"कुआँ": अवतरणों में अंतर
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[[File:Well, Historical Village , Bhaini Sahib, Ludhyana , Punjab , India.JPG|thumb|Well, Historical Village , Bhaini Sahib, Ludhyana , Punjab , India]]
[[चित्र:Well 2006 03.jpg|right|thumb|300px|चेन्नई में एक कुँवा]]
'''कुआँ:--धरती से स्वक्ष पानी निकालने का सबसे पहला और सरल तरीका कुआँ है।कुआँ का आकार गोलाकार या वृत के समान होते हैं।इसका ब्यास 3 फिट से 8फिट तक हो सकती है।इसकी गहराई 30फिट से लेकर 100फिट तक हो सकती है ।इसका निर्माण मनुष्य आज के किसी भी प्रकार के मशीनरी के उपयोग बिना भी किया जा सकता है।कुआँ का निर्माण के लिए तबतक खुदाई की जाती है जब तक की बालू से रिसते हुये स्वच्छ पानी जमा न होने लगे।कुआँ के निमार्ण से धरती में सबसे कम गहराई में पानी का लेयर बनाकर पानी निकाल सकते हैं।कुआँ का पानी जीवंत अवस्था में होतीं हैं और आज के किसी भी मशीनरी में पानी मृत अवस्था में हो सकती है।कुआँ का निर्माण मनुष्य के जीवन-चक्र शुरू होने के समय से ही होता चला आ रहा है।इसके स्वरूप में बदलाव होते चले आ रहे हैं।कह सकते हैं कि कुआँ मनुष्य के जीवन होने मे अहम योगदान है।एक ऐसा भी पूरी दुनिया में समय आयेगा जब पीने के पानी के लिए मनुष्य को दोबारा कुआँ की पद्धति पर लौटना होगा।धरती पर प॔यावरण के सुरक्षा के लिए पेड़ और कुआँ दोनों ही बहुत जरूरी है।आज धरती से पानी का लेयर घटता चला जा रहा है,जिसका मुख्य कारण कुआँ का नहीं होना है।क्योकी बरसात के पानी को जमीन की गहराई में ले जाने का कुआँ का अहम योगदान है।सरकार को कुआँ खुदवाने पर बिशेष ध्यान देना चाहिए।कुआँ खुदवाना सबसे बड़ा पूण्य का काम होता है।इसलिए मनुष्य को अपने आने वाले पीढियों की सुरक्षा के लिए कुआँ का निर्माण करना होगा ।'''
शिव शंकर कुमार भटृ,मो0-काश्मीर गंज,पोस्ट-मसौढी,जिला- पटना, बिहार,भारत, पिन कोड-804452,मो0-9308852750
==कुएँ का अन्य प्रयोग==
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