|मुद्राओं]] सहित [[यंत्र|यंत्रों]] के बारे में (अध्याय ३१, जिसका नाम 'यन्त्रविधान' है) वर्णन है। इसका ३१वाँ अध्याय (यन्त्रविधान) यंत्रविज्ञान के क्षेत्र में एक सीमा बिन्दु है। इस अध्याय में अनेक यंत्रों का वर्णन है। लकड़ी के वायुयान, यांत्रिक दरबान तथा सिपाही, इनमें [[रोबोट]] की एक झलक देख सकते हैं।
 
===विमानविद्या===
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(२०) यंत्र दीर्घायु होना चाहिए।
 
विविध कार्यों की आवश्यकतानुसार विविध [[गति (भौतिकी)|गतियाँ]] होतीं हैं जिससे कार्यसिद्धि होती है।
: (१) तिर्यग्‌- slanting (२) ऊर्ध्व upwards (३) अध:- downwards (४) पृष्ठे- backwards (५) पुरत:-forward (६) पार्श्वयो:- sideways
 
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==इन्हें भी देखें==
*[[परमार भोज]]
*[[वास्तु शास्त्र|वास्तुशास्त्र]]
*[[वैमानिक शास्त्र]]
*[[प्राचीन भारतीय विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी]]