"ईरान का इतिहास": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Persian warriors from Berlin Museum.jpg|thumb|right|360px|सुसा में दारुश (दारा) के महल के बाहर बने "अमर सेनानी"। यह उपाधि कुछ चुनिन्दा सैनिकों को दी जाती थी जो महल रक्षा तथा साम्राज्य विस्तार में प्रमुख माने जाते थे।]]
 
[[ईरान]] का पुराना नाम [[फ़ारस]] है और इसका इतिहास बहुत ही नाटकीय रहा है जिसमें इसके पड़ोस के क्षेत्र भी शामिल रहे हैं। इरानी इतिहास में साम्राज्यों की कहानी ईसा के ६०० साल पहले के [[हख़ामनी साम्राज्य|हख़ामनी]] शासकों से शुरु होती है। इनके द्वारा [[पश्चिमी एशिया|पश्चिम एशिया]] तथा [[मिस्र]] पर ईसापूर्व 530 के दशक में हुई विजय से लेकर अठारहवीं सदी में [[नादिर शाह|नादिरशाह]] के भारत पर आक्रमण करने के बीच में कई साम्राज्यों ने फ़ारस पर शासन किया। इनमें से कुछ फ़ारसी सांस्कृतिक क्षेत्र के थे तो कुछ बाहरी। फारसी सास्कृतिक प्रभाव वाले क्षेत्रों में आधुनिक ईरान के अलावा [[इराक़|इराक]] का दक्षिणी भाग, [[अज़रबाइजान|अज़रबैजान]], पश्चिमी [[अफ़ग़ानिस्तान|अफगानिस्तान]], [[ताजिकिस्तान]] का दक्षिणी भाग और पूर्वी [[तुर्की]] भी शामिल हैं। ये सब वो क्षेत्र हैं जहाँ कभी फारसी सासकों ने राज किया था और जिसके कारण उनपर फारसी संस्कृति का प्रभाव पड़ा था।
 
सातवीं सदी में ईरान में [[इस्लाम]] आया। इससे पहले ईरान में [[जरदोश्त]] के धर्म के अनुयायी रहते थे। ईरान [[शिया इस्लाम]] का केन्द्र माना जाता है। कुछ लोगों ने इस्लाम कबूल करने से मना कर दिया तो उन्हें यातनाएं दी गई। इनमें से कुछ लोग भाग कर [[भारत]] के [[गुजरात]] तट पर आ गए। ये आज भी भारत में रहते हैं और इन्हें [[पारसी]] कहा जाता है। [[सूफ़ीवाद]] का जन्म और विकास ईरान और संबंधित क्षेत्रों में ११वीं सदी के आसपास हुआ। ईरान की शिया जनता पर दमिश्क और बग़दाद के सुन्नी ख़लीफ़ाओं का शासन कोई ९०० साल तक रहा जिसका असर आज के अरब-ईरान रिश्तों पर भी देखा जा सकता है। सोलहवीं सदी के आरंभ में [[सफ़वी वंश]] के [[तुर्क]] मूल लोगों के सत्ता में आने के बाद ही शिया लोग सत्ता में आ सके। इसके बाद भी देश पर सुन्नियों का शासन हुआ और उन शासकों में [[नादिर शाह]] तथा कुछ अफ़ग़ान शासक शामिल हैं। औपनिवेशक दौर में ईरान पर किसी यूरोपीय शक्ति ने सीधा शासन तो नहीं किया पर अंग्रेज़ों तथा रूसियों के बीच ईरान के व्यापार में दखल पड़ा। १९७९ की [[ईरान की इस्लामी क्रांति|इस्लामिक क्रांति]] के बाद ईरान की राजनैतिक स्थिति में बहुत उतार-चढ़ाव आता रहा है। [[ईरान-इराक़ युद्ध|ईराक के साथ युद्ध]] ने भी देश को इस्लामिक जगत में एक अलग जगह पर ला खड़ा किया है।<ref>[http://www.britannica.com/ebi/article-202892 Iran Islamic Republic], विश्वकोश ब्रिटानिका को पुनः प्राप्त २३ जनवरी २००८</ref><ref name = "Britannica">[http://www.britannica.com/eb/article-32981 विश्वकोश ब्रिटानिका ] २३ जनवरी २००८</ref>
 
पिरानशहर शहर ईरान में 8000 साल के इतिहास के साथ सबसे पुरानी सभ्यता है। <ref>https://persiadigest.com/Piranshahrs-8000-year-old-artifacts-unearthed</ref> <ref>https://nation.com.pk/08-Jan-2019/8-000-years-old-artifacts-unearthed-in-iran</ref> <ref>https://pk.shafaqna.com/EN/AL/15972</ref> <ref>https://newspakistan.tv/8000-years-old-artifacts-unearthed-in-iran/</ref>
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{{main|हखामनी वंश}}
[[चित्र:Map achaemenid empire en.png|thumb|right|540px|प्राचीन ईरान का [[हख़ामनी साम्राज्य]] ५०० ईसापूर्व के आसपास]]
इस समय तक फारस मीदि साम्राज्य का अंग और सहायक रहा था। लेकिन ईसापूर्व ५४९ के आसपास एक फारसी राजकुमार सायरस (आधुनिक फ़ारसी में कुरोश) ने मीदि के राजा के खिलाफ़ विद्रोह कर दिया। उसने मीदि राजा एस्टिएज़ को पदच्युत कर राजधानी एक्बताना (आधुनिक [[हमादान]]) पर नियंत्रण कर लिया। उसने [[हख़ामनी साम्राज्य|हखामनी वंश]] (एकेमेनिड) की स्थापना की और मीदिया और फ़ारस के रिश्तों को पलट दिया। अब फ़ारस सत्ता का केन्द्र और मीदिया उसका सहायक बन गया। पर कुरोश यहाँ नहीं रुका। उसने लीडिया, एशिया माइनर ([[तुर्की]]) के प्रदेशों पर भी अधिकार कर लिया। उसका साम्राज्य तुर्की के पश्चिमी तट (जहाँ पर उसके दुश्मन ग्रीक थे) से लेकर [[अफ़ग़ानिस्तान|अफ़गानिस्तान]] तक फैल गया था। उसके पुत्र कम्बोजिया (केम्बैसेस) ने साम्राज्य को [[मिस्र]] तक फैला दिया। इसके बाद कई विद्रोह हुए और फिर दारा प्रथम ने सत्ता पर कब्जा कर लिया। उसने धार्मिक सहिष्णुता का मार्ग अपनाया। हाँलांकि दारुश (दारा या डेरियस) ने, यूनानी इतिहासकार हेरोडोटस के अनुसार, युवाओं का समर्थन प्राप्त करने की पूरी कोशिश की। उसने सायरस या केम्बैसेस की तरह कोई खास सैनिक सफलता तो अर्जित नहीं की पर उसने ५१२ इसापूर्व के आसपास य़ूरोप में अपना सैन्य अभियान चलाया था।
 
उसके बाद पुत्र खशायर्श (क्ज़ेरेक्सेस) शासक बना जिसे उसके मिस्र तथा बेबीलोन के विद्रोहों पर पुनर्विजय तथा ग्रीक अभियानों के लिए जाना जाता है। उसने [[एथेंस|एथेन्स]] तथा [[स्पार्टा]] के राजा को हराया। [[थर्मोपलै की लड़ाई]] में स्पार्टा के राजा [[लियोनैडस]] को उसने मार तो दिया पर फ़ारसी सेना को भी बहुत नुकसान पहुँचा। यूनानी कथाओं के अनुसार ३०० लोगों की एक सैन्य टुकड़ी ने फ़ारसी सेना को कई दिनों तक आगे बढ़ने से रोके रखा और बहुत नुकसान भी पहुँचाया। आगे चलकर उसने एक्रोपोलिस में एथेन्स पर कब्जा कियया तथा इसको जला दिया। बाद में उसे सलामिस के पास हार का मुँह देखना पड़ा जिसके बाद उसकी सेना को और भी प्रदेश हारने पड़े। ज़ेरेक्सेस के पुत्र अर्तेक्ज़ेरेक्सेस ने ४६५ ईसा पूर्व में गद्दी सम्हाली। उसने विस्थापरत यहूदियों को अपना मंदिर फिर से बनाने की इजाज़त दी। उसके बाद अर्तेक्ज़ेरेक्सेस द्वितीय, फिर अर्तेक्ज़ेरेक्सेस तृतीय और उसके बाद दारा तृतीय। दारा तृतीय के समय तक (३३६ ईसा पूर्व) फ़ारसी सेना काफ़ी संगठित हो गई थी। सेना में घुड़सवार अधिक मात्रा में हो गए थे और सैन्य कौशल भी बढ़ गया था।
 
=== सिकन्दर का आक्रमण ===
पर इसी समय मेसीडोनिया (मकदूनिया) में [[सिकंदर|सिकन्दर]] का उदय हो रहा था। ३३४ ईसापूर्व में सिकन्दर ने एशिया माईनर पर धावा बोल दिया। दारा को [[भूमध्य सागर]] के तट पर इसुस में हार का मुँह देखना पड़ा। इसके बाद सिकंदर ने तीन बार दारा को हराया। सिकन्दर इसापूर्व ३३० में पर्सेपोलिस आया और उसके फतह के बाद उसने शहर को जला देने का आदेश दिया। सिकन्दर ने ३२६ इस्वी में भारत पर आक्रमण किया और फिर वो वापस लौट गया। ३२३ इसापूर्व के आसपास, बेबीलोन में उसकी मृत्यु हो गई। उसकी मृत्यु के बाद उसके जीते फारसी साम्राज्य को इसके सेनापतियों ने अपने में विभाजित कर लिया।
 
=== पार्थियन ===
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[[चित्र:Scythia-Parthia 100 BC.png|thumb|left|360 px|ईसा के सौ साल पहले सीथियों (जिसके भारतीय परवर्ती [[शक]] नाम से जाने गए) और पार्थियनों का साम्राज्य]]
 
सिकन्दर के सबसे काबिल सेनापतियों में से एक था [[सेल्युकस]]। उसका नियंत्रण मेसोपोटामिया तथा इरानी पठारी क्षेत्रों पर था। लेकिन इसी समय से उत्तर पूर्व में पार्थियों का विद्रोह आरंभ हो गया था। पार्थियनों ने हखामनी शासकों की भी नाक में दम कर रखा था। पार्थियनों ने पश्चिम में रोमनों का समना किया और पूर्व में शकों (सीथियों) को। इमें उनका शासन प्रायः अशांत रहा। मित्राडेट्स ने ईसापूर्व १२३ से ईसापूर्व ८७ तक अपेक्षाकृत स्थायित्व से शासन किया। मित्रा़डेट्स ने रोमन सीरिया के गवर्नर (राज्यपाल) क्रेसस को कार्हे के युद्ध में हरा दिया। इस युद्ध में क्रेसस ने पार्थियनों के सेनापति ''सुरेन'' के साथ समझौता करने की भी कोशिश की, पर उसका अंत सिर कटने के बाद हुई। सुरेन के चरित्र को ही शायद बाद में दसवीं सदी में फ़ारसी कवि [[हकीम अबुल कासिम फिरदौसी तुसी|फिरदौसी]] ने अपने ग्रंथ [[शाहनामे]] (राजाओं का गुणगान) में ''रुस्तम'' नाम से अमर कर दिया है। रुस्तम न सिर्फ़ एक बहादुर सेनापति था बल्कि एक भावुक प्रेमी भी।
 
[[जुलियस सीसर|जूलियस सीज़र]] की हत्या के समय पार्थियनों ने कुछ रोमन क्षेत्रों पर अधिकार किया जिसमें मध्यपूर्व का इलाका भी शामिल है। अगले कुछ सालों तक शासन की बागडोर तो पार्थियनों के हाथ ही रही पर उनका नेतृत्व और समस्त ईरानी क्षेत्रों पर उनकी पकड़ ढीली ही रही। अगले कुछ वर्षों में रोमनों के साथ पार्य़ियनों के कई युद्ध हुए जिसमें कई बार पार्थियनों को हार का मुँह देखना पड़ा पर इसी समय उन्होंने पूर्व में [[पंजाब क्षेत्र|पंजाब]] में एक भारतीय-पार्थियन संस्कृति को जन्म दिया जिन्हें पहलवियों के नाम से जाना गया।
 
== सासानी वंश ==
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== इस्लाम का उदय और अरब ==
[[चित्र:Map of expansion of Caliphate.svg|400px|thumb|मुस्लिम साम्राज्य विस्तार के कालक्रम {{legend|#a1584e|पैग़म्बर मुहम्मद के नेतृत्व में, 622–632}} {{legend|#ef9070|[[राशिदून ख़लीफ़ा|राशिदुन]] ख़िलाफ़त के दौरान, 632–661}} {{legend|#fad07d|[[उमय्यद]] ख़िलाफ़त, 661–750}}]]
{{main|इस्लाम का उदय}}
इसी समय [[अरब]], [[मुहम्मद|मुहम्मद साहब]] के नेतृत्व में काफी शक्तिशाली हो गए थे। सन् ६३४ में उन्होने ग़ज़ा के निकट बेजेन्टाइनों को एक निर्णायक युद्ध में हरा दिया। फारसी साम्राज्य पर भी उन्होंने आक्रमण किए थे पर वे उतने सफल नहीं रहे थे। सन् ६४१ में उन्होने हमादान के निकट यज़्देगर्द को हरा दिया जिसके बाद वो पूरब की तरफ़ सहायता याचना के लिए भागा पर उसकी मृत्यु मर्व में सन् ६५१ में उसके ही लोगों द्वारा हुई। इसके बाद अरबों का प्रभुत्व बढ़ता गया। उन्होंने ६५४ में खोरासान पर अधिकार कर लिया और ७०७ ईस्वी तक बाल्ख।
 
==== शिया इस्लाम ====
{{main| शिया }}
मुहम्मद साहब की मृत्यु के उपरांत उनके वारिस को [[ख़िलाफ़त|ख़लीफा]] कहा जाता था जो इस्लाम का प्रमुख माना जाता था। चौथे खलीफा अली, मुहम्मद साहब के फरीक थे और उनकी पुत्री फ़ातिमा के पति। पर उनके खिलाफत को चुनौती दी गई और विद्रोह भी हुए। सन् ६६१ में अली की हत्या कर दी गई। इसके बाद उम्मयदों का प्रभुत्व इस्लाम पर हो गया। सन् ६८० में [[करबला]] में अली के दूसरे पुत्र हुसैन ने उम्मयदों के खिलाफ़ बगावत की पर उनको एक युद्ध में मार दिया गया। इसी दिन की याद में शिया मुसलमान महुर्रम मनाते हैं। इस समय तक इस्लाम दो खेमे में बट गया था - उम्मयदों का खेमा |और अली का खेमा। जो उम्मयदों को इस्लाम के वास्तविक उत्तराधिकारी समझते थे वे सुन्नी कहलाये और जो अली को वास्तविक खलीफा (वारिस) मानते थे वे शिया | सन् ७४० में उम्मयदों को तुर्कों से मुँह की खानी पड़ी। उसी साल एक फारसी परिवर्तित - अबू मुस्लिम - ने उम्मयदों के खिलाफ़ मुहम्मद साहब के वंश के नाम पर उम्मयदों के खिलाफ एक बड़ा जनमानस तैयार किया। उन्होंने सन् ७४९-५० के बीच उम्मयदों को हरा दिया और एक नया खलीफ़ा घोषित किया - अबुल अब्बास। अबुल अब्बास अली और हुसैन का वंशज तो नहीं पर मुहम्मद साहब के एक और फरीक का वंशज था। उससे अबु मुस्लिम की बढ़ती लोकप्रियता देखी नहीं गई और उसको ७५५ इस्वी में फाँसी पर लटका दिया। इस घटना को शिया इस्लाम में एक महत्त्वपूर्ण दिन माना जाता है क्योंकि एक बार फिर अली के समर्थकों को हाशिये पर ला खड़ा किया गया था। अबुल अब्बास के वंशजों ने कई सदियों तक राज किया। उसका वंश [[ख़िलाफ़त ए अब्बासिया|अब्बासी वंश]] (अब्बासिद) कहलाया और उन्होंने अपनी राजधानी [[बग़दाद|बगदाद]] में स्थापित की। उनका शासन अरब और पश्चिम एशियाई सेना तथा फ़ारसी साहित्य के प्रभाव के सम्मिलमन से बना। अरबी भाषा में विज्ञान, चिकित्सा तथा ज्योतिष के कई अविस्मरणीय योगदान ईरानियों ने मुख्यतः अरबी भाषा में किया। दसवीं सदी में पश्चिम एशिया के ईरानी मूल के बुवाई शासकों ने बग़दाद पर आक्रमण कर उसे हरा दिया और इस तरह अब्बसी ख़िलाफ़त की श्रेष्ठता पर विराम लगा दिया।
 
==== छोटे साम्राज्यों और विदेशी आक्रमण का काल ====
[[चित्र:Iran circa 1000AD.png|thumb|right|400px|सन् 1000 के आसपास का ईरान]]
सन् 920 में उत्तर-पूर्वी फ़ारस के ख़ोरासान में सामानी साम्राज्य का उदय हुआ। सामानी शासकों ने फारसी भाषा के विकास के प्रयास किये। इस्लाम के आगमन के बाद यह पहला मौका था जब किसी शासक ने ईरानी (या ग़ैर-अरबी) भाषा के विकास के प्रोत्साहन दिये।
उत्तर से सल्जूक तुर्क और उत्तरपूर्व से [[ग़जनवी]] शासकों ने ईरान पर कुछ समय के लिए आंशिक रूप से अधिकार किया। तेरहवी सदी में उस समय अमुस्लिम रहे [[मंगोल|मंगोलों]] के आक्रमण के बाद बगदाद का पतन हो गया और ईरान में फिर से कुछ सालों के लिए राजनैतिक अराजकता छाई रही। डेढ़ सौ सालों के बाद ईरान में [[तैमूरलंग|तैमूर लंग]] का भी आक्रमण हुआ। इस दौरान कविता और सूफ़ी विचारधारा का बहुत विकास हुआ।
 
=== सूफीवाद ===
{{main|सूफ़ीवाद}}
अब्बासिद काल में ईरान की प्रमुख घटनाओं में से एक थी [[सूफ़ीवाद|सूफ़ी]] आंदोलन का विकास। यद्यपि सूफ़ी आंदोलन तो अरब और [[इराक़]] के इलाके में जन्मा था पर उसको सम्पूर्ण रूप ईरान में ही मिला। सूफी वे लोग थे जो धार्मिक कट्टरता के शिकार थे और सरल जीवन पसन्द करते थ। इस काल ने फ़ारसी भाषा में अभूतपूर्व कवियों को जन्म दिया। [[रुदाकी]], [[हकीम अबुल कासिम फिरदौसी तुसी|फिरदौसी]], [[उमर खय्याम]], नासिर-ए-खुसरो, [[जलालुद्दीन रूमी|रुमी]], [[इराकी]], [[शेख़ सादी|सादी]], [[हाफ़िज़ शिराज़ी|हफ़ीज़]] आदि उस काल के प्रसिद्ध कवि हुए जिसमें कईयों को सूफ़ीवाद के प्रेणेता के रूप में जाता जाता है। इस काल की फारसी कविता को कई जगहों पर विश्व का सबसे बेहतरीन काव्य कहा गया है। रुदाकी (मृत्यु सन् ९४०) तथा फ़िरदौसी को उत्तर पूर्व में ख़ोरासान के [[सामानी]] तथा [[ग़जनवी]] शासकों की फ़ारसी साहित्य प्रोत्साहन के फायदे मिले। फिरदौसी के शाहनामे को इस्लाम-पूर्व ईरान के शासकों को महिमामंडित करने की पुस्तक के रूप में जाना जाता है जिसने उस काल की बोलचाल की फ़ारसी में समाहित हो चुके अरबी शब्दों का प्रयोग कम किया। बाद के शायरों ने हाँलांकि अरबी भाषा के शब्दों से परहेज नहीं किया और तेरहवीं सदी तक अरबी शब्द फ़ारसी के अंग बन गए। रूमी, इराक़ी तथा सादी १२१० के दशक में पैदा हुए थे और हाफ़िज़ उनके एक सदी बाद। आज भी ईरानियों में इस काल कवियों के प्रति बहुत आदरभाव है। इनमें से कई कवि सूफी विचारदारा से ओतप्रोत थे और अब्बासी शासन के अलावा कइयों को मंगोलों का जुल्म भी सहना या देखना पड़ा था। हाफ़िज़ के समय [[तैमूरलंग|तैमूर लंग]] के आक्रमण से फ़ारस परेशान था।
 
== साफ़वी वंश ==
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== नादिर शाह ==
{{main|नादिर शाह}}
सन् १७२९ में [[नादिर शाह|नादिर कोली]] ने अफ़गानों के प्रभुत्व को कम किया। उसने अपना जीवन विपन्नता से आरंभ किया था और फारस का शाह ही न बना बल्कि उसने उस समय ईरानी साम्राज्य के सबल शत्रु [[उस्मानी साम्राज्य]] और [[रूसी साम्राज्य]] को ईरानी क्षेत्रों से बाहर निकाला। वह एक तुर्क था पर उसने साफ़वियों को पश्चिम की ओर से आक्रांत ऑटोमन (उस्मानी) तुर्कों के ख़िलाफ़ मदद दी। इससे वह अवसानप्राय साफवियों की सेना में उच्च स्थान पा सका। तैमूर लंग को अपना आदर्श माने वाला नादिर कोली अफ़शरी कबाले का था और उसका जीवन उसकी सैन्य उपलब्धियों के लिए जाना जाता है। साफवी शाह तहमास्य (तहमाश्प) ने अफ़गानों को सप़वी राजधानी इस्फ़हान से भगाने के एवज में नादिर को ''कुली तपमास्य'' (तहमास्य का ग़ुलाम) की उपाधि दी थी जिसके बाद वो सफ़वी दरबार में एक सम्मानित व्यक्ति बन गया। इसके बाद उसने अफ़गानों और उस्मानों को शांत किया और [[भारत]] पर भी आक्रमण किया (१७३९)। मंगोल शाह आलम को पराजित करके वहाँ से कोई ७० करोड़ रूपयों के बराबर सम्पदा लेकर आया जिसमें [[कोहिनूर हीरा|कोहिनूर]] हीरा भी शामिल था। इसके अलावा उसने भयंकर मारकाट भी मचाई। उस समय के [[उर्दू भाषा|उर्दू]] [[कवि|शायर]] [[मीर तक़ी मीर]] (१७२३-१८१०) ने आक्रमण के पहले तथा बाद दिल्ली का वर्णन किया जिसमें पता चलता है कि नादिर कोली ने दिल्ली में कितनी तबाही मचाई थी। भारत से लौटने पर उसे पता चला कि उसके बेट रज़ा कोली (या रीज़ा कुली), जिसे उसने अपनी अनुपस्थिति में साम्राज्य देखरेख करने का जिम्मा सौंप के गया था, ने फ़ारस की गद्दी पर बैठे शाह तहमास्य की हत्या कर दी है। उस समय तक नादिर कोली शाह नहीं बना था बल्कि फ़ारसी साम्राज्य का सेनापति था। १७३६ में वो शाह बना (नादिर शाह)। इसके बाद वो दागेस्तान के विद्रोह को कुचलने गया जहाँ मिली असफलता उसे सताने लगी। इसके अलावा जब उसे ये सूचना कुछ सरदारों से मिली कि रज़ा उसे भी मारने का षडयंत्र रच रहा है तो उसने रज़ा को अंधा कर दिया। बाद में उसे जब पता चला कि रज़ा निर्दोष है तो उसे बहुत ग्लानि हुई और उन सरदारों पर गुस्सा आया जिन्होंने उसे अंधा करवाया था। उसने उन्हें मारने का आदेश दे दिया लेकिन फिर भी उसे अपने पर बहुत गुस्सा आया और उसके स्वभाव में परिवर्तन आने लगा। वो अत्याचारी और क्रूर बनता गया साथ ही कमज़ोर और बीमार भी हो चला था। पश्चिम में उस्मानों के खिलाफ़ भी वो अधिक सफल नहीं हो पाया और १७४६ में किए एक समझौते में उसे नज़फ़ तक से संतोष करना पड़ा। सन् १७४७ में उसकी हत्या कर दी गई। उसके मरने के बाद उसका साम्राज्य अधिक दिनों तक नहीं टिक सका। पर वो उस समय की कठिन परिस्थितियों में साम्राज्य को अविभाजित रखने के लिए याद किया जाता है।
 
== यूरोपीय प्रभुत्व का काल ==
{{main|ईरान में यूरोपीय हस्तक्षेप}}
कुछ दिनों बाद काजार वंश का शासन आया पर उस समय ईरान के तेल क्षेत्रों की खोज होने और इसके उस्मानी (इस्तांबुल के औटोमन तुर्क), भारतीय और रूसी क्षेत्रों के बीच स्थित होने के कारण रूसी, अंग्रेजों और फ्रांसीसी साम्राज्यों का प्रभाव बढ़ता ही गया। उत्तर से [[रूस]], पश्चिम से [[फ़्रान्स|फ्रांस]] तथा पूरब से [[ब्रिटेन]] की निगाहें फारस पर पड़ गईं। सन् १९०५-१९११ में यूरोपीय प्रभाव बढ़ जाने और शाह की निष्क्रियता के खिलाफ़ एक जनान्दोलन हुआ। इरान के तेल क्षेत्रों को लेकर तनाव बना रहा। [[पहला विश्व युद्ध|प्रथम विश्वयुद्ध]] में [[तुर्की]] के पराजित होने के बाद ईरान को भी उसका फल भुगतना पड़ा। कहा जाता है द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जर्मन नाज़ियों की उपस्थिति की आशंका को देखते हुए ब्रिटेन और रूस से जनता के परोक्ष रूप से ईरान की सत्ता पर अधिकार बना लिया था, लेकिन कागज़ी रूप से ऐसा कुछ नहीं हुआ।
 
== आधुनिक काल ==
रजा शाह ने १९३० के दशक में ईरान का आधुनिकीकरण प्रारंभ किया। पर वो अपने प्रेरणस्रोत तुर्की के [[कमाल पाशा]] की तरह सफल नहीं रह सका। उसने शिक्षा के लिए अभूतपूर्व बंदोबस्त किए तथा सेना को सुगठित किया। उसने तुर्की के कमाल पाशा की तरह देश के कार्यों में धर्म का प्रभाव कम किया। कट्टर इस्लामियों को जेल या देश निकाला की सज़ा दी गई। [[रुहोल्ला खोमैनी|अयातोल्लाह खुमैनी]] इसी के तहत पहले [[इराक़]], फिर [[इस्तांबुल|इस्ताम्बुल]] और उसके बाद [[पेरिस]] में रहे। उसके बाद १९७९ में एक और आन्दोलन हुआ जिसका कारण धार्मिक था। इसके फलस्वरूप [[पहलवी वंश]] का पतन हो गया और अयातोल्ला खोमैनी को सत्ता मिली। उनका देहांत १९८९ में हुआ। उनके शासन काल में ही इस्लामी प्रभाव के तहत उन्हें लेखक [[सलमान रुश्दी|सलमान रश्दी]] के ख़िलाफ़ [[फ़तवा]] जारी करना पड़ा। इसके बाद से ईरान में विदेशी प्रभुत्व लगभग समाप्त हो गया।
 
अभी ईरान में सख़्त इस्लामी नियम लागू हैं और महिलाओं को [[हिज़ाब]] पहनने की विवशता है। हंलाँकि तेल से पैसे आ जाने की वजह से शहरों में जनजीवन विलासिता पूर्ण है पर इस्लामिक कानून (शरियत) के सख़्त दायरे के भीतर रहकर। राष्ट्रपति [[महमूद अहमदीनेझ़ाद|अहमदी निज़ाद]] (अहमनदेनिजाद) पर अपने परमाणु कार्यक्रम रोकने की भरपूर अंतर्राष्ट्रीय दबाब बनाया जा रहा है। अमेरिका सहित कई देशों ने आर्थिक प्रतिबंध लगाने शुरू कर दिये हैं और इसरायल सैनिक कार्यवाही की धमकी दे रहा है।
 
== सन्दर्भ ==
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== इन्हें भी देखें ==
* [[फ़ारसी साम्राज्य|फारसी साम्राज्य]]
* [[पहलवी वंश]]
* [[ईरान की इस्लामी क्रांति]]