"लॉर्ड इर्विन": अवतरणों में अंतर

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'''लॉर्ड इर्विन''' (16 अप्रैल, 1881 - 23 दिसम्बर 1959 ) [[भारत]] में १९२६-१९३१ ई. तक [[भारत के गवर्नर जनरलमहाराज्यपाल|गवर्नर जनरल]] तथा सम्राट् के प्रतिनिधि के रूप में [[वायसराय]] थे।
 
भारत में बढ़ रही [[स्वराज्यस्वराज]]्य तथा संवैधानिक सुधारों की माँग के संबंध में इनकी संस्तुति से १९२७ ई. में लार्ड साइमन की अध्यक्षता में ब्रिटिश सरकार ने साइमन कमीशन की नियुक्ति की, जिसमें सभी सदस्य अंग्रेज थे। फलस्वरूप सारे देश में कमीशन का बाहिष्कार हुआ, 'साइमन, वापस जाओ' के नारे लगाए गए, ओर काले झंडों के प्रदर्शन के साथ आंदोलन हुआ। सांडर्स के नेतृत्व में पुलिस की लाठियों की चोट से [[लाला लाजपत राय|लाला लाजपतराय]] की मृत्यु हो गई। [[भगत सिंह]] के दल ने एक वर्ष के भीतर ही बदले के लिए सांडर्स की भी हत्या कर दी।
 
प्रारंभ में भारत औपानिवेशिक स्वराज्य की ही माँग करता रहा, किंतु २६ जनवरी, १९२९ को [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस|अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] के [[लाहौर]] अधिवेशन में [[जवाहरलाल नेहरू]] के नेतृत्व में 'पूर्ण स्वराज्य' की घोषणा की गई तथा शपथ ली गई कि प्रत्येक वर्ष २६ जनवरी गणतंत्र के रूप में मनाई जाएगी।
 
साइमन कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार १९३० ई. में लार्ड इरविन की संस्तुति से संवैधानिक सुधारों की समस्या के समाधान के लिए [[लंदन]] में एक [[गोलमेज सम्मेलन (भारत)|गोलमेज सम्मेलन]] का आयोजन किया गया, जिसका [[महात्मा गांधी|गांधी जी]] ने विरोध किया। साथ ही गांधी जी ने सरकार पर दबाव डालने के लिए ६ अप्रैल, १९३० से [[दांडी मार्च|नमक सत्याग्रह]] छेड़ दिया। सारे देश में नमक कानून तोड़ा गया। गांधी जी के साथ हजारों व्यक्ति गिरफ्तार हुए। सर [[तेज बहादुर सप्रू|तेजबहादुर सप्रु]] की मध्यस्थता से [[गांधी-इरविन समझौता|गांधी-इरविन-समझौता]] हुआ। यह समझौता भारतीय इतिहास का एक प्रमुख मोड़ है। इसमें २१ धाराएँ थीं जिनके अनुसार गोलमेज कानफ्ररेंस में भाग लेने के लिए गांधी जी तैयार हुए तथा यह तय हुआ कि कानून तोड़ने की कार्रवाई बंद होगी, ब्रिटिश सामानों का बहिष्कार बंद होगा, पुलिस के कारनामों की जाँच नहीं होगी, आंदोलन के समय बने अध्यादेश वापस होंगे, सभी राजनीतिक कैदी छोड़ दिए जाएँगे, जुर्माने वसूल नहीं होंगे, जब्त अचल संपत्ति वापस हो जाएगी, अन्यायपूर्ण वसूली की क्षतिपूर्ति होगी, असहयोग करनेवाले सरकारी कर्मचारियों के साथ उदारता बरती जाएगी, नमक कानून में ढील दी जाएगी, इत्यादि। इस समझौते के फलस्वरूप १९३१ ई. की [[द्वितीय गोलमेज सम्मेलन]] में गांधी जी ने [[मदनमोहन मालवीय]] एवं श्रीमती [[सरोजिनी नायडू|सरोजनी नायडू]] के साथ भाग लिया।
 
यद्यपि लार्ड इरविन ने एक साम्राज्यवादी शासक के रूप में स्वदेशी आंदोलन का पूरा दमन किया, तथापि वैयक्तिक मनुष्य के रूप में वे उदार विचारों के थे। यही कारण है कि राष्ट्रवादी नेताओं को इन्होंने काफी महत्व प्रदान किया। इनके जीवित स्मारक के रूप में नई दिल्ली में विशाल 'इरविन अस्पताल' का निर्माण कराया गया।