"माधव निदान": अवतरणों में अंतर

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'''माधवनिदानम्''' [[आयुर्वेद]] का प्रसिद्ध प्राचीन ग्रन्थ है। इसका मूल नाम 'रोगविनिश्चय' है। यह [[माधवकर]] द्वारा प्रणीत है जो आचार्य इन्दुकर के पुत्र थे और ७वीं शताब्दी में पैदा हुए थे।
माधव ने [[वाग्भट]] के वचनों का उल्लेख किया है। विद्धानों ने माधवकर को [[बाङ्ला भाषा|बंगाली]] होना प्रतिपादित किया है।
 
एक ही ग्रन्थ द्वारा तत्कालीन समस्त रोगों के [[निदान]] के लिये इस ग्रन्थ का निर्माण किया गया था। चिकित्सकों द्वारा रोगों के निदान में उत्पन्न तत्कालीन सभी कठिनाइयों का समाधान इस ग्रन्थ में उपस्थित था। अतः इस ग्रन्थ को रोगनिदान के सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थ के रूप में चिकित्सा-जगत में मान्यता मिली। इस ग्रन्थ की महत्ता का वर्णन परवर्ती आचार्यों ने '"निदाने माधवः श्रेष्ठः"' (निदान में माधव श्रेष्ठ हैं) कहकर किया है तथा लघुत्रयी के अन्तर्गत इसे स्थान दिया गया है। माधवकर ने इस ग्रन्थ के अन्त में लिखा है कि सभी रोगों के सम्यक् विनिश्चय के लिए अन्य ग्रन्थों एवं तत्कालीन चिकित्सा-जगत में प्रचलित सर्वश्रेष्ठ नैदानिक विषय-सामग्री को एकत्र करके इस ग्रन्थ में संकलित किया गया है।
 
इस ग्रन्थ के निर्माण में चिकित्सा-जगत में तत्कालीन प्रचलित अनेक मुनियों के ज्ञान को रोगों के पंचनिदान उपद्रव एवं अरिष्ट लक्षणों के रूप में समाहित किया गया है। वस्तुतः इस ग्रन्थ के निर्माण में प्रमुख रूप से [[चरक संहिता|चरकसंहिता]], [[सुश्रुत संहिता|सुश्रुतसंहिता]] एवं [[अष्टाङ्गहृदयम्|अष्टांगहृदय]] आदि ग्रन्थों से संग्रहीत रोगनिदान एवं इन संहिताओं में अनुपलब्ध रोगों के निदान का तत्कालीन अन्य ग्रन्थों एवं स्वयं के नैदानिक अनुभव के आधार पर संकलन करके श्रीमाधवकर द्वारा रोगविनिश्चय नामक इस नैदानिक ग्रन्थ का प्रणयन हुआ है। माधवकर का अभिमत है कि अल्प मेधस्वी वैद्यों द्वारा विविध चिकित्सा-ग्रन्थों के उपयोग के बिना भी मात्र इस एक ग्रन्थ के सम्यक् उपयोग से सभी रोगों का सम्यक् निदान किया जा सकता है।
 
== संरचना ==