"कृष्ण यजुर्वेद": अवतरणों में अंतर

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'''कृष्ण यजुर्वेद''', [[यजुर्वेद]] की एक शाखा है। चारों वेदों में से यजुर्वेद दो प्रकार का मिलता है, [[शुक्ल यजुर्वेद]] और कृष्ण यजुर्वेद। इसके इन दोनों नामों का कारण है कि शुक्ल यजुर्वेद में केवल मन्त्र भाग है, अर्थात् इसमें मूल मन्त्र होने से शुक्ल (शुद्ध) वेद कहलाता है। कृष्ण यजुर्वेद विनियोग, मन्त्र व्याया आदि से मिश्रित होने के कारण मूल न होकर मिश्रित वा कृष्ण यजुर्वेद कहलाता है। मुय रूप से यही शुक्ल और कृष्ण यजुर्वेद है।
 
शुक्ल यजुर्वेद की दो शाखाएँ वर्तमान में मिलती हैं, वाजसनेयि माध्यन्दिन संहिता और काण्व संहिता। दोनों में चालीस अध्याय हैं, काण्व संहिता का चालीसवां अध्याय [[ईशावास्य उपनिषद्|ईशोपनिषद्]] के रूप में प्रख्यात है। कृष्ण यजुर्वेद की चार शाखाएँ मिलती हैं- तैत्तिरीय, मैत्रायणी, काठक और कठ कपिष्ठल शाखा।
 
महर्षि [[दयानन्द सरस्वती|दयानन्द]] के अनुसार मूल वेद शुक्ल यजुर्वेद की माध्यन्दिन शाखा है। इसी का महर्षि ने [[भाष्य]] किया है।
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वेदों की कुल शाखा 1127 होने का प्रमाण [[पातंजल महाभाष्य]] में मिलता है। वहाँ लिखा है- ''एकविंशतिधा वाह्वृच्यम्, एकशतम् अध्वर्युशाखाः, सहस्रवर्त्मा सामवेदः, नवधाऽथर्वणो वेदः'', अर्थात् इक्कीस शाखा ऋग्वेद की, एक सौ एक शाखा यजुर्वेद की, एक हजार शाखा सामवेद की और नौ शाखा अथर्ववेद की।
 
यजुर्वेद की एक सौ एक शाखाओं में से छः शाखाएँ उपलध होती हैं। जो कि ऊपर कह दिया है। शुक्ल यजुर्वेद का ब्राह्मण [[शतपथ ब्राह्मण]] है, जिसके रचयिता महर्षि [[याज्ञवल्क्य]] हैं। कृष्ण यजुर्वेद का ब्राह्मण [[तैत्तिरीयब्राह्मण|तैत्तिरीय ब्राह्मण]] है, जिसकी रचना तित्तिरि आचार्य ने की है। शुक्ल यजुर्वेद का श्रौतसूत्र कात्यायन कृत है जो [[कात्यायन श्रौतसूत्र]] कहलाता है। कृष्ण यजुर्वेद से सबन्धित आठ श्रौतसूत्र हैं-
:1. बौधायन श्रौतसूत्र, 2. आपस्तब श्रौतसूत्र, 3. सत्यषाढ़ श्रौतसूत्र या हिरण्यकेशी श्रौतसूत्र, 4. वैखासन श्रौतसूत्र,
:5. भारद्वाज श्रौतसूत्र, 6. वाधूल श्रौतसूत्र, 7. वाराह श्रौतसूत्र, 8. मानव श्रौतसूत्र।