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[[चित्र:Kurma, the tortoise incarnation of Vishnu.jpg|right|thumb|300px|समुद्रमन्थन के लिये '''वासुकी''' ने रस्सी का काम किया।]]
'''वासुकी''' प्रसिद्ध [[नागराज]] जिसकी उत्पत्ति प्रजापति कश्यप के औरस और रुद्रु के गर्भ से हुई थी। इसकी पत्नी शतशीर्षा थी। नागधन्वातीर्थ में देवताओं ने इसे नागराज के पद पर अभिषिक्त किया था। [[शिव]] का परम भक्त होने के कारण यह उनके शरीर पर निवास था। जब उसे ज्ञात हुआ कि नागकुल का नाश होनेवाला है और उसकी रक्षा इसके भगिनीपुत्र द्वारा ही होगी तब इसने अपनी बहन जरत्कारु को ब्याह दी। जरत्कारु के पुत्र आस्तीक ने [[जनमेजय]] के [[जनमेजय|नागयज्ञ]] के समय सर्पों की रक्षा की, नहीं तो सर्पवंश उसी समय नष्ट हो गया होता। [[समुद्र मन्थन|समुद्रमंथन]] के समय वासुकी ने पर्वत का बाँधने के लिए रस्सी का काम किया था। त्रिपुरदाह के समय वह शिव के [[धनुष]] की डोर बना था।
 
[[श्रेणी:पौराणिक पात्र]]