85,516
सम्पादन
Srajaltiwari (चर्चा | योगदान) |
छो (बॉट: पुनर्प्रेषण ठीक कर रहा है) |
||
[[चित्र:Encyclopedie frontispice full.jpg|right|thumb|200px|''जो कुछ आप जानते हैं उसका प्रसार कीजिये। आप जो नहीं जानते उसकी खोज कीजिये।'' - Encyclopédie के १७७२ के संस्करण में आंकित]]
{{पूंजीवाद साइडबार}}
[[यूरोप]] में 1650 के दशक से लेकर 1780 के दशक तक की अवधि को '''प्रबोधन युग''' या '''ज्ञानोदय युग''' (Age of Enlightenment) कहते हैं। इस अवधि में पश्चिमी यूरोप के सांस्कृतिक एवं बौद्धिक वर्ग ने परम्परा से हटकर [[तर्क]], [[विश्लेषण]] तथा वैयक्तिक स्वातंत्र्य पर जोर दिया। ज्ञानोदय ने [[कैथोलिक गिरजाघर|कैथोलिक चर्च]] एवं समाज में गहरी पैठ बना चुकी अन्य संस्थाओं को चुनौती दी।
==परिचय==
===मानवतावाद===
प्रबोधन युग के चिंतकों ने मानव के खुशी और भलाई पर बल दिया। उसके अनुसार मनुष्य स्वभाव से ही विवेकशील और अच्छा है किन्तु स्वार्थी धर्माधिकारियों और उनके बनाए गए नियमों ने मनुष्य को भ्रष्ट कर दिया यदि मनुष्य अपने को इन स्वार्थी धर्माधिकारियों के चुंगल से मुक्त कर सके तो एक आदर्श समाज की स्थापना की जा सकती है। प्रबोधन के चिंतको का मानना था कि दुनिया मशीन की तरह है जिनका नियंत्रण व संचालन कुछ खास नियमों के तहत् होता है। फलस्वरूप उन्हें आशा बनी कि इस अंतर्निहित नियमों को खोज वे ब्रह्माण्ड के रहस्य को समझ लेंगे और फिर उस पर काबू पा लेंगे। इसका उद्देश्य व्यक्तियों को अपने पर्यावरण पर नियंत्रण स्थापित करने में समर्थ बना देना था ताकि वे प्राकृतिक शक्तियों की विध्वंसात्मक शक्तियों से अपनी रक्षा कर सके साथ ही साथ प्रकृति की ऊर्जा का मानव जाति के फायदे के लिए इस्तेमाल कर सके। [[
===[[देववाद]]===
[[चित्र:Immanuel Kant (painted portrait).jpg|right|thumb|300px|इमैनुएल काण्ट]]
# [[जॉन लॉक]]
# [[मॉन्टेस्क्यू|मांटेस्क्यू]]
# [[वोल्टेयर|वाल्टेयर]]
# [[इमानुएल काण्ट|इमैनुएल काण्ट]]
# [[रूसो]]
==प्रबोधनयुगीन चिंतन एवं पुनर्जागरण में अंतर==
*(१) [[पुनर्जागरण]]कालीन मध्यवर्ग अभी आत्मविश्वास से युक्त नहीं था अतः वह इस बात पर बल देता था कि अतीत से प्राप्त ज्ञान की श्रेष्ठ है और बुद्धि की बात करते हुए उदाहरण के रूप में [[यूनान|ग्रीक]] एवं [[लातिन भाषा|लैटिन]] साहित्य पर बल देता था। जबकि प्रबोधनकालीन मध्यवर्ग में शक्ति और आत्मविश्वास आ चुका था इस कारण उसने [[राजतन्त्र|राजतंत्र]] की निरंकुशता एवं [[चर्च]] के आंडबर के खिलाफ आवाज उठाई और तर्क के माध्यम से अपनी बात व्यक्त की।
*(२) पुनर्जागरण का बल ज्ञान के सैद्धांतिक पक्ष पर अधिक था जबकि प्रबोधन चिंतन का मानना था कि ज्ञान वही है जिसका परीक्षण किया जा सके और जो व्यावहारिक जीवन में उपयोग में लाया जा सके। इस तरह प्रबोधकालीन चिंतन का बल व्यावहारिक ज्ञान पर था।
* ये बुद्धिजीवी कानून के शासन तथा विधि निर्माण पर बल देते थे परन्तु विधि निर्माण में मध्यवर्ग का ही वर्चस्व स्थापित करना चाहते थे।
* इन चिंतकों की दृष्टि कुछ हद तक “[[
* प्रबोधन चिंतको ने [[विज्ञान]] के संबंध में यह मत व्यक्त किया कि विज्ञान बेहतर दुनिया बना सकता है जिसमें व्यक्ति स्वतंत्रता और खुशी का आनंद उठा सकता है और विज्ञान का उपयोग मानव हित में किया जा सकता है। विज्ञान के प्रति उस विश्वास को 20वीं सदी के उत्तर्राद्ध में चुनौती मिली जब विज्ञान ने और तकनीकी विकास ने हिंसा और असमानता को बढ़ावा दिया।
==इन्हें भी देखें==
*[[पुनर्जागरण|यूरोपीय पुनर्जागरण]]
*[[
*[[धर्मसुधार-विरोधी आंदोलन]]
*[[औद्योगिक क्रांति]]
|