"लिंगायत मत": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
Nimadgeram (वार्ता | योगदान) छो →इन्हें भी देखें: लिंगायत सम्प्रदाय जानकारी |
छो बॉट: पुनर्प्रेषण ठीक कर रहा है |
||
पंक्ति 13:
'वीरशैव' का शाब्दिक अर्थ है - 'जो शिव का परम भक्त हो'। किंतु समय बीतने के साथ वीरशैव का तत्वज्ञान दर्शन, साधना, कर्मकांड, सामाजिक संघटन, आचारनियम आदि अन्य संप्रदायों से भिन्न होते गए। यद्यपि वीरशैव देश के अन्य भागों - महाराष्ट्र, आंध्र, तमिल क्षेत्र आदि - में भी पाए जाते हैं किंतु उनकी सबसे अधिक संख्या कर्नाटक में पाई जाती है।
[[शैव
वीरशैवों का संप्रदाय 'शक्ति विशिष्टाद्वैत' कहलाता है। परम चैतन्य या परम संविद् देश, काल तथा अन्य गुणों से परे है। परा संविद् की शक्ति ही इस विश्व का उत्पादक कारण है। विश्व या संसार मिथ्या (भ्रम मात्र इलूजन) नहीं है। एक लंबी और बहुमुखी प्रक्रिया के परिणामस्वरूप बहुरूपधारी संसार की उत्पत्ति होती है। मनुष्य में हम जो कुछ देखते हैं वह विशिष्टीकरण एवं आत्मचेतना का विकास है किंतु यह आत्मचैतन्य ही परम चैतन्य के साथ पुनर्मिलन के प्रयास का प्रेरक कारण है। साधना के परिणाम स्वरूप जब ईश्वर का सच्चा भक्त समाधि की सर्वोच्च स्थिति को प्राप्त होता है तब समरसैक्य की स्थिति अर्थात् ईश्वर के प्रत्येक स्वरूप के साथ पूर्ण एकता की स्थिति उत्पन्न होती है। यही मनुष्य के परमानंद या मोक्ष की स्थिति है। इसे पूर्ण विलयन न मानकर मिलन के परमानंद में बराबरी से हिस्सा ग्रहण करना समझना अधिक अच्छा होगा।
|