"दायभाग": अवतरणों में अंतर
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: पत्नी दुहितरश्यौव पितरौ भ्रातरस्तथा। तत्सुता गोत्रजा बंधुः शिष्यः सब्रह्मचारिणः।।
इस श्लोक के 'पितरौ' शब्द को लेकर मिताक्षरा कहती है कि 'माता पिती' इस समास में माता शब्द पहले आता है और माता का संबंध भी अधिक घनिष्ठ है, इससे माता का स्वत्व पहले है। जीमूतवाहन कहता है कि 'पितरौ' शब्द ही पिता की प्रधानता का बोधक है इससे पहले पिता का स्वत्व है। [[मिथिला]], [[काशी]] और [[महाराष्ट्र]] प्रांत में माता का स्वत्व पहले और [[बंगाल]], [[तमिल नाडु|तमिलनाडु]] तथा [[गुजरात]] में पिता का स्वत्व पहले माना जाता है। मिताक्षरा दायाधिकार में केवल संबंध निमित्त मानती है और दायभाग पिंडोदक क्रिया। मिताक्षरा 'पिंड' शब्द का अर्थ शरीर करके सपिंड से सात पीढ़ियों के भीतर एक ही कुल का प्राणी ग्रहण करती है, पर दायभाग इसका एक ही पिंड से संबद्ध अर्थ करके नाती, नाना, मामा इत्यादि को भी ले लेता है।
== मिताक्षरा और दायभाग के बीच मुख्य अन्तर ==
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== इन्हें भी देखें ==
* [[मिताक्षरा]]
* [[दायतत्त्व|दयातत्त्व]]
[[श्रेणी:उत्तराधिकार]]
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