→‎इतिहास: 26 January 1919
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''(काला कानून प्रस्ताव) मार्च 1919 ('''The Anarchical and Revolutionary Crime Act, 1919''') में भारत की ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में उभर रहे राष्ट्रीय आंदोलन को कुचलने के उद्देश्य से निर्मित कानून था। यह कानून सर सिडनी रौलेट की अध्यक्षता वाली सेडिशन समिति की शिफारिशों के आधार पर बनाया गया था। इसके अनुसार ब्रिटिश सरकार को यह अधिकार प्राप्त हो गया था कि वह किसी भी भारतीय पर अदालत में बिना मुकदमा चलाए उसे जेल में बंद कर सके। इस क़ानून के तहत अपराधी को उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज करने वाले का नाम जानने का अधिकार भी समाप्त कर दिया गया था।इस कानून के विरोध में देशव्यापी हड़तालें, जूलूस और प्रदर्शन होने लगे। ‍
 
महात्मा गाँधीजी ने व्यापक [[हड़ताल]] का आह्वान किया। रोलेट एक्ट गांधीजी के द्वारा किया गया राष्ट्रीय लेवल का प्रथम आंदोलन था। 24 फरवरी 1919 के दिन गांधीजीने मुंबई में एक "सत्याग्रह सभा"का आयोजन किया था और इसी सभा में तय किया गया और कसम ली गई थी की रोलेट एक्ट का विरोध 'सत्य'और 'अहिंसा' के मार्ग पर चलकर किया जाएंगा। गांधीजी के इस सत्य और अहिंसा के मार्ग का विरोध भी कुछ सुधारवादी नेताओं की और से किया गया था, जिसमें सर डि.इ.वादी, [[सुरेंद्रनाथ बैनर्जी|सुरेन्द्रनाथ बनर्जी]], [[तेज बहादुर सप्रू|तेज बहादुर सप्रु]], [[श्री निवास शास्त्री]] जैसे नेता शामिल थे।किन्तु गांधीजी को बड़े पैमाने पर [[होम रूल आन्दोलन|होमरूल लीग]] के सदस्यों का समर्थन मिला था।
 
हड़ताल के दौरान [[दिल्ली]] आदि कुछ स्थानों पर भारी हिंसा हुई। इस पर गांधी जी ने सत्याग्रह को वापस ले लिया और कहा कि भारत के लोग अभी भी अहिंसा के विषय में दृढ रहने के लिए तैयार नहीं हैं।
 
13 अप्रैल को [[सैफुद्दीन किचलू]] और [[सत्यपाल]] की गिरफ्तारी के विरोध में [[जलियाँवाला बाग़|जलियाँवाला बाग]] में लोगों की भीड़ इकट्ठा हुई। अमृतसर में तैनात फौजी कमांडर जनरल डायर ने उस भीड़ पर अंधाधुंध गोलियाँ चलवाईं। हजारों लोग मारे गए। भीड़ में महिलाएँ और बच्‍चे भी थे। यह घटना ब्रिटिश हुकूमत के काले अध्‍यायों में से एक है जिसे [[जलियाँवाला बाग हत्याकांड|जालियाँवाला बाग हत्याकांड]] के नाम से जाना जाता है।
 
====इतिहास ====