"पराश्रव्य": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Bundesarchiv Bild 183-1990-0417-001, Leipzig, Universitätsklinik, Untersuchung.jpg|right|thumb|300px|अल्ट्रासाउन्ड द्वारा गर्भवती स्त्री के गर्भस्थ शिशु की जाँच]]
[[चित्र:CRL Crown rump length 12 weeks ecografia Dr. Wolfgang Moroder.jpg|right|thumb|300px|१२ सप्ताह के गर्भस्थ शिशु का पराश्रव्य द्वारा लिया गया फोटो]]
'''पराश्रव्य''' (ultrasound) शब्द उन [[तरंग|ध्वनि तरंगों]] के लिए उपयोग में लाया जाता है जिसकी [[आवृत्ति]] इतनी अधिक होती है कि वह [[होमो सेपियन्स|मनुष्य]] के कानों को सुनाई नहीं देती। साधारणतया मानव श्रवणशक्ति का परास २० से लेकर २०,००० कंपन प्रति सेकंड तक होता है। इसलिए २०,००० से अधिक आवृत्तिवाली ध्वनि को पराश्रव्य कहते हैं। क्योंकि मोटे तौर पर ध्वनि का वेग [[गैस]] में ३३० मीटर प्रति सें., द्रव में १,२०० मी. प्रति सें. तथा ठोस में ४,००० मी. प्रति से. होता है, अतएव पराश्रव्य ध्वनि का [[तरंगदैर्घ्य]] साधारणतया १० - ४ सेंमी. होता है। इसकी सूक्ष्मता [[प्रकाश]] के तरंगदैर्घ्य के तुल्य है। अपनी सूक्ष्मता के ही कारण ये तरंगें उद्योग-धंधों तथा अन्वेषण कार्यों में अति उपयुक्त सिद्ध हुई हैं और आजकल इनका महत्व अत्यधिक बढ़ गया है।
 
 
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सन्‌ १८८० में पी. और पी.जे. क्यूरी ने बताया कि यदि सममिति रहित स्फटिकों या क्रिस्टलों के किन्हीं विशेष अक्षों पर दबाव लगाया जाए तो उनके दो तलों पर विजातीय विद्युदावेश उत्पन्न होते हैं। कुछ दिनों बाद इन्हीं दो भाइयों ने इससे विपरीत प्रभाव का भी आविष्कार किया, अर्थात्‌ यह प्रमाणित किया कि बल लगाने से इन क्रिस्टलों की लंबाई में परिवर्तन होता है। इस घटना को दाब-विद्युत्‌-प्रभाव कहते हैं। सन्‌ १९१७ ई. लैंजेविन ने क्वार्ट्ज़ क्रिस्टल को उसकी स्वाभाविक आवृत्ति से कंपित करने के लिए एक समस्वरित विद्युत्‌ परिपथ के द्वारा उसे उत्तेजित किया। यदि विद्युत्‌ परिपथ की आवृत्ति क्रिस्टल की आवृत्ति के बराबर हो, जो क्रिस्टल अनुनादित कंपन करने लगता है। क्रिस्टल अपनी स्वाभाविक आवृत्ति की अधिस्वरित आवृत्ति तथा निश्चित आयामवाली पराश्रव्य ध्वनि उत्पन्न करता है। पराश्रव्य ध्वनि उत्पन्न करने की यही अर्वाचीन विधि है।
 
[[स्फटिक|क्वार्ट्ज़]] के अतिरिक्त टूर्मैलिन, टार्टरिक अम्ल, रोशेल लवण, बेरियम टाइटैनेट इत्यादि का भी दोलक बनाने में उपयोग होता है। उपयुक्त आकार के क्रिस्टलों से या तो उनकी स्वाभाविक आवृत्ति, अथवा विषय संनादी (harmonics), उत्पन्न करके २व् १०४ से लेकर २व् १०८ तक की आवृत्तिवाली पराश्रव्य ध्वनि उत्पन्न की जाती है।
 
हार्टले का विद्युत्‌ परिपथ क्रिस्टल कंपित किया जाता है। परिपथ के संधारित्र के मान को सम्ांजित कर समस्वरित किया जाता है। इस परिपथ के अतिरिक्त और भी अन्य परिपथों का विभिन्न कार्यों के लिए पराश्रव्य ध्वनि उत्पन्न करने में उपयोग किया जाता है।
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==उद्देश्य==
 
अल्ट्रासोनिक परीक्षा के बहुमत त्वचा की सतह पर एक [[ट्रान्सड्यूसर|ट्रांसड्यूसर]] चलाने के द्वारा बाहर से प्रदर्शन कर रहे हैं। आम तौर पर एक जेल त्वचा पर लगाया जाता है जिस पर ट्रांसड्यूसर परीक्षा के दौरान सरकता हुआ चलता है जेल ट्रांसड्यूसर और त्वचा के बीच उतपनन हवा के बुलबुलों को बनाने से रोक कर अल्ट्रासोनिक संकेत दृढ़ता परदान करने में मदद करता है। कुछ नैदानिक ​​परीक्षण में शरीर के भीतर परवेश करने की आवश्यकताहोती है। उदाहरण के लिए, एक पार इकोकार्डियोग्राम के दौरान एक विशेष ट्रांसड्यूसर घेघा में बेहतर छवि के लिए दिल रखा गया है। ट्रांस गुदा परीक्षा एक ट्रांसड्यूसर एक आदमी के मलाशय में डाला जा करने की आवश्यकता प्रोस्टेट की छवियों को प्राप्त करने के लिए। अल्ट्रासाउंड गर्भावस्था के शुरुआती सप्ताह के दौरान एक महिला के अंडाशय और गर्भाशय या एक भ्रूण के की छवियों को प्रदान करने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं।
 
मेडिकल सोनोग्राफी (अल्ट्रासोनोग्राफी) एक अल्ट्रासाउंड-आधारित नैदानिक ​​चिकित्सा इमेजिंग तकनीक है, जिसका उपयोग वास्तविक समय टोमोग्राफिक छवियों के साथ उनके आकार, संरचना और किसी भी रोग संबंधी घावों को पकड़ने के लिए मांसपेशियों, कण्डरा और कई आंतरिक अंगों की कल्पना करने के लिए किया जाता है। कम से कम 50 वर्षों के लिए मानव शरीर की छवि के लिए रेडियोलॉजिस्ट और सोनोग्राफर्स द्वारा अल्ट्रासाउंड का उपयोग किया गया है और यह व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाने वाला नैदानिक ​​उपकरण बन गया है। प्रौद्योगिकी अपेक्षाकृत सस्ती और पोर्टेबल है, खासकर जब अन्य तकनीकों के साथ तुलना की जाती है, जैसे चुंबकीय अनुनाद इमेजिंग (एमआरआई) और कंप्यूटेड टोमोग्राफी (सीटी)। नियमित और आपातकालीन प्रसव पूर्व देखभाल के दौरान भ्रूण की कल्पना करने के लिए भी अल्ट्रासाउंड का उपयोग किया जाता है। गर्भावस्था के दौरान उपयोग किए जाने वाले ऐसे नैदानिक ​​अनुप्रयोगों को प्रसूति सोनोग्राफी कहा जाता है। जैसा कि वर्तमान में चिकित्सा क्षेत्र में लागू किया गया है, ठीक से किया गया अल्ट्रासाउंड रोगी को कोई ज्ञात जोखिम नहीं देता है। [२५] सोनोग्राफी आयनीकृत विकिरण का उपयोग नहीं करता है, और इमेजिंग के लिए उपयोग किए जाने वाले शक्ति का स्तर ऊतक में प्रतिकूल ताप या दबाव प्रभाव पैदा करने के लिए बहुत कम है। [२६] [२ ion] हालांकि, नैदानिक ​​तीव्रता पर अल्ट्रासाउंड के जोखिम के कारण दीर्घकालिक प्रभाव अभी भी अज्ञात हैं, [28] वर्तमान में अधिकांश डॉक्टरों को लगता है कि रोगियों को होने वाले लाभ जोखिमों से अधिक हैं। [२ ९] अल्रा (यथोचित रूप से कम उचित) सिद्धांत को एक अल्ट्रासाउंड परीक्षा के लिए वकालत की गई है - यानी स्कैनिंग समय और शक्ति सेटिंग्स को यथासंभव कम रखना, लेकिन नैदानिक ​​इमेजिंग के अनुरूप - और उस सिद्धांत द्वारा गैर-चिकित्सीय उपयोग, जो कि परिभाषा है आवश्यक नहीं, सक्रिय रूप से हतोत्साहित किया जाता है। [३०]
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== इन्हें भी देखें ==
* [[सोनोग्राफी]] या [[सोनोग्राफी|पराश्रव्य चित्रण]]
* [[अपश्रव्य]]