"ज्वारभाटा बल": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Shoemaker-levy-tidal-forces.jpg|thumbnail|180px|१९९२ में शूमेकर-लॅवी [[धूमकेतु]] [[बृहस्पति (ग्रह)|बृहस्पति]] से टकराया - बृहस्पति के भयंकर ज्वारभाटा बल ने उसे तोड़ डाला]]
[[चित्र:Field tidal.png|thumb|right|180px|पृथ्वी पर [[ज्वार-भाटा]] चन्द्रमा के [[गुरुत्वाकर्षण]] से बने ज्वारभाटा बल से आते हैं]]
[[चित्र:Saturn PIA06077.jpg|thumbnail|right|180px|शनि के [[उपग्रही छल्ला|उपग्रही छल्ले]] ज्वारभाटा बल की वजह से जुड़कर उपग्रह नहीं बन जाते]]
'''ज्वारभाटा बल''' वह [[बल (भौतिकी)|बल]] है जो एक [[खगोलीय वस्तु|वस्तु]] अपने [[गुरुत्वाकर्षण]] से किसी दूसरी वस्तु पर स्थित अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग स्तर से लगाती है। [[पृथ्वी]] पर समुद्र में [[ज्वार-भाटा]] के उतार-चढ़ाव का यही कारण है।
 
== अन्य भाषाओँ में ==
[[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]] में "ज्वारभाटा बल" को "टाइडल फ़ोर्स" (tidal force) बोलते हैं।
 
== पृथ्वी और समुद्रों में ==
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== उपग्रही छल्ले ==
[[खगोल शास्त्र|खगोलशास्त्र]] में एक [[रोश सीमा]] का नियम है। इसमें यदि कोई वस्तु किसी ग्रह की रोश सीमा के अन्दर आ जाये तो वह ग्रह उसपर ऐसा ज्वारभाटा बल डालता है के वह वस्तु पिचक कर टूट सकती है। हमारे [[सौर मण्डल]] के छठे ग्रह [[शनि (ग्रह)|शनि]] के [[उपग्रही छल्ला|उपग्रही छल्ले]] कुछ इसी तरह ही बने हैं। साधारण तौर पर अगर किसी ग्रह के इर्द-गिर्द मलबा (धुल, पत्थर, बर्फ़, इत्यादि) परिक्रमा कर रहा हो तो वह समय के साथ-साथ जुड़कर उपग्रह बन जाता है। लेकिन अगर यह रोश सीमा के अन्दर हो तो ज्वारभाटा बल की पिचकन उसे जुड़ने नहीं देती। अगर कोई बना-बनाया उपग्रह या [[धूमकेतु]] भी रोश सीमा के अन्दर भटक जाए तो तोड़ा जा सकता है। १९९२ में जब शूमेकर-लॅवी नाम का धूमकेतु [[बृहस्पति (ग्रह)|बृहस्पति]] से जा टकराया तो बृहस्पति के भयंकर ज्वारभाटा बल ने उसे तोड़ डाला।
 
== इन्हें भी देखें ==