"देवीमाहात्म्य": अवतरणों में अंतर
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[[चित्र:Devimahatmya Sanskrit MS Nepal 11c.jpg|right|thumb|300px|[[तालपत्र|ताड़पत्र]] पर [[भुजिमोल लिपि]] में लिखी देवीमाहात्म्य की सबसे प्राचीन पाण्डुलिपि]]
'''देवीमाहात्म्यम्''' (अर्थ: ''देवी का महात्म्य'') हिन्दुओं का एक धार्मिक ग्रन्थ है जिसमें [[देवी]] [[दुर्गा]] की [[महिषासुर]] नामक राक्षस के ऊपर विजय का वर्णन है। यह [[मार्कण्डेय पुराण]] का अंश है। इसमें ७०० [[श्लोक]] होने के कारण इसे 'दुर्गा सप्तशती' भी कहते हैं। इसमें [[सृष्टि]] की प्रतीकात्मक व्याख्या की गई है। जगत की सम्पूर्ण शक्तियों के दो रूप माने गये है - संचित और क्रियात्मक। [[नवरात्रि]] के दिनों में इसका पाठ किया जाता है।
इस रचना का विशेष संदेश है कि विकास-विरोधी दुष्ट अतिवादी शक्तियों को सारे सभ्य लोगों की सम्मिलित शक्ति "सर्वदेवशरीजम" ही परास्त कर सकती है, जो राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है। इस प्रकार आर्यशक्ति अजेय है। इसमे गमन (इसका भेदन) दुष्कर है। इसलिए यह 'दुर्गा' है। यह [[
== परिचय ==
पंक्ति 68:
देवि! तुम्हीं स्वाहा, तुम्हीं स्वधा, तुम्हीं वषट्कार (पवित्र आहुति मन्त्र) हो। स्वर भी तुम्हारे ही स्वरूप हैं।<br />
तुम्हीं जीवदायिनी सुधा हो। नित्य अक्षर [[ॐ|प्रणव]] में अकार, उकार, मकार - इन तीन अक्षरों के रूप में तुम्ही स्थित हो ॥७३॥<br /><br />
तथा इन तीन अक्षरों के अतिरिक्त जो बिन्दुरूपा नित्य अर्धमात्रा है, जिसका विशेषरूप से उच्चारण नहीं किया जा सकता, वह भी तुम्ही हो।<br />
पंक्ति 110:
देवि! तुम तो अपने इन उदार प्रभावों से ही प्रशंसित हो।।<br />
ये जो दो दुर्धर्ष असुर [[मधु-कैटभ|मधु और कैटभ]] हैं, इन दोनों को मोह लो। ॥८५॥<br /><br />
जगत के स्वामी भगवान विष्णु को शीघ्र जगा दो।<br />
पंक्ति 120:
*[[चंडी दी वार]]
*[[सुरथ]]
*[[ब्रह्मवैवर्त पुराण|ब्रह्मवैवर्त्त पुराण]]
*[[देवी उपनिषद]]
== बाहरी कड़ियाँ ==
* [http://sanskritdocuments.org/all_unic/durga700_sa.html '''दुर्गा सप्तशती''' का मूल पाठ]
* [http://www.gitapress.org/books/paath/118/durga_saptashati.pdf '''दुर्गासप्तशती'''] (सचित्र, हिन्दी अनुवाद एवं पाठ-विधि सहित; [[गीताप्रेस|गीता प्रेस]], गोरखपुर)
* [http://sanskritdocuments.org/all_sa/durga700_meaning_sa.html '''दुर्गा सप्तशती ''' का अंग्रेजी अनुवाद]
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