"बायोगैस": अवतरणों में अंतर

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== भारत में बायोगैस ==
भारत में मवेशियों की संख्या विश्व में सर्वाधिक है इसलिए बायोगैस के विकास की प्रचुर संभावना है। बायोगैस ([[मिथेन|मीथेन]] या [[गोबर गैस]]) मवेशियों के उत्सर्जन पदार्थों को कम ताप पर डाइजेस्टर में चलाकर माइक्रोब उत्पन्न करके प्राप्त की जाती है। जैव गैस में 75 प्रतिशत [[मेथेन गैस]] होती है जो बिना धुँआ उत्पन्न किए जलती है। लकड़ी, चारकोल तथा कोयले के विपरीत यह जलने के पश्चात राख जैसे कोई उपशिष्ट भी नहीं छोड़ती है। ग्रामीण इलाकों में भोजन पकाने तथा ईंधन के रूप में प्रकाश की व्यवस्था करने में इसका उपयोग हो रहा है।
 
[[राष्ट्रीय बायोगैस विकास कार्यक्रम]] (1981-82) के अंतर्गत पारिवारिक या घरेलू तथा सामुदायिक दो प्रकार के संयंत्रों की स्थापना की जाती है। इससे स्वच्छ व सस्ती ऊर्जा आपूर्ति तथा ग्रामीण पर्यावरण की सफाई के साथ ही उच्च कोटि की कार्बनिक खाद भी प्राप्ति होती है क्योंकि जैव गैस के लिए प्रयुक्त [[गोबर]] तथा जल के कर्दम में [[नाइट्रोजन]] व [[फास्फोरस]] प्रचुर मात्रा में होते हैं। सावधानी केवल यह बरतनी चाहिए कि बायोगैस संयंत्र की 15 मीटर की परिधि में कोई पेयजल स्रोत न हो।
 
==बायोगैस संयंत्र से लाभ==
भारत के तराई एवं मैदानी क्षेत्रों में [[गोबर]] को उपलों (कण्डों/गोइंठा) के रूप में सुखा कर [[ईन्धन|ईंधन]] के रूप में प्रयोग किया जाता है। इससे गोबर में मौजूद पौधों के लिये पोषणकारी अधिकांश तत्त्व नष्ट हो जाते हैं। उपला बनाने में प्रतिदिन करीब १-२ घंटे समय भी लगता है। अतः खाना पकाने हेतु गोबर के उपलों के स्थान पर गोबर से बायो गैस बना कर बायो गैस को ईंधन के रूप में प्रयोग करने से पोषक तत्वों कि हानि नहीं होती है क्योंकि बायो गैस से प्राप्त बायो गैस स्लरी में पौधों के लिये उपयोगी सभी पोषक तत्त्व उपलब्ध रहते है (नष्ट नहीं होते), साथ ही खाना बनाने में धुँआ नहीं होता है जिससे गृहणी कि आँखों पर कोई प्रतिकूल असर भी नहीं पड़ता है। बायो गैस स्लरी को सीधे या छाया में सुखाकर या [[केंचुआ खाद|वर्मी कम्पोस्ट]] बनाकर खाद के रूप में खेतों में प्रयोग करना चाहिए। बायो गैस से आजकल डीजल पम्प सेट भी चला सकते है जिससे डीजल एवं अन्य उर्जा कि बचत होती है।
 
* बायो गैस (गोबर गैस) पर्यावरण के अनुकूल है एवं ग्रामीण क्षेत्रो के लिए बहुत उपयोगी है।
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बायोगैस संयन्त्र से निकली पतली स्लरी में 20% नाइट्रोजन अमो. निकल नाइट्रोजन के रूप में होता है अतः यदि इसका तुरन्त उपयोग खेत में नालियाँ बनाकर अथवा सिंचाई के पानी में मिलाकर खेत में छोड़ दिया जाए तो इसका लाभ रासायनिक खाद की तरह से फसल पर तुरन्त होता है और उत्पादन में 10 से 20 परसेंट बेनिफिट मिलता है ।
 
यह खेती के लिये अति उत्तम खाद होता है इसमें [[नाइट्रोजन]] 1.5 से 2% [[फास्फोरस]] 1.0% एवं [[पोटैशियम|पोटाश]] 1.0% तक होता है। बायोगैस संयन्त्र से जब स्लरी के रूप में खाद बाहर आता है तब जितना नाइट्रोजन [[गोबर]] में होता है उतना ही नाइट्रोजन स्लरी में भी होता है, परन्तु संयन्त्र में पाचन क्रिया के दौरान कार्बन का रूपान्तर गैस में होने से कार्बन का प्रमाण कम होने से कार्बन नाइट्रोजन अनुपात कम हो जाता है व इससे नाइट्रोजन का प्रमाण बढ़ा हुआ प्रतीत होता है।
 
बायोगैस संयन्त्र से निकली पतली स्लरी में 20% नाइट्रोजन अमो. निकल नाइट्रोजन के रूप में होता है अतः यदि इसका तुरन्त उपयोग खेत में नालियाँ बनाकर अथवा सिंचाई के पानी में मिलाकर खेत में छोड़ दिया जाए तो इसका लाभ रासायनिक खाद की तरह से फसल पर तुरन्त होता है और उत्पादन में 10 से 20% तक बढ़त हो सकती है। स्लरी खाद को सुखाने के बाद उसमें नाइट्रोजन का कुछ भाग हवा में उड़ जाता है। यह खाद असिंचित खेती में एक हेक्टर में करीब 5 टन व सिंचाई वाली खेती में 10 टन प्रति हेक्टर के प्रमाण में डाला जाता है। बायोगैस स्लरी के खाद में मुख्य तत्वों के अतिरिक्त सूक्ष्म पोषक तत्व एवं ह्यूमस भी होता है जिससे मिट्टी का पोत सुधरता है , जलधारण क्षमता बढ़ती है और सूक्ष्म जीवाणु बढ़ते है। इस खाद के उपयोग से अन्य जैविक खाद की तरह 3 वर्षों तक पोषक तत्व फसलों को धीरे-धीरे उपलब्ध होते रहते है।