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१. '''सप्तर्षि संवत्''' - [[सप्तर्षि]] (सात तारों) की कल्पित गति के साथ इसका संबंध माना गया है। इसे लौकिक, शास्त्र, पहाड़ी या कच्चा संवत् भी कहते हैं। इसमें २४ वर्ष जोड़ने से सप्तर्षि-संवत्-चक्र का वर्तमान वर्ष आता है।
२. '''कलियुग संवत्''' - इसे '[[महाभारत]] सम्वत' या '[[युधिष्ठिर]] संवत्' कहते हैं। [[ज्योतिष]] ग्रंथों में इसका उपयोग होता है। [[
३. '''[[वीर निर्वाण संवत]]''' - अंतिम [[जैन धर्म|जैन]] [[तीर्थंकर]] [[महावीर|महावीर स्वामी]] के निर्वाण वर्ष ई.॰ईपू॰ ५२७ से इसका आरंभ माना जाता है। वि॰सं॰ में ४७० एवं श.सं. में ६०५ जोड़ने से वीर निर्वाण सं. आता है।
४. '''बुद्धनिर्वाण संवत्''' - [[
५. '''मौर्य संवत्''' - [[चन्द्रगुप्त मौर्य]] ने [[चाणक्य]] की सहायता से ई.॰ईपू॰ ३२१ में [[मौर्य राजवंश|मौर्य साम्राज्य]] की स्थापना की थी। [[
६. '''सेल्युकिड़ि संवत्''' - [[सिकन्दर महान्]] के सेनापति [[सेल्युकस]] ने जब बँटवारे में एशिया का साम्राज्य प्राप्त किया तो ई. पू. ३१२ से अपने नाम का संवत् चलाया। [[खरोष्ठी|खरोष्ठी लिपि]] के कुछ लेखों में इसका सदंर्भ मिलता है।
७.''' विक्रम संवत्''' - इसे '[[मालवा]] संवत्' भी कहते हैं। मालवराज ने आक्रामक [[शक|शकों]] को परास्त कर अपने नाम का संवत् चलाया। इसका आरंभ ई.॰ईपू॰ ७५ वर्ष से माना जाता है। [[भारत]] और [[नेपाल]] में यह अत्यधिक लोकप्रिय है। उत्तर भारत में इसका आरंभ चैत्र शुक्ल १ से, दक्षिण भारत में कार्तिक शुक्ल १ से और [[गुजरात]] तथा [[राजस्थान]] के कुछ हिस्सों में आषाढ़ शुक्ल १ (आषाढादि संवत्) से माना जाता है।
८. '''शक संवत्''' - ऐसा अनुमान किया जाता है कि दक्षिण के [[प्रतिष्ठानपुर]] के राजा [[शालिवाहन]] ने इस संवत् को चलाया। अनेक स्रोत इसे विदेशियों द्वारा चलाया हुआ मानने हैं। [[काठियावाड़]] एवं [[कच्छ]] के शिलालेखों तथा सिक्कों में इसका उल्लेख पाया जाता है। [[वराह मिहिर|वराहमिहिर]] कृत "[[पंचसिद्धांतिका|पंचसिद्धान्तिका]]' में इसका सबसे पहले उल्लेख रहा है। नेपाल में भी इसका प्रचलन है। इसमें १३५ वर्ष जोड़ने से वि॰सं॰ और ७९ वर्ष जोड़ने से ई. सन् बनता है।
९. '''कलचुरि संवत्''' - इसे 'चेदि संवत्' और 'त्रैकूटक संवत' भी कहते हैं। यह सं. [[गुजरात]], [[कोंकण]] एवं [[मध्य प्रदेश]] में लेखों में मिला है। इसमें ३०७ जोड़ने से वि॰सं॰ तथा २४९ जोड़ने से ई. सन् बनता है।
११. '''गांगेय संवत्''' - कलिंगनगर (तमिलनाडु) के गंगावंशी किसी राजा का चलाया हुआ संवत् माना जाता है। दक्षिण भारत के कतिपय स्थानों पर इसका उल्लेख मिलता है। ५७९ जोड़ने से ईसवी सन् बनता है।
१२. '''हर्ष संवत्''' - [[थानेसर|थानेश्वर]] के राजा [[हर्षवर्धन]] के राज्यारोहण के समय इसे चलाया गया माना जाता है। [[उत्तर प्रदेश]] एवं नेपाल में कुछ समय तक यह प्रचलित रहा। इसमें ६०६ जोड़ने से ईसवी सन् जोड़ने से ईसवीं सन् बनता है।
१३. '''भाटिक (भट्टिक) संवत''' - यह संवत् [[जैसलमेर]] के राजा भट्टिक (भाटी) का चलाया हुआ माना जाता है। इसमें ६८० जोड़ने से वि॰सं॰ और ६२३ जोड़ने से ई. स. बनता है।
१८. '''लक्ष्मणसेन संवत्''' - [[बंगाल]] के [[सेन वम्श|सेनवंशी]] राजा लक्ष्मणसेन के राज्याभिषेक से इसका आरंभ हुआ। इसका आरंभ माघ शुक्ल १ से माना जाता है। इसका प्रचलन बंगाल, बिहार ([[मिथिला]]) में था। इसमें १०४० जोड़ने से शक सं., ११७५ जोड़ने से वि. सं. और १११८ जोड़ने से ई.स. बनता है।
१९. '''पुडुवैप्पू संवत्''' - सन् १३४१ में [[कोच्चि|कोचीन]] के समीप उद्भूत "बीपीन' टापू की स्मृति में यह संवत् चलाया गया। आरंभ में कोचीन राज्य में इसका प्रचलन रहा।
२०. '''राज्याभिषेक संवत्''' - [[शिवाजी|छत्रपति शिवाजी]] के राज्याभिषेक जून १६७४ से इसका आरंभ माना जाता है। [[मराठा]] प्रभाव तक इसका प्रचलन रहा।
२१. '''बार्हस्पत्य संवत्सर''' - यह १२ वर्षों का माना जाता है। [[बृहस्पति]] के उदय और अस्त के क्रम से इस वर्ष की गणना की जाती है। सातवीं सदी ईसवी के पूर्व के कुछ शिलालेखों एवं दानपत्रों में इसका उल्लेख पाया जाता है, यथा "वर्षमान आश्विन', "वर्षमान कार्तिक आदि।
३४. '''यहूदी सन्''' - यह प्रचलित अब्दों में सर्वाधिक प्राचीन है। इज़रायल और विश्व के यहूदी इसका प्रयोग करते हैं। यह ५७३३ वर्ष पुराना है। ईसवी सन् में ३५६१ जोड़ने से यह सन् आता है।
३५. '''ईसवी सन्''' - [[यीशु|ईसा मसीह]] के जन्मवर्ष से इसका आरंभ माना जाता है। ई॰सं॰ ५२७ के लगभग रोम निवासी पादरी डोयोनिसियस ने गणना कर रोम नगर की स्थापना से ७९५ वर्ष बाद ईसामसीह का जन्म होना निश्चित किया। वर्तमान ईसवी सन् की छठी शती से इसका प्रचार शुरु हुआ और १००० ईसवी तक यूरोप के सभी ईसाई देशों ने तथा आधुनिक यूरोपीय [[साम्राज्यवाद]] के विस्तार के साथ सारे विश्व ने इसे स्वीकार कर लिया। इससे पूर्व [[रोमन साम्राज्य]] में [[जुलियस सीसर|जूलियस सीजर]] और पोप ग्रेगरी द्वारा निर्धारित सन् तथा पंचांग चलते थे। यह [[सौर वर्ष]] है जिसका आरंभ १ जनवरी से होता है। २४ घंटे का दिन (रात १२ बजे से अगली रात १२ बजे तक) माना जाता है। इसमें ५७ वर्ष जोड़ने से विक्रम संवत बनता है। इसे ख्रिस्ताब्द भी कहा जाता है। १९१७ तक [[रूस]] में पश्चिमी यूरोप के मुकाबले वर्ष का आरंभ १३ दिन पीछे होता था। [[रूसी क्रांति|क्रांति]] के बाद [[व्लादिमीर लेनिन|लेनिन]] ने उसे बढ़ाकर समकक्ष किया, जिससे २५ अक्टूबर को हुई क्रांति ७ नवम्बर को मान ली गई। यही कारण है कि सोवियत क्रांति को "अक्टूबर क्रांति' भी कहा जाता है।
[[श्रेणी:काल गणना|अब्द]]
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