"अनेकांतवाद": अवतरणों में अंतर
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{{जैन धर्म}}
'''अनेकान्तवाद''' [[जैन धर्म]] के सबसे महत्वपूर्ण और मूलभूत सिद्धान्तों में से एक है। मौटे तौर पर यह विचारों की बहुलता का सिद्धान्त है। अनेकावान्त की मान्यता है कि भिन्न-भिन्न कोणों से देखने पर सत्य और वास्तविकता भी अलग-अलग समझ आती है। अतः एक ही दृष्टिकोण से देखने पर पूर्ण सत्य नहीं जाना जा सकता। अनेकान्तवाद जैन धर्म का क्रोड सिद्धांत एव दर्शन है। दर्शन के क्षेत्र में जैन धर्म ने स्यादवाद(अनेकान्तवाद) का प्रतिपादन किया जो प्राचीन भारतीय दर्शनिक व्यवस्था की एक अमूल्य निधि मानी जाती है। इसके अनुसार प्रत्येक प्रकार का ज्ञान (मी, श्रुति , अवधि, मनः पर्याय) 7 स्वरूपो में व्यकत किया जा सकता है जो इस प्रकार है-
(A) है
(B) नहीं है
(C) है और नही है
(D) कहा नहीं जा सकता
(E) है किंतु कहा नहीं जा सकता
(F) नहीं है और कहा जा सकता
(G) नहीं है और कहा नहीं जा सकता
अनेकान्वाद को सप्तभंगी ज्ञान भी कहा जा सकता है।
==परिचय==
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