"जीवनचरित": अवतरणों में अंतर
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=== भारत में जीवनचरित ===
भारत में ई पू तीसरी शताब्दी के [[
बाद के मुगल बादशाहों में तो आत्मकथा लिखना चाव और रुचि की बात ही हो गई थी। बाबर से लेकर जहाँगीर तक सभी ने आत्मकथाएँ लिखी हैं जो क्रमश: इस प्रकार है -- [[बाबरनामा]], [[हुमायूनामा]], [[अकबरनामा]], [[जहाँगीरनामा]]।
भारतीय सम्राटों, मुगल बादशाहों तथा राजपूत राजा और रजवाड़ों में आश्रय पानेवाले कवियों ने भी अपने आश्रयदाताओं के जीवनवृत्तातों का विस्तृत वर्णन अपने काव्य ग्रंथों में किया है। [[काव्य]] के नायक के रूप में किसी नरेश, अथवा आश्रयदाता का चयन करने के पश्चात् उनकी जीवनी का रूपायन कविता की पंक्तियों में कर डालना एक सामान्य बात हो गई थी। इस तरह के काव्य को हिन्दी साहित्य के चरितकाव्य की संज्ञा दी गई है। ऐसे काव्यों की रचना [[हिंदी साहित्य|हिन्दी साहित्य]] के [[वीरगाथा काल]] और विशेषत: [[रीति काल|रीतिकाल]] के बहुलता से हुई है। वीरगाथा काल के रासों काव्यों को इसी श्रेणी में माना जा सकता है। रीतिकाल में इस तरह के चरित काव्यों के अनेक नाम गिनाए जा सकते हैं जिनकी रचना समय समय पर कवियोंद्वारा होती रही है।
[[नाभा दास]] का "[[भक्तमाल]]" तथा उसपर प्रियादास की टीका भक्तों के जीवनचरित के संग्रह ग्रंथ हैं। कई अन्य भक्तकवियों ने भी "भक्तमाल" नाम से जीवनचरित संग्रह ग्रंथों की रचना की। पुष्टिमार्गीय वैष्णव संतों और कवियों के ब्रजभाषा गद्य में अंकित जीवनचरित के दो संग्रह "[[चौरासी वैष्णवन की वार्ता]]" और "[[दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता]]" अपने ढंग से बेजोड़ ग्रंथ हैं।
=== आधुनिक युग ===
आधुनिक गद्य काल में तो अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन आदि पश्चिमी भाषाओं के साथ साथ [[हिन्दी|हिंदी]], [[बाङ्ला भाषा|बंगला]], [[मराठी भाषा|मराठी]] आदि में भी प्रसिद्ध व्यक्तियों के जीवनचरित लिखने की प्रवृत्ति यथेष्ट रूप से बढ़ती जा रही है। आत्मकथाओं में [[महात्मा गांधी]] की "[[सत्य के प्रयोग]]" शीर्षक [[आत्मकथा]], देशरत्न स्व. [[राजेन्द्र प्रसाद]] की आत्मकथा इस प्रसंग में विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
==सन्दर्भ==
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