"गंगेश उपाध्याय": अवतरणों में अंतर
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'''गंगेश उपाध्याय''' [[भारत]] के १३वी शती के गणितज्ञ एवं [[नव्य न्याय|नव्य-न्याय]] दर्शन परम्परा के प्रणेता प्रख्यात [[न्याय दर्शन|नैयायिक]] थे। उन्होंने [[वाचस्पति मिश्र]] (९०० - ९८०) की विचारधारा को बढ़ाया।
== परिचय ==
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== तत्वचिन्तामणि ==
'''{{मुख्य|तत्त्वचिन्तामणि}}'''
उनकी अक्षयकीर्ति उनका [[तत्त्वचिन्तामणि|तत्वचिंतामणि]] है। उन्होंने गौतम के मात्र एक सूत्र 'प्रत्यक्षानुमानोपमान शब्दा: प्रमाणाति' की व्याख्या में इस ग्रंथ की रचना की है। यह न्याय ग्रंथ चार खंडों में विभाजित है - प्रत्यक्षखण्ड, अनुमानखण्ड, उपमानखण्ड और शब्दखण्ड। इसमें उन्होंने अवच्छेद्य-अवच्छेदक, निरूप्य-निरूपक, अनुयोगी-प्रतियोगी आदि पारिभाषिक शब्दों का प्रयोग कर एक नई स्वतंत्र लेखन शैली को जन्म दिया जिसका अनुसरण परवर्ती अनेक दार्शनिकों ने किया है। तत्वचिंतामणि के पश्चात् जितने न्यायग्रंथ लिखे गए वे सब नव्यन्याय के नाम से प्रख्यात हैं।
[[तत्त्वचिन्तामणि|तत्वचिंतामणि]] पर जितनी टीकाएँ जितने विस्तार के साथ लिखी गई हैं उतनी किसी अन्य ग्रंथ पर नहीं लिखी गई। पहले इसकी टीका [[पक्षधर मिश्र]] ने की; तदनंतर उनके शिष्य रुद्रदत्त ने एक अपनी टीका तैयार की। और इन दोनों से भिन्न वासुदेव सार्वभौम, रघुनाथ शिरोमणि, गंगाधर, जगदीश, मथुरानाथ, गोकुलनाथ, भवानंद, शशधर, शितिकंठ, हरिदास, प्रगल्भ, विश्वनाथ, विष्णुपति, रघुदेव, प्रकाशधर, चंद्रनारायण, महेश्वर और हनुमान कृत टीकाएँ हैं। इन टीकाओं की भी असंख्य टीकाएँ लिखी गई हैं।
==सन्दर्भ==
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