"वाणिज्यवाद": अवतरणों में अंतर

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'''वाणिज्यवाद''' (Mercantilism) १६वीं से १८वीं शदी में [[यूरोप]] में प्रचलित एक [[आर्थिक सिद्धान्त]] तथा व्यवहार का नाम है जिसके अन्तर्गत राज्य की शक्ति बढ़ाने के उद्देश्य से राष्ट्र की अर्थव्यवस्थाओं का सरकारों द्वारा नियंत्रण को प्रोत्साहन मिला।
 
[[वाणिज्यिक क्रांति|व्यापारिक क्रांति]] ने एक नवीन आर्थिक विचारधारा को जन्म दिया। इसका प्रारम्भ सोलहवीं सदी में हुआ। इस नवीन आर्थिक विचारधारा को वाणिज्यवाद, वणिकवाद या व्यापारवाद कहा गया है। [[फ़्रान्स|फ्रांस]] में इस विचारधारा को '''कोल्बर्टवाद''' और [[जर्मनी]] में '''केमरलिज्म''' कहा गया। 1776 ई. में प्रसिद्ध अर्थशास्त्री [[एडम स्मिथ]] ने भी अपने ग्रन्थ ‘[[द वेल्थ ऑफ नेशन्स]]' में इसका विवेचन किया है।
 
==परिचय==
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==वाणिज्यवाद के उदय और विकास के कारण==
[[चित्र:Lorrain.seaport.jpg|right|thumb|300px|क्लाड लोरेन (Claude Lorrain) द्वारा सन् 1639 के आसपास चित्रित एक फ्रान्सीसी पत्तन का दृष्य; उस समय वाणिज्यवाद अपने चरमोत्कर्ष पर था।]]
(1) '''समुद्री यात्राएं और भौगोलिक खोजें''' - [[क्रिस्टोफ़र कोलम्बस|कोलम्बस]], [[वास्को द गामा|वास्कोडिगामा]], [[अमेरिगो]], [[मेगलन]], [[जान केबाट]] जैसे साहसी नाविकों ने जोखिमभरी समुद्री यात्राएँ करके अनेक नये देशों की खोज की। वहाँ धीरे-धीरे नई वस्तियाँ बसायी गयीं। यूरोप के पश्चिमी देशों ने विशेषकर स्पेन, पुर्तगाल, हालैण्ड, फ्रांस और इंग्लैण्ड ने नये खोजे हुए देशों में अपने-अपने उपनिवेश और व्यापारिक नगर स्थापित किए। इन उपनिवेशों से चमड़ा, लोहा, रुई ऊन आदि कच्चा माल प्राप्त कर अपने देश में इनसे नवीन वस्तुएँ निर्मित कर उपनिवेशों को निर्यात के रूप में भेजी और बदले में वहाँ से प्रचुर मात्रा में स्वर्ण और चांदी प्राप्त की। इससे पूँजी का संचय हुआ, आयात-निर्यात बढ़ा और देश समृद्ध हुआ।
 
(2) '''पुनर्जागरण का प्रभाव''' - [[पुनर्जागरण]] ने यूरोप में नवीन वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ-साथ मानवजीवन के प्रति अधिक अभिरुचि और आकांक्षाएँ उत्पन्न की। मानव जीवन को अधिक रुचिकर और सुख-सुविधा सम्पन्न बनाने की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन दिया गया। इससे [[भौतिकवाद]] की वृद्धि हुई। भौतिक सुख-सुविधाओं की पूर्ति के लिए पर्याप्त धन की माँग बढ़ी और यह बढ़ता हुआ धन वाणिज्य-व्यापार और उद्योग-धंधों से ही प्राप्त हो सकता था। इससे वाणिज्यवाद को प्रोत्साहन मिला।
 
(3) '''मुद्रा प्रचलन और बैंकिंग प्रणाली''' - विभिन्न व्यवसायों, उद्योग-धंधों और वाणिज्य-व्यापार बढ़ जाने से व्यवसाय और व्यापार प्रणालियों में संशोधन, सुधार और परिवर्तन हुए। वैज्ञानिक अन्वेषणों के आधारों पर उद्योग-धंधों में अधिकाधिक उत्पादन और व्यापार में वस्तुओं का अधिकाधिक क्रय-विक्रय होने लगा। इससे [[मुद्रा (भाव भंगिमा)|मुद्रा]] प्रचलन बढ़ा और आधुनिक [[बैंकिंगबैंक]]िंग प्रणाली का प्रारंभ और विकास हुआ। बैंकों ने अपने जमा धन को अन्य व्यापारियों, व्यवसायियों और उद्योगपतियों को उसकी साख पर उधार दिया और उनके व्यापारिक वस्तुओं के क्रय-विक्रय संबंधी भुगतान को सरलता से किया। इससे वाणिज्यवाद को अधिकाधिक प्रोत्साहन मिला। धीरे-धीरे अधिकाधिक पूँजी को व्यापारियों को उपलब्ध कराने हेतु जाइंट स्टाक कंपनियाँ स्थापित की गयीं और उनका विकास किया गया। इन जाइंट स्टाक कंपनियों और बैंकों में अनेक लोगों की बचत का धन संचित हो रहा था। इस धन को बड़े-बड़े उद्योगों और विदेशी व्यापार में लगाया गया। विशाल पैमाने पर बड़े कारखाने स्थापित और विकसित हुए। इससे विशाल पैमाने पर वस्तुओं का उत्पादन बढ़ा, बड़ी मात्रा में वस्तुओं का वितरण और क्रय-विक्रय होने लेगा। इससे देशी और विदेशी व्यापार तथा वाणिज्यवाद का एक नवीन युग प्रारंभ हुआ।
 
(4) '''नवोदित राष्त्र राज्यों द्वारा प्रोत्साहन और संरक्षण''' - यूरोप में पंद्रहवीं और सोलहवीं सदी में राष्ट्रीय राज्यों का उदय और विकास हुआ। इन बलशाली राष्ट्रीय राजाओं ने देश में आंतरिक शांति स्थापित की और बाहरी आक्रमणों से देश को सुरक्षा प्रदान की। सुरक्षा और शांति के वातावरण में उद्योग-धंधे और देशी-विदेशी व्यापार बढ़ा और राष्ट्रीय राजाओं ने सोने-चांदी के आयात को प्रोत्साहित किया। इसी बीच व्यापारियों से कर के रूप में पर्याप्त धन प्राप्त हो जाने से राष्ट्रीय राजाओं ने युद्ध किये और अपने राज्य की सीमाओं का विस्तार किया तथा अन्य महाद्वीपों में अपने नये उपनिवेश स्थापित किए। उन्होंने उद्योगपतियों और व्यापारियों को प्रोत्साहित किया कि वे उपनिवेशों से व्यापार करके अपनी धन-सम्पत्ति बढ़ावें। फलतः उत्तरोत्तर बढ़ता हुआ व्यापार और देश की आर्थिक समृद्धि राष्ट्रीय राज्य की शक्ति बन गयी। इन परिस्थितियों मेंं वाणिज्यवाद और [[पूंजीवाद|पूँजीवाद]] खूब फले-फूले।
 
==वाणिज्यवाद का महत्व और परिणाम==
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(5) '''कृषि की उपेक्षा''' - वाणिज्यवाद के समर्थकों ने उद्योग-धंधों और व्यवसायों के अधिकतम विकास पर बल दिया। इससे [[कृषि]] का क्षेत्र अविकसित और पिछड़ा रह गया। किसी भी देश की आर्थिक समृद्धि के लिए कृषि और उद्योग-धंधों का संतुलित विकास होना चाहिए।
 
(6) '''लोक कल्याण का अभाव''' - वाणिज्यवाद ने राजनीतिक क्षेत्र में राज्य और शासक और आर्थिक क्षेत्र में उद्योग-धंधों और व्यापार को अधिक महत्व दिया। [[सर्वहारा|सर्वहारा वर्ग]] या दरिद्र जनता या आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के हित में, लोक कल्याण में कोई अभिरुचि नहीं ली, इसके लिए कोई योजना या सिद्धांत नहीं थे। वाणिज्यवाद में गरीबों, शिल्पियों, श्रमिकों का शोषण हुआ।
 
(7) '''राजसत्ता और राजभक्ति में वृद्धि''' - वाणिज्यवाद के समर्थकों, व्यापारियों और उद्योगपतियों ने शक्तिशाली राज्य का समर्थन किया क्योंकि उनके हित संवर्धन के लिए सशक्त राजा ही आंतरिक शांति और बाह्य सुरक्षा प्रदान कर सकता था। कालांतर में देश में धन की प्रचुरता और समृद्धि से बलशाली राजा निरंकुश स्वेच्छाचारी शासक हो गये। राजाओं और शासकों ने अपनी शक्तियों अधिकारों का दुरुपयोग किया। कालांतर में उनकी निरंकुशता के विरूद्ध विद्रोह हुए। उपरोक्त कारणों से वाणिज्यवाद के विरूद्ध तीव्र अंसतोष फैलने लगा और 19वीं सदी में परिवर्तित परिस्थितियों में इसके सिद्धांतों का विरोध हुआ। इन्हीं कारणों से वाणिज्यवाद का ह्रास हो गया।