"अरहर दाल": अवतरणों में अंतर

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| regnum = [[पादप]]
| divisio = [[पुष्पीसपुष्पक पादपपौधा|मैग्नोलियोफाइटा]]
| classis = [[द्वीबीजपत्रीद्विबीजपत्री|मैग्निलियोप्सीडा]]
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'''अरहर''' की दाल को '''तुअर''' भी कहा जाता है। इसमें [[खनिज]], [[कार्बोहाइड्रेट]], [[लोहा]], [[कैल्सियम|कैल्शियम]] आदि पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। यह सुगमता से पचने वाली दाल है, अतः रोगी को भी दी जा सकती है, परंतु गैस, कब्ज एवं साँस के रोगियों को इसका सेवन कम ही करना चाहिए।
 
[[भारत]] में अरहर की खेती तीन हजार वर्ष पूर्व से होती आ रही है किन्तु भारत के जंगलों में इसके पौधे नहीं पाये जाते है। अफ्रीका के जंगलों में इसके जंगली पौधे पाये जाते है। इस आधार पर इसका उत्पत्ति स्थल [[अफ़्रीका|अफ्रीका]] को माना
जाता है। सम्भवतया इस पौधें को अफ्रीका से ही एशिया में लाया गया है।
 
दलहन प्रोटीन का एक सस्ता स्रोत है जिसको आम जनता भी खाने में प्रयोग कर सकती है, लेकिन भारत में इसका उत्पादन आवश्यकता के अनुरूप नहीं है। यदि [[प्रोटीन]] की उपलब्धता बढ़ानी है तो दलहनों का उत्पादन बढ़ाना होगा। इसके लिए उन्नतशील प्रजातियां और उनकी उन्नतशील कृषि विधियों का विकास करना होगा।
 
अरहर एक विलक्षण गुण सम्पन्न फसल है। इसका उपयोग अन्य दलहनी फसलों की तुलना में [[दाल]] के रूप में सर्वाधिक किया जाता है। इसके अतिरिक्त इसकी हरी फलियां [[सब्ज़ी|सब्जी]] के लिये, खली चूरी पशुओं के लिए रातव, हरी पत्ती चारा के लिये तथा तना ईंधन, झोपड़ी और टोकरी बनाने के काम लाया जाता है। इसके पौधों पर [[लाख कीट|लाख के कीट]] का पालन करके [[लाख]] भी बनाई जाती है। [[मांस]] की तुलना में इसमें प्रोटीन भी अधिक (21-26 प्रतिशत) पाई जाती है।<ref>[http://www.aapkisaahayta.com/2015/06/arhar-ki-kheti.html अरहर की खेती : किस्में, संकर, सिंचाई, बीज और रोग]</ref>
 
== gvbhxfj ==
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अंग्रेज़ी में: '''pigeon pea''' (''Cajanus cajan'', syn. ''Cajanus indicus'')
[[बाङ्ला भाषा|बांग्ला]]: अरहर
[[असमिया भाषा|असमी]]: रोहोर
[[नेपाली (बहुविकल्पी)|नेपाली]]: रहर
[[ओड़िआ|ओडिआ ]]: हरड़, कान्दुल
[[गुजराती भाषा|गुजराती]]/[[मराठी भाषा|मराठी]]/[[पंजाबी]]: तूर/तूवर
[[तमिल]]: तुवरम परुप्पू (துவரம்பருப்பு),
[[मलयालम भाषा|मलयालम]]: तूवर परुप्पू ("തുവര പരിപ്പ്"),
[[कन्नड़]]: '''तोगड़ी'''
[[तेलुगू भाषा|तेलुगु]]: कांदी
 
== परिचय ==
यह पूर्व उत्तरी भारत के दलहन की मुख्य फसल है। पूर्वी उत्तरप्रदेश में तो दाल माने अरहर की दाल। यह केवल उत्तर प्रदेश में ३० लाख एकड़ से अधिक रकबे में बोई जाती है। इसके लिये नीची तथा [[मटियार भूमि]] को छोड़कर सभी जमीनें उपयुक्त हैं। ऊँची [[दोमट मिट्टी|दूमट भूमि]] में, जहाँ पानी नहीं भरता, यह फसल विशेष रूप से अच्छी होती है। यह बहुधा [[वर्षा ऋतु]] के आरंभ में और [[ख़रीफ़ की फ़सल|खरीफ]] की फसलों के साथ मिलाकर बोई जाती है। अरहर के साथ [[कोदो]], बगरी-धान, [[ज्वार]], [[बजड़ी|बाजरा]], [[मूँगफली]], [[तिल]] आदि मिलाकर बोते हैं। वर्षा के अंत में ये फसलें पक जाती है और काट ली जाती हैं। इसके बाद जाड़े में अरहर बढ़कर खेत को पूर्णतया भर लेती है तथा [[रबी की फ़सल|रबी]] की फसलों के साथ मार्च के महीने में तैयार हो जाती है। पकने पर इसकी फसल काटकर दाने झाड़ लिए जाते हैं।
 
अन्य फसलों के साथ मिलाकर इसका बीज केवल दो किलो प्रति एकड़ के हिसाब से डाला जाता है। अरहर को वर्षा के पहले दो महीनों में यदि निकाई व गोड़ाई दो-तीन बार मिल जाय, तो इसका पौधा बहुत बढ़ता है और पैदावार भी लगभग दूनी हो जाती है। [[चना|चने]] की तरह इसकी जड़ों में भी हवा से खाद [[नाइट्रोजन]] इकट्ठा करने की क्षमता होती है। अरहर बोने से खेतों की उर्वरा शक्ति बढ़ती है और इसे स्वयं खाद की आवश्यकता नहीं होती। इसको पानी की भी अधिक आवश्यकता नहीं होती। जब [[धान]] इत्यादि पानी की कमी से मर तथा मुर्झा जाते हैं तब भी अरहर खेत में हरी खड़ी रहती है। कमजोर अरहर की फसल पर [[पाला|पाले]] का असर कभी कभी हो जाता है, परंतु अच्छी फसल पर, जो बरसात में गोड़ाई के कारण मोटी हो गई है, पाले का भी असर बहुत कम, या नहीं, होता।