"ऊष्मागतिकी का शून्यवाँ नियम": अवतरणों में अंतर

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[[उष्मागतिकी|ऊष्मागतिकी]] के अध्ययन में एक नई भावना का समावेश होता है, वह '''[[तापमान|ताप]]''' की भावना है। यदि किसी पिंड (बॉडी) के गुणधर्म इस बात पर निर्भर न रहें कि वह कितना गरम अथवा ठंडा है तो उसका पूरा परिचय पाने के लिए उसके आयतन अथवा उसके घनत्व के ज्ञान की ही आवश्यकता होती है। जैसे यदि हम कोई [[द्रव]] लें तो [[यांत्रिकी]] में यह माना जाता है कि उसके ऊपर दाब बढ़ाने पर उसका आयतन कम होगा। दाब का मान निश्चित करते ही आयतन का मान भी निश्चित हो जाता है। इस तरह इन दो चर राशियों में से एक स्वतंत्र होती है और दूसरी आश्रित अथवा परंतत्र।
 
परंतु प्रत्यक्ष अनुभव से हम जानते हैं कि आयतन यदि स्थिर हो तो भी गरम या ठंडा करके दाब को बदला जा सकता है। इस प्रकार दाब तथा आयतन दोनों ही स्वतंत्र चर राशियाँ हैं। आगे चलकर आवश्यकतानुसार हम अन्य चर राशियों का भी समावेश करेंगे।
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; f1 (p1, V1) = f2 (p2, V2) = f3 (p3,V3) (3)
 
इनमें से किसी एक द्रव का उपयोग तापमापी के रूप में किया जा सकता है और उस द्रव के फलन के मान को हम प्रायोगिक ताप की भाँति प्रयुक्त कर सकते हैं। यदि पहले द्रव को तापमापी माना जाए तथा उसके फलन का मान '''t''' हो तो दूसरे द्रव के लिए हमें जो समीकरण मिलेगा अर्थात् '''f2 (p2 V2) = t ''' वह दूसरे द्रव का [[अवस्था समीकरण|दशासमीकरण]] (इक्वेशन ऑव स्टेट) कहा जाएगा।
 
यों तो द्रव के किसी भी गुण का उपयोग तापमापी के लिए किया जा सकता है परंतु '''p''' तथा '''V''' के जिस संबंध का उपयोग किया जाए वह जितना ही सरल होगा उतना ही ताप नापने में सुगमता होगी। हम जानते हैं कि समतापीय अवस्था में अल्प दाबवाली [[गैस]] की दाब एवं आयतन का गुणनफल अचर होता है। अतएव '''pV = R0''' को ताप नापने के लिए उपयोग में लाया जा सकता है और इस संबंध का उपयोग किया भी जाता है। परंतु यदि (दाब x अयातन) अचर हो तो (दाब x आयतन) का वर्गमूल अथवा (दाब x आयतन) का वर्ग भी अचर होगा। किंतु इनका उपयोग नहीं किया जाता। pV = R0 का उपयोग करने में क्या लाभ है यह आगे चलकर प्रकट होगा।