"बख्शाली पाण्डुलिपि": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Bakhshali numerals 1.jpg|right|thumb|400px|बख्शाली पाण्डुलिपि में प्रयोग किये गये अंक]]
'''बक्षाली पाण्डुलिपि''' या '''बख्शाली पाण्डुलिपि''' (''Bakhshali Manuscript'') प्राचीन [[भारत]] की [[गणित]] से सम्बन्धित [[पाण्डुलिपि]] है। यह [[भोजपत्र]] पर लिखी है। यह सन् १८८१ में [[बख्शाली|बख्शाली गाँव]] (तत्कालीन पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त; अब पाकिस्तान में, [[तक्षशिला]] से लगभग ७० किमी दूर ) में मिली थी।<ref>{{cite web|url=https://scroll.in/article/851466/how-the-invention-of-zero-helped-create-modern-mathematics|title=How India’s invention of zero helped create modern mathematics}}</ref> यह [[शारदा लिपि]] में है एवं [[गाथा|गाथा बोली]] ([[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] एवं [[प्राकृत]] का मिलाजुला रूप) में है। यह पाण्डुलिपि अपूर्ण है। इसमें केवल ७० 'पन्ने' (या पत्तियाँ) ही हैं जिनमें से बहुत ही बेकार हो चुकी हैं। बहुत से पन्ने अप्राप्य हैं।
 
==परिचय==
शायद यह संस्कृत में [[अंकगणित]] पर लिखी गई सबसे पुरानी रचना है जिसे सम्भवतः सातवीं शताब्दी में संकलित किया गया होगा। इसे किसने संकलित किया, इसका कोई उल्लेख नहीं है। [[कोलकाता]] की [[एशियाटिक सोसायटी|एशियाटिक सोसाइटी]] ने ‘गणितावली’ नामक ग्रन्थ का प्रकाशन करवाया है। इस ग्रन्थ की पुष्पिका से इतना जरूर पता चलता है कि सुखदास नामक एक [[कायस्थ]] ने रामपालदेव के शासनकाल में शक संवत 1615 या 1715 में यह पूरी सामग्री कहीं से हासिल की थी। इस सामग्री की एक अद्वितीय प्रति एशियाटिक सोसाइटी के संग्रह में सुरक्षित है। ग्रन्थ के शुरुआती पन्नों में कई खामियां हैं, हालांकि बाद के पन्नों में अधिकांश सामग्री सुवाच्य है।
 
[[सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय]] [[वाराणसी]] के सरस्वती भवन के विभूतिभूषण भट्टाचार्य ने इस सामग्री का सम्पादन किया, लेकिन दुर्भाग्य यह रहा कि उनका देहान्त हो गया। अन्ततः मानबेंदु बनर्जी और प्रदीप कुमार मजूमदार ने अंकगणित, प्रारम्भिक रेखागणित और क्षेत्रमिति (मापन) की सामग्री वाले इस ग्रन्थ का सम्पादन किया। यह ज्योतिषियों की हैण्डबुक है जिसमें गणित व [[खगोल शास्त्र]] के कुछ विषय शामिल हैं। इस ग्रन्थ के अज्ञात लेखकों ने अपने शुरुआती वाक्यों में साफ कर दिया है कि यह पुस्तक उन कायस्थों या हिसाब-किताब रखने वालों के लिए हैं जो गणित का बेहद प्रारम्भिक ज्ञान हासिल करना चाहते हैं।
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==कुछ प्रमुख तथ्य==
 
* शून्य को एक '''[[बिंदु|बिन्दु]]''' (dot) के रूप में निरूपित किया गया है और इसे ''''शून्यस्थान'''' कहा गया है। आगे चलकर इसे 'शून्यबिन्दु' कहा जाने लगा (देखिए, [[वासवदत्ता]])।
 
* अज्ञात संख्या (जिसे आजकल '''x''' लिखा जाता है) को भी बिन्दु द्वारा निरूपित किया गया है।