"पुनर्वसु": अवतरणों में अंतर

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{{About|ऋषि }}
'''पुनर्वसु''' [[मात्रेयसंहिता]] के रचयिता एवं [[आयुर्वेद|आयुर्वेदाचार्य]] थे। [[अत्रि ऋषि]] के पुत्र होने के कारण इन्हें पुनर्वसु आत्रेय कहा जाता है। अत्रि ऋषि स्वयं आयुर्वेदाचार्य थे। [[अश्वघोष]] के अनुसार, आयुर्वेद-चिकित्सातंत्र का जो भाग अत्रि ऋषि पूरा नहीं कर सके थे उसे इन्होंने पूर्ण किया था। [[चरक संहिता|चरकसंहिता]] के मूल ग्रंथ [[अग्निवेशतंत्र]] के रचयिता [[अग्निवेश]] के ये गुरु एवं [[भारद्वाज ऋषि|भरद्वाज ऋषि]] के समकालीन थे। इन्होंने अपने पिता एवं भरद्वाज ऋषि से आयुर्वेद की शिक्षा प्राप्त की थी। इनके रहने का कोई स्थान निश्चित नहीं था। पर्यटन करते हुए ये आयुर्वेद का उपदेश देते थे। आत्रेय के नाम पर लगभग तीस आयुर्वेदीय योग उपलब्ध हैं। इनमें बलतैल एवं अमृताद्य तैल का निर्देश चरकसंहिता में प्राप्त है।
 
== अन्य ==