"शंकरदेव": अवतरणों में अंतर

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|birth_name =<!-- name before becoming a religious teacher -->
|death_date = 24 August 1568, Tuesday
|death_place = भेलदोंगा, [[कूचबिहार|कूच बिहार]], [[पश्चिम बंगाल]]
|successor = [[माधवदेव]]
|philosophy = [[एकशरण धर्म|एकशरण]]
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|footnotes =
}}
'''श्रीमन्त शंकरदेव ([[असमिया भाषा|असमिया]]: শ্ৰীমন্ত শংকৰদেৱ)''' [[असमिया भाषा|असमिया]] भाषा के अत्यंत प्रसिद्ध [[कवि]], [[नाटक]]कार तथा [[हिन्दू]] [[भारतीय समाजसुधारक|समाजसुधारक]] थे।
 
== जीवनचरित ==
श्रीमंत शंकरदेव का जन्म [[असम]] के [[नगाँव|नौगाँव]] जिले की बरदौवा के समीप अलिपुखुरी में हुआ। इनकी जन्मतिथि अब भी विवादास्पद है, यद्यपि प्राय: यह 1371 शक मानी जाती है। जन्म के कुछ दिन पश्चात् इनकी माता सत्यसंध्या का निधन हो गया। 21 वर्ष की उम्र में सूर्यवती के साथ इनका [[विवाह]] हुआ। मनु कन्या के जन्म के पश्चात् सूर्यवती परलोकगामिनी हुई।
 
शंकरदेव ने 32 वर्ष की उम्र में विरक्त होकर प्रथम तीर्थयात्रा आरंभ की और उत्तर भारत के समस्त तीर्थों का दर्शन किया। रूप और सनातन गोस्वामी से भी शंकर का साक्षात्कार हुआ था। तीर्थयात्रा से लौटने के पश्चात् शंकरदेव ने 54 वर्ष की उम्र में कालिंदी से विवाह किया। तिरहुतिया ब्राह्मण जगदीश मिश्र ने बरदौवा जाकर शंकरदेव को भागवत सुनाई तथा यह ग्रंथ उन्हें भेंट किया। शंकरदेव ने जगदीश मिश्र के स्वागतार्थ "महानाट" के अभिनय का आयोजन किया। इसके पूर्व "चिह्लयात्रा" की प्रशंसा हो चुकी थी। शंकरदेव ने 1438 शक में भुइयाँ राज्य का त्याग कर अहोम राज्य में प्रवेश किया। कर्मकांडी विप्रों ने शंकरदेव के भक्ति प्रचार का घोर विरोध किया। दिहिगिया राजा से ब्राह्मणों ने प्रार्थना की कि शंकर वेदविरुद्ध मत का प्रचार कर रहा है। कतिपय प्रश्नोत्तर के पश्चात् राजा ने इन्हें निर्दोष घोषित किया। हाथीधरा कांड के पश्चात् शंकरदेव ने अहोम राज्य को भी छोड़ दिया। पाटवाउसी में 18 वर्ष निवास करके इन्होंने अनेक पुस्तकों की रचना की। 67 वर्ष की अवस्था में इन्होंने अनेक पुस्तकों की रचना की। 97 वर्ष की अवस्था में इन्होंने दूसरी बार तीर्थयात्रा आरंभ की। उन्होंने कबीर के मठ का दर्शन किया तथा अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। इस यात्रा के पश्चात् वे बरपेटा वापस चले आए। कोच राजा [[नरनारायण]] ने शंकरदेव को आमंत्रित किया। [[कूचबिहार]] में 1490 शक में वे वैकुंठगामी हुए।
 
शंकरदेव के [[वैष्णव सम्प्रदाय|वैष्णव संप्रदाय]] का मत [[एक शरण धर्म|एक शरण]] है। इस धर्म में मूर्तिपूजा की प्रधानता नहीं है। धार्मिक उत्सवों के समय केवल एक पवित्र ग्रंथ चौकी पर रख दिया जाता है, इसे ही नैवेद्य तथा भक्ति निवेदित की जाती है। इस संप्रदाय में दीक्षा की व्यवस्था नहीं है।
 
== रचनाएँ==
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* [[मार्कण्डेय पुराण|मार्कण्डेयपुराण]] के आधार पर शंकरदेव ने 615 छंदों का '''हरिश्चंद्र उपाख्यान''' लिखा।
 
* '''भक्तिप्रदीप''' में भक्तिपरक 308 छंद हैं। इसकी रचना का आधार [[गरुड़ पुराण|गरुड़पुराण]] है।
 
* [[हरिवंशपुराणहरिवंश पर्व|हरिवंश]] तथा [[भागवत पुराण|भागवतपुराण]] की मिश्रित कथा के सहारे इन्होंने '''रुक्मिणीहरण''' काव्य की रचना की।
 
* शंकरकृत '''कीर्तनघोषा''' में [[ब्रह्म पुराण|ब्रह्मपुराण]], [[पद्म पुराण|पद्मपुराण]] तथा [[भागवत पुराण|भागवतपुराण]] के विविध प्रसंगों का वर्णन है।
 
* [[वामन पुराण|वामनपुराण]] तथा भागवत के प्रसंगों द्वारा '''अनादिपतनं''' की रचना हुई।
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* विप्रपत्नीप्रसाद, कालिदमनयात्रा, केलिगोपाल, रुक्मिणीहरण नाटक, पारिजात हरण, रामविजय आदि नाटकों का निर्माण शंकरदेव ने किया।
 
* असमिया वैष्णवों के पवित्र ग्रंथ '''भक्तिरत्नाकर''' की रचना इन्होंने [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] में की। इसमें संप्रदाय के धार्मिक सिद्धांतों का निरूपण हुआ है।
 
==सन्दर्भ==