"विधिक समाजशास्त्र": अवतरणों में अंतर

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समाजशास्त्रीय विधिशास्त्र को ‘हितों का विधिशास्त्र' ( Jurisprudence of Interest ) भी कहा गया है क्योंकि प्रत्येक सामाजिक व्यवस्था का मुख्य लक्ष्य यही है कि मनुष्य के हितों का संरक्षण एवं संवर्धन हो सके। विधि के प्रति इस दृष्टिकोण का अपनाने वाले विधिशास्त्रियों का विचार है कि मानव के परस्पर विरोधी हितों में समन्वय स्थापित करना विधिशास्त्र का प्रमुख कार्य है। जर्मन विधिशास्त्री रूडोल्फ इहरिंग ने इस विचारधारा को अधिक विकसित किया है। उनके अनुसार विधि न तो स्वतंत्र रूप स विकसित हुई है और न वह राज्य की मनमानी देन ही है। वह विवेक ( reason ) पर भी आधारित नहीं हैं बल्कि समीचीनता ( Expediency ) पर आधारित है क्योंकि इसका मूल उद्देश्य समाज के परस्पर विरोधी हितों में टकराव की स्थिति को समाप्त कर उनम समन्वय और एकरूपता स्थापित करना है।
 
समाजशास्त्रीय विधिशास्त्र के विधिशास्त्रियों के अनुसार न्यायालयों के लिये यह आवश्यक है कि विधि के अमूर्त और लेखबद्ध स्वरूप पर विशेष जोर न देकर उसक व्यावहारिक पहलू पर अधिक बल दें अर्थात् वे उन सामाजिक आवश्यकताओं और उद्देश्यों की जाँच करें जो सम्बन्धित कानून पारित होने के लिए कारणीभूत हुए हैं। समाजशास्त्रीय विधिशास्त्र को अमेरिका में प्रबल समर्थन प्राप्त हुआ है। प्रसिद्ध अमेरिकी विधिशास्त्री [[डीन रास्को पाउण्ड]] ने तो विधिशास्त्र को ‘[[सामाजिक अभियान्त्रिकीइंजीनियरी|सामाजिक अभियान्त्रिकी’]] ( Social engineering ) की संज्ञा दी है। इस विचारधारा के अनुसार विधिशास्त्र के अन्तर्गत मुख्यतः दो बातों का अध्ययन किया जाता है-
*(1) मानव और उसके व्यवहारों पर विधि का क्या प्रभाव पड़ता है; तथा
*(2) मानव के संव्यवहार विधि को किस प्रकार प्रभावित करते हैं।
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==विधि और सामाजिक परिवर्तन==
एेतिहासिक परिपेक्ष्य में देखें ता समाज में प्रचलित [[रंगभेद नीति|रंगभेद]], [[दासप्रथा (पाश्चात्य)|दासप्रथा]], [[सती प्रथा|सतीप्रथा]], [[अस्पृश्यता]], [[बाल विवाह|बालविवाह]] आदि कुप्रथाओं को कानून द्वारा समाप्त किया गया। इन सामाजिक बुराइयों को विधि द्वारा समाप्त घोषित करने के पश्चात उन्हे प्रेरित करने को भी दाण्डिक अपराध घाषित कर दिया गया। इस प्रकार
हिन्दू समाज को सती प्रथा से मुक्ति मिली। इसी प्रकार, कर्नाटक में सदियां पुरानी [[देवदासी]] प्रथा समाप्त समाप्त करना इसलिए आवश्यक माना गया है क्योंकि यह व्यवस्था भ्र्ष्ट हो गयी थी आैर अपने मूल लक्ष्य (पथ) से भटक गई थी।
 
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==विधि, सामाजिक अभियांत्रिकी के रूप में==
पाउन्ड की ख्याति का बहुत बड़ा श्रेय उनके [[सामाजिक इंजीनियरी|सामाजिक अभियंत्रण]] (सोशल इन्जीनियरिंग) का जाता है। वे विधि के कार्यो को सामाजिक अभियांत्रिकी कहते हैं।
 
पाउन्ड, [[विधि]] को कोई अमूर्त वस्तु नहीं बल्कि एक सामाजिक सत्य, एक वस्तुनिष्ठ तथा संघर्षो/द्वन्द्वों को दूर करने आैर उनमें सामजस्य स्थापित करने वाला मानते है। उनके अनुसार विधि समाज का हितवर्द्धक, कल्याणकारक तथा व्यक्तियों के स्वार्थों को कम करने वाला होता है। यदि विधि उपयोगी अथवा क्रियाशील नहीं है तो उसका समाज के लिए कोई मूल्य नहीं है। समाज के लिए कानून एक एेसा साधन है जिसके द्वारा शान्ति, सुख, समृद्धि आैर विकास आदि सामाजिक उद्देश्यों की प्राप्ति हो सकती है। समाज के भावी विकास में उसका अमुल्य योगदान हाता है। न्याय प्रशासन में तो विधि की अहम भूमिका होती है, इसलिये विधि का निर्माण सामाजिक परिस्थितियों,, मांग, इच्छाआें आैर