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[[चित्र:1903 Tractor.JPG|right|thumb|300px|१९०३ के आसपास हस्त-निर्मित पेट्रोलचालित ट्रैक्टर]]
[[चित्र:CASE Black Lady vr.jpg|thumb|300px|वाष्पचालित 'ब्लैक लेडी' ट्रैक्टर (१९११)]]
सबसे पहले शक्ति-चालित कृषि उपकरण उन्नीसवीं शताब्दी के आरम्भ में आये। इनमें पहियों पर जड़ा एक वाष्प-इंजिन हुआ करता था। एक बेल्ट की सहायता से यह सम्बन्धित कृषि उपकरण को चलाता था। इन्हीं मशीनों में तकनीकी सुधार और विकास के परिणामस्वरूप सन १८५० के आसपास पहला ट्रैक्टर का अविर्भाव हुआ। इसके बाद इनका कृषि कार्यों में जमकर प्रयोग हुआ। ट्रैक्टरों में वाष्प-चालित इंजन बीसवीं शताब्दी में भी बहुत वर्षों तक आते रहे। जब [[अंतर्दहनअन्तर्दहन इंजन|आन्तरिक ज्वलन इन्जन]] (इन्टर्नल कम्बश्शन इंजिन) पर्याप्त रूप से विश्वसनीय बनने लगे तब इस नयी प्रौद्योगिकी पर आधारित ट्रैक्टरों ने पुरानी प्रौद्योगिकी का स्थान ले लिया।
 
सन १८९२ में '''जान फ्रोलिक''' ने पहला पेट्रोल चालित ट्रैक्टर बनाया। इसके केवल दो ही ट्रैक्टर बिके। इसके बाद सन १९११ में '''ट्विन सिटी ट्रैक्टर इंजन कम्पनी''' ने एक डिजाइन विकसित की जो सफल रही।
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भाप-ट्रैक्टर की इन त्रुटियों के कारण अन्वेषकों का ध्यान अंतर्दहन इंजन की ओर आकर्षित हुआ। 19वीं शताब्दी के अंत में प्रथम गैस ट्रैक्टर का निर्माण किया गया। 1905 ई. तक गैस ट्रैक्टर का व्यवहार खेतों में होने लगा। इसमें चार पहियों पर स्थित भारी पंजर (frame) पर एक बड़ा सिलिंडर गैस ईजंन लगा हुआ था। भाप ट्रैक्टर की तरह यह भी भारी भरकम था। इसमें ईंधन, जल आदि कम मात्रा में लगता था और एक ही आदमी पूरे यंत्र को नियंत्रित और संचालित कर सकता था। 1910 ईं. के लगभग अभिकल्पियों का ध्यान हल्के गैस ट्रैक्टर के निर्माण की ओर गया। 1913 ई. से दो एवं चार सिलिंडरोंवाले इंजन के हल्के गैस ट्रैक्टरों का निर्माण किया जाने लगा। उसके बाद विभिन्न प्रकर के गैस ट्रैक्टर का निर्माण किया जाने लगा, तब विभिन्न प्रकार के गैस ट्रैक्टर बनाए गए।
 
प्रथम [[डीज़ल इंजन|डीजल इंजन]] युक्त ट्रैक्टर का निर्माण 1931 ई. में किया गया। यद्यपि इस तरह के ट्रैक्टर का दाम अधिक था। फिर भी अनेक गुणों के कारण इसकी माँग अधिक थी। ट्रैक्टर में निम्नदाब वायवीय टायर का व्यवहार सर्वप्रथम 1932 ई. में हुआ था। आजकल भी ट्रैक्टर के विकास के लिये अन्वेषण कार्य हो रहे हैं।
 
== ट्रैक्टर के प्रकार ==
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==== ईंधन ====
अंतर्दहन इंजन में व्यवहृत ईंधन गैसीय ईंधन या (तरल ईंधन होते हैं। '''गैसीय इंधन''' भी [[प्राकृतिक गैस]] या कृत्रिम गैस - वातभ्रष्ट गैस, कोक चूल्हा गैस या [[उत्पादक गैस]] - हो सकता है। '''तरल ईंधन''' में पेट्रोल, किरासन, [[डीज़ल|डीजल]]] तेल, [[अल्कोहल|एल्कोहल]] आदि आते हैं।
 
ईंधन को जलाने के साधन के अनुसार ट्रैक्टर ईंजन दो प्रकार के होते हैं: प्रथम, संपीडन प्रज्वलन इंजन (Compression Ignition engine) और द्वितीय, स्फुलिंग प्रज्वलन इंर्जन (Spark Ignition engine)। प्रथम प्रकार के इंजन में चूषण स्ट्रोक (suction stroke) में केवल वायु सिलिंडर में प्रवेश करती है और वहाँ पर यह संपीडन स्ट्रोक (compression stroke) में संपीडित होती है। इस स्ट्रोक के पूर्ण होने के लगभग अंत:क्षेपक (injector) द्वारा ईंधन सूक्ष्मकणों के रूप में गर्म संपीडित वायु में अंत:क्षेपित (inject) किया जाता है जिससे दहन (combustion) होता है। इस तरह के ईंजन में डीजल तेल का व्यवहार किया जाता है। द्वितीय प्रकार के स्फुलिंग प्रज्वलन इंजन में ईंधन और वायु का संमिश्रण कार्बूरेटर (carburettor) नामक भाग में होता है और वहाँ से चूषण स्ट्रोक द्वारा यह मिश्रण सिलिंडर में प्रवेश करता है। सिलिंडर में संपीडन स्ट्रोक द्वारा मिश्रण के संपीडित होते ही स्फुलिंग प्लग द्वारा दहन संपन्न होता है। इस तरह के ईंधन में पेट्रोल और गैस का व्यवहार किया जाता है। दहन के बाद उपर्युक्त दोनों प्रकार के इंजन में प्रसार स्ट्रोक होता है जिसमें शक्ति प्राप्त होती है। प्रसार के अंत में जली हुई गैस निम्न दाब पर रह जाती है जिसे निकास (exhaust) स्ट्रोक द्वारा बाहर निकालकर चक्र की पुनरावृत्ति होती है।