"गुजरात विद्यापीठ": अवतरणों में अंतर
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'''गुजरात विद्यापीठ''' की स्थापना [[महात्मा गांधी]] ने १८ अक्टूबर सन् १९२० में की थी। यह [[गुजरात]] के [[अहमदाबाद]] नगर में स्थित है। इसकी स्थापना का उद्देश्य भारतीय युवकों को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराना था। गंधीजी इस बात को अच्छी तरह समझते थे कि मैकाले द्वारा रची गयी ब्रिटेन की औपनिवेशिक शिक्षा नीति का उद्देश्य दमनकारी ब्रिटिश साम्राज्य के लिये मानव संसाधन (क्लर्क?) तैयार करना है। उस शिक्षा नीति के विरुद्ध गांधीजी ने राष्ट्रीय पुनर्निर्माण व [[हिन्द स्वराज]] के लिये युवकों को तैयार करने के उद्देश्य से इस विद्यापीठ की स्थापना की।
गांधीजी आजीवन इसके कुलाधिपति रहे। प्राध्यापक [[ए टी गिडवानी]] इसके प्रथम उपकुलपति रहे। गांधीजी के बाद [[वल्लभ भाई पटेल|सरदार वल्लभभाई पटेल]], डा [[राजेन्द्र प्रसाद]], [[मोरारजी देसाई|मोरार जी देसाई]] आदि ने इसके कुलपति पद को सुशोभित किया।
सन् १९६३ में भारत सरकार ने इसे [[मानित विश्वविद्यालय|मानद विश्वविद्यालय]] का दर्जा दिया।
== उद्देश्य ==
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नियमित छात्रों के लिए 'पारंगत' उपाधि (मास्टर्स डिग्री) की व्यवस्था ग्रामीण अर्थशास्त्र, सामाजिक नेतृत्व शास्त्र, गुजराती, हिन्दी तथा सामाजिक कार्य आदि विषयों में है। सामाजिक कार्य में गहन प्रशिक्षण की भी व्यवस्था है जिसे पूरा करने पर समाज कार्य पारंगत की उपाधि मिली है। इसके अतिरिक्त, दर्शन तथा तुलनात्मक धर्म (गांधी दर्शन में विशेषीकरण सहित) के लिए भी मास्टर्स डिग्री कोर्स की व्यवस्था है। गुजराती, संस्कृत, हिन्दी, ग्रामीण अर्थशास्त्र, इतिहास और संस्कृति, शान्ति अनुसन्धान में पी.एच.डी. करने की भी सुविधा है।
इस महाविद्यालय में हॉबी वर्कशॉप भी है जिसमें [[संगीत]], लकड़ी का काम, पॉटरी, टाइप करना तथा [[जिल्दसाजी]] की व्यवस्था है। विद्यापीठ के एक हजार से भी अधिक स्नातक गुजरात के गाँवों में ग्राम सुधार का कार्य कर रहे हैं। [[युनेस्को|यूनेस्को]] तथा [[विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (भारत)|विश्वविद्यालय अनुदान आयोग]] की सहायता से शान्ति और अहिंसा की समस्याओं का अध्ययन करने तथा उन पर शोध करने के लिए एक 'शान्ति शोध केन्द्र' की भी स्थापना की गई है।
=== अध्यापक शिक्षा विभाग ===
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