"शिक्षण विधियाँ": अवतरणों में अंतर

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जिस ढंग से [[शिक्षक]] [[विद्यार्थी|शिक्षार्थी]] को [[ज्ञान]] प्रदान करता है उसे '''शिक्षण विधि''' कहते हैं। "शिक्षण विधि" पद का प्रयोग बड़े व्यापक अर्थ में होता है। एक ओर तो इसके अंतर्गत अनेक प्रणालियाँ एवं योजनाएँ सम्मिलित की जाती हैं, दूसरी ओर शिक्षण की बहुत सी प्रक्रियाएँ भी सम्मिलित कर ली जाती हैं। कभी-कभी लोग युक्तियों को भी विधि मान लेते हैं; परंतु ऐसा करना भूल है। युक्तियाँ किसी विधि का अंग हो सकती हैं, संपूर्ण विधि नहीं। एक ही युक्ति अनेक विधियों में प्रयुक्त हो सकती है।
 
== शिक्षण की विविध विधियाँ ==
=== निगमनात्मक तथा आगमनात्मक ===
पाठ्यविषय को प्रस्तुत करने के दो ढंग हो सकते हैं। एक में छात्रों को कोई सामान्य सिद्धांत बताकर उसकी जाँच या पुष्टि के लिए अनेक उदाहरण दिए जाते हैं। दूसरे में पहले अनेक उदाहरण देकर छात्रों से कोई सामान्य नियम निकलवाया जाता है। पहली विधि को [[निगमनात्मक विधि]] और दूसरी को [[आगमनात्मक तर्क|आगमनात्मक विधि]] कहते हैं। ये विधि व्याकरण शिक्षण के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है।
 
=== संश्लेषणात्मक तथा विश्लेषणात्मक ===
दूसरे दृष्टिकोण से शिक्षण विधि के दो अन्य प्रकार हो सकते हैं। पाठ्यवस्तु को उपस्थित करने का ढंग यदि ऐसा हैं कि पहले अंगों का ज्ञान देकर तब पूर्ण वस्तु का ज्ञान कराया जाता है तो उसे [[संश्लेषणात्मक विधि]] कहते हैं। जैसे [[हिन्दी|हिंदी]] पढ़ाने में पहले वर्णमाला सिखाकर तब शब्दों का ज्ञान कराया जाता है। तत्पश्चात् शब्दों से वाक्य बनवाए जाते हैं। परंतु यदि पहले वाक्य सिखाकर तब शब्द और अंत में वर्ण सिखाए जाएँ तो यह [[विश्लेषणात्मक विधि]] कहलाएगी क्योंकि इसमें पूर्ण से अंगों की ओर चलते हैं।
 
=== वस्तुविधि ===
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=== दृष्टांतविधि ===
वस्तुविधि का एक दूसरा रूप है - '''दृष्टांतविधि'''। वस्तुविधि में जिस प्रकार वस्तुओं के द्वारा ज्ञान प्रदान किया जाता है दृष्टांतविधि में उसी प्रकार [[दृष्टान्त|दृष्टांतों]] के द्वारा। दृष्टांत दृश्य भी हो सकते हैं और श्रव्य भी। इसमें [[चित्र]], [[मानचित्र]], [[चित्रपट]] आदि के सहारे वस्तु का स्पष्टीकण किया जाता है। साथ ही [[उपमा]], [[उदाहरण]], [[कहानी]], [[चुटकुला|चुटकुले]] आदि के द्वारा भी विषय का स्पष्टीकरण हो सकता है।
 
=== कथनविधि एवं व्याख्यानविधि ===
वस्तु एवं दृष्टांतविधियों से ज्ञान प्राप्त करते करते जब बच्चों को कुछ कुछ [[अनुमान]] करने तथा अप्रत्यक्ष वस्तु को भी समझने का अभ्यास हो जाता है तब, '''कथनविधि''' का सहारा लिया जाता है। इसमें वर्णन के द्वारा छात्रों को पाठ्यवस्तु का ज्ञान दिया जाता है। परंतु इस विधि में छात्र अधिकतर निष्क्रिय श्रोता बने रहते हैं और पाठन प्रभावशाली नहीं होता। इसी से प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री [[हरबर्ट स्पेंसर|हर्बर्ट स्पेंसर]] ने कहा है- "बच्चों को कम से कम बतलाना चाहिए, उन्हें अधिक से अधिक स्वत: ज्ञान द्वारा सीखना चाहिए"। '''व्याख्यानविधि''' इसी की सहचरी है। उच्च कक्षाओं में प्राय: व्याख्यानविधि का ही प्रयोग लाभदायक समझा जाता है।
 
कथनविधि में प्राय: हर्बर्ट के पाँच सोपानों का प्रयोग किया जाता है। वे हैं
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=== प्रोजेक्ट विधि ===
[[संयुक्त राज्य अमेरिका|अमरीका]] के प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री ड्यूवी, किलपैट्रिक, स्टीवेंसन आदि के सम्मिलित प्रयास का फल '''योजना (प्रोजेक्ट) विधि''' है। इसके अनुसार ज्ञानप्राप्ति के लिए स्वाभाविक वातावरण अधिक उपयुक्त होता है। इस विधि से पढ़ाने के लिए पहले कोई समस्या ली जाती है, जो प्राय: छात्रों के द्वारा उठाई जाती है और उस समस्या का हल करने के लिए उन्हीं के द्वारा योजना बनाई जाती है और योजना को स्वाभाविक वातावरण में पूर्ण किया जाता है। इसी से इसकी परिभाषा इस प्रकार की जाती है कि योजना वह समस्यामूलक कार्य है जो स्वाभाविक वातावरण में पूर्ण किया जाए।
 
=== डाल्टन योजना ===
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{{मुख्य|वर्धा शिक्षा योजना}}
 
महात्मा गांधी की [[वर्धा शिक्षा योजना|वर्धा योजना]] या '''बेसिक शिक्षा''' (बुनियादी तालीम) भी अपने ढंग की एक शिक्षाविधि है। गांधी जी ने देश की तत्कालीन स्थिति को देखते हुए शिक्षा में 'हाथ के काम' को प्रधानता दी। उनका विश्वास था कि जब तक छात्र हाथ से काम नहीं करता तब तक उसे श्रम का महत्व नहीं ज्ञात होता। सैद्धांतिक ज्ञान मनुष्य को अहंकारी एवं निष्क्रिय बना देता है। अत: बच्चों को आरंभ से ही किसी न किसी [[कौशल|हस्तकौशल]] के द्वारा शिक्षा देनी चाहिए। हमारे देश में [[कृषि]] एवं [[कताई-बुनाई]]-बुनाई बुनियादी धंधे हैं जिनमें देश की तीन चौथाई जनता लगी हुई है। अत: उन्होंने इन्हीं दोनों को मूल हस्तकौशल मानकर शिक्षा में प्रमुख स्थान दिया। बेसिक शिक्षा की प्रमुख विशेषताएँ हैं :-
 
*(1) मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा,