"ग्रन्थ लिपि": अवतरणों में अंतर

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|नाम=ग्रंथ
|प्रकार=[[अबुगिडा]]
|भाषाएँ=[[संस्कृत भाषा|संस्कृत]], [[मणिप्रवालम्]]
|काल=६वीं सदी से १६वीं सदी<ref>http://www.ancientscripts.com/grantha.html</ref>
|परिवार१=[[ब्राह्मी]]
|परिवार२=दक्षिणी ब्राह्मी
|परिवार३=पल्लव
|भगिनियाँ= [[वट्टेऴुत्तु|वट्टेळुत्तु]]
|संतति=[[मलयालम लिपि]], [[सिंहल लिपि]], [[तुलू भाषा|तुळु लिपि]], [[तमिल लिपि]]
|नमूना=Grantha_Kalidasa_Kumarasambhavam.svg
|छविआकार=400px
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}}
{{ब्राह्मी}}
'''ग्रंथ लिपि''' ([[तमिल]]: கிரந்த ௭ழுத்து, [[मलयालम भाषा|मलयालम]]: {{lang|ml|ഗ്രന്ഥലിപി}}, [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]]: ग्रन्थ अर्थात् "पुस्तक") [[दक्षिण भारत]] में पहले प्रचलित एक प्राचीन लिपि है। आमतौर पर यह माना जाता है कि ये लिपि एक और प्राचीन भारतीय लिपि [[ब्राह्मी]] से उपजी है। [[मलयालम भाषा|मलयालम]], [[तुलू भाषा|तुळु]] व [[सिंहल लिपि]] पर इसका प्रभाव रहा है। इस लिपि का एक और संस्करण "पल्लव ग्रंथ", [[पल्लव]] लोगों द्वारा प्रयोग किया जाता था, इसे "पल्लव लिपि" भी कहा जाता था। कई दक्षिण भारतीय लिपियाँ, जेसे कि [[म्यान्मार|बर्मा]] की [[मोन]] लिपि, [[इंडोनेशिया]] की [[जावाई लिपि]] और [[खमेर लिपि|ख्मेर लिपि]] इसी संस्करण से उपजीं।<ref>[http://www.ancientscripts.com/khmer.html]</ref>यह लिपि दक्षिण भारत की प्राचीन लिपियों में एक है। मलयालम, तुळु व सिंहल लिपि पर इसका प्रभाव रहा है। इस लिपि का एक और संस्करण “पल्लव ग्रंथ”, पल्लव लोगों द्वारा प्रयोग किया जाता था, इसलिए इसे “पल्लव लिपि” भी कहा जाता था। कई दक्षिण भारतीय लिपियाँ, जेसे कि बर्मा की मोन लिपि, इंडोनेशिया की जावाई लिपि और ख्मेर लिपि इसी संस्करण से उपजीं हैं।
 
== संस्कृत और ग्रंथ ==
 
अब तो [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] लिखने के लिए प्रायः [[देवनागरी]] लिपि का ही इस्तेमाल होता है, लेकिन [[दक्षिण एशिया]] के [[तमिल]]-भाषी क्षेत्रों में १९वीं सदी तक संस्कृत लिखने के लिए ग्रंथ लिपि का ही इस्तेमाल होता था। विद्वानों का मानना है कि ५वीं सदी में [[वेद|वैदिक]] पुस्तकों को पहली बार लिखने के लिए (इसके पूर्व भी यह पीढ़ी दर पीढ़ी बोल के और याद कर के ही सीखे और समझे जाते थे) ग्रंथ लिपि का प्रयोग हुआ था<ref>[http://www.oration.com/~mm9n/articles/dev/04Sanskrit.htm संस्कृत<!--Bot-generated title-->]</ref>। २०वीं सदी के प्रारंभ में धार्मिक और विद्वत्तापूर्ण ग्रंथों में ग्रंथ लिपि के बदले देवनागरी का प्रयोग होने लगा और आम लोक-केंद्रित प्रकाशनों में [[विशेष चिह्न|विशेष चिह्नों]] के साथ [[तमिल लिपि]] का इस्तेमाल होने लगा।
 
ग्रंथ लिपि का प्रयोग तमिल-संस्कृत [[मणिप्रवालम]] लिखने के लिए भी किया जाता था, यह तमिल और संस्कृत के मिश्रण से बनी एक भाषा है जिसका प्रयोग संस्कृत के लेखों की टीका के लिए होता है। यह विकसित होते-होते काफ़ी जटिल लेखन प्रणाली में परिवर्तित होती गई, जिसमें तमिल शब्दों को [[तमिल वर्णमाला|तमिल वट्टेलुतु]] में और संस्कृत के शब्दों को ग्रंथ लिपि में लिखा जाता था। १५वीं सदी तक इसका विकास इस स्तर तक हो गया था कि दोनो लिपियों का प्रयोग एक ही शब्द तक में होता था - यदि शब्द की धातु संस्कृत आधारित हो तो वह ग्रंथ में लिखी जाती, किंतु यदि शब्द में तमिल प्रत्यय हों तो वे तमिल वट्टेलुतु में लिखे जाते। जैसे जैसे मणिप्रवालम की लोकप्रियता घटती गई, इस लेखन शैली का इस्तेमाल कम होता गया, लेकिन २०वीं सदी के मध्य तक मूलतः मणिप्रवालम में लिखी पुस्तकों के मुद्रित संस्करणों में इसी परंपरा का निर्वाह होता रहा।
 
आधुनिक समय में ग्रंथ लिपि का प्रयोग कुछ पारंपरिक तमिल-भाषी [[हिंदूहिन्दू धर्म|हिंदुओं]] द्वारा किया जाता है। विशेष तौर पर इसका प्रयोग नामकरण पर किसी शिशु का सबसे पहले नाम लिखने के लिए होता है और [[विवाह]] के आमंत्रणों के संस्कृत अंश को लिखने के लिए तथा अंतिम संस्कार की घोषणाओं के लिए होता है। कई पंचांगों में भी इसका प्रयोग होता है।
 
भूतपूर्व [[तुलू भाषा|तुळु लिपि]] को ग्रंथ लिपि कहते थे।
 
== दिवेस और ग्रंथ ==
[[दिवेस अकुरु]] का प्रयोग १२वीं से १७वीं सदी के बीच [[मह्ल भाषा|दिवेही भाषा]] लिखने के लिए होता था। इस लिपि के ग्रंथ से बहुत गहरे संबंध हैं।
 
== [[तुळुतुलू लिपिभाषा|तुळु-]]-[[मलयालम लिपि]] ==
तुळु-मलयालम लिपि को पारंपरिक ग्रंथ कहा जाता है; १३०० ईसवीं के करीब से आधुनिक लिपि का प्रयोग हो रहा है। आज कल दो संस्करणों का प्रयोग होता है: ब्राह्मणी, या चौकोर और जैन, या गोल। तुळु-मलयालम लिपि ८वीं या नवीं सदी की ग्रंथ लिपि का एक संस्करण है। संभव है कि आधुनिक तमिल लिपि भी ग्रंथ से ही आई हो, पर यह निश्चित रूप से ज्ञात नहीं है।[http://www.britannica.com/eb/topic-608729/Tulu-Malayalam-script]
 
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=== पल्लव ग्रंथ ===
 
प्राचीन व आलंकारिक ग्रंथ को पल्लव ग्रंथ कहा जाता है। पल्लवों के शिलालेखों में इनका प्रयोग होता था। आलंकारिक ग्रंथ काफ़ी जटिल व अलंकृत थी, अतः यह संभव नहीं है कि इसका प्रयोग रोजमर्रा के लेखन में भी होता हो, संभवतः इसका इस्तेमाल केवल शिलालेखों में होता होगा। [[महाबलिपुरम|महाबलीपुरम]] के शिलालेख, [[तिरुचिरपल्ली]] की पत्थर कटी के गुफाओं के शिलालेख और कैलाशंत शिलालेख इसी श्रेणी में आते हैं।
 
=== संक्रांतिकालीन ग्रंथ ===
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=== मध्यकालीन ग्रंथ ===
 
[[तंजवुर]] के [[चोल राजवंश|चोल]] वंश के साम्राज्यीय शिलालेख मध्यकालीन ग्रंथ के उदाहरण हैं। यह शैली ९५० ईसवीं से १२५० ईसवीं के बीच प्रचलित थी।
 
=== आधुनिक ग्रंथ ===
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[[चित्र:Grantha Consonants.svg]]
 
अन्य [[ध्वन्यात्मक लिप्यन्तरण|ध्वन्यात्मक]] लिपियों की तरह ग्रंथ व्यंजन चिह्नों में [[अंतर्निहित व्यंजन]] अ मौजूद है। अ के स्वर की अनुपस्थिति हलंत से दर्शाई जाती है:
[[चित्र:Grantha Halant.svg]]
 
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=== व्यंजनों के संयुक्ताक्षर ===
ग्रंथ में दो प्रकार के व्यंजन संबंधित संयुक्ताक्षर हैं। "उत्तरी" प्रकार के संयुक्ताक्षरों में [[देवनागरी]] जैसी उत्तरी लिपियों की तरह दो या अधिक व्यंजनों को मिला के संयुक्ताक्षर बनता है। (ऐसे कई उदाहरण दक्षिण की [[मलयालम लिपि]] में भी मिलते हैं।) "दक्षिणी" प्रकार में अक्षरों को एक दूसरे के ऊपर नीचे क्रम में रखा जाता है जैसे कि दक्षिण की [[कन्नड़]] और [[तेलुगू भाषा|तेलुगु]] लिपियों में होता है (और कुछ हद तक [[मलयालम भाषा|मलयालम]] और [[ओड़िया भाषा|उड़िया]] लिपियों में भी यही होता है)।
 
उत्तरी प्रकार के संयुक्ताक्षर
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== लेखन के नमूने ==
हरेक ग्रंथ लिपि के नमूने के बाद उसका रोमन ([[ISO 15919|आईएसओ १५९१९]]) और [[देवनागरी]] लिपियों में [[लिप्यन्तरण|लिप्यंतरण]] भी है।
 
'''उदाहरण १: [[कालिदास]] के कुमारसंभवम् से'''