"प्रेमचंद": अवतरणों में अंतर

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| image=Premchand 1980 stamp of India.jpg
| image_size = 200px
| caption = प्रेमचंद
| birth_date = 31 जुलाई, 1880
| birth_place = लमही, [[वाराणसी जिला|वाराणसी]], [[उत्तर प्रदेश]], [[भारत]]
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| genre = कहानी और उपन्यास
| subject = [[सामाजिक]] और कृषक-जीवन
| movement = [[आदर्शोन्मुख यथार्थवाद]] (आदर्शवाद व यथार्थवाद) <Brbr />,[[अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ]]
| notablework = [[गोदान]], [[कर्मभूमि]], [[रंगभूमि]], [[सेवासदन]], [[निर्मला]] और [[मानसरोवर]]
| influences =[[तालस्तोय]], [[बंकिमचंद्र]] [[शरतचंद्र]]
| influenced =[[रेणु]], [[श्रीनाथ सिंह]], [[सुदर्शन (साहित्यकार)|सुदर्शन]], [[यशपाल]]
<!-- | प्रभावक= [[तालस्तोय]], [[बंकिमचंद्र]] [[शरतचंद्र]]-->
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| मुख्य काम =[[गोदान]] [[मानसरोवर]]
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'''प्रेमचंद''' (31 जुलाई 1880 – 8 अक्टूबर 1936) [[हिन्दी]] और [[उर्दू]] के सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकार, कहानीकार एवं विचारक थे। भारत के उत्तरप्रदेश राज्य के लम्ही ग्राम में जन्में प्रेमचंद का मूल नाम धनपत राय था।
 
आरंभ में वे उर्दू की पत्रिका ‘जमाना’ में नवाब राय के नाम से लिखते थे। पहले कहानी संग्रह ‘सोजे वतन’ (१९०७) के अंग्रेज सरकार द्वारा जब्त किए जाने तथा लिखने पर प्रतिबंध लगाने के बाद वे प्रेमचंद के नए नाम से लिखने लगे।
 
'''प्रेमचंद''' (31 जुलाई 1880 – 8 अक्टूबर 1936) [[हिन्दी]] और [[उर्दू]] के सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकार, कहानीकार एवं विचारक थे। भारत के उत्तरप्रदेश राज्य के लम्ही ग्राम में जन्में प्रेमचंद का मूल नाम धनपत राय था। आरंभ में वे उर्दू की पत्रिका ‘जमाना’ में नवाब राय के नाम से लिखते थे। पहले कहानी संग्रह ‘सोजे वतन’ (१९०७) के अंगरेज सरकार द्वारा जब्त किए जाने तथा लिखने पर प्रतिबंध लगाने के बाद वे प्रेमचंद के नए नाम से लिखने लगे। सेवासदन (1918) उनका हिंदी में प्रकाशित होने वाला पहला उपन्यास था। इसकी बेहद लोकप्रियता ने प्रेमचंद को हिंदी का कथाकार बना दिया। हालाँकि प्रायः उनकी सभी रचनाएं हिंदी और उर्दू दोनों में प्रकाशित होती रही। उनका अंतिम पूर्ण उपन्यास गोदान (1936) किसान जीवन पर लिखी अद्वितीय रचना है।
== जीवन परिचय ==
प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई १८८० को [[वाराणसी]] के निकट [[लमही]] गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। लमही, उत्तर प्रदेश राज्य के बनारस शहर के नजदीक ही लगभग चार मिल दूर स्थित हैं।<ref>{{Cite web|url=https://www.gurujiinhindi.com/2019/10/munshi-premchand-munshi-premchand-hindi-munshi-premchand-in-hindi-essay-on-munshi-premchand-munshi-premchand-jayanti_12.html|title=मुंशी प्रेमचंद लेखन दुनिया के एक नयाब हिरा।|website=गुरूजी इन हिंदी|access-date=2019-11-21}}</ref> उनकी माता का नाम आनन्दी देवी था तथा पिता मुंशी अजायबराय लमही में डाकमुंशी थे।<ref>{{cite web |url= http://pustak.org/bs/home.php?bookid=635|title= गबन|access-date=9 जून 2008|format= पीएचपी|publisher= भारतीय साहित्य संग्रह|language=}}</ref> उनकी शिक्षा का आरंभ [[उर्दू]], [https://www.thekahaniyahindi.com/2020/03/munshi-premchand-ki-kahaniya.html फारसी] से हुआ और जीवनयापन का [[अध्यापन]] से। पढ़ने का शौक उन्‍हें बचपन से ही लग गया। १३ साल की उम्र में ही उन्‍होंने ''[[तिलिस्म-ए-होशरुबा]]'' पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार [https://www.thekahaniyahindi.com/2020/03/munshi-premchand-ki-kahaniya.html रतननाथ 'शरसार'], [https://www.thekahaniyahindi.com/2020/03/munshi-premchand-ki-kahaniya.html मिर्ज़ा हादी रुस्वा] और [[मौलाना शरर]] के उपन्‍यासों से परिचय प्राप्‍त कर लिया<ref>रामविलास शर्मा, प्रेमचंद और उनका युग, [[राजकमल प्रकाशन]], नई दिल्‍ली, 1995, पृष्‍ठ 15</ref>। [[१८९८]] में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे एक स्थानीय विद्यालय में शिक्षक नियुक्त हो गए। नौकरी के साथ ही उन्होंने पढ़ाई जारी रखी।[[१९१०]] में उन्‍होंने [[अंग्रेजी]], [[दर्शन]], [[फारसी]] और [[इतिहास]] लेकर इंटर पास किया और [[१९१९]] में बी.ए.<ref>{{cite book |last=बाहरी |first=डॉ॰ हरदेव |title= साहित्य कोश, भाग-2,|year=१९८६|publisher=ज्ञानमंडल लिमिटेड |location=वाराणसी|id= |page=३५६ |access-date=}}</ref> पास करने के बाद शिक्षा विभाग के इंस्पेक्टर पद पर नियुक्त हुए।<br>सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता तथा चौदह वर्ष की अवस्था में पिता का देहान्त हो जाने के कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा।<ref>{{cite web |url= http://www.hindibooks.8m.com/LitByMunshiPremchand.htm|title= LITERATURE BY MUNSHIPREMCHAND|access-date=9 जून 2008|format= एचटीएम|publisher= हिन्दी बुक्स|language=en}}</ref> उनका पहला विवाह पंद्रह साल की उम्र में हुआ जो सफल नहीं रहा। वे [[आर्य समाज]] से प्रभावित रहे<ref>{{cite web |url= http://www.csss-isla.com/archive/archive.php?article=2005/aug1_15.htm|title= PREMCHAND AND COMPOSITE CULTURE |access-date=30 जून 2008 |format= पीएचपी|publisher=सेंटर फ़ार स्टडी ऑफ़ सोसायटी एंड सेक्युलरिज़्म |language=en}}</ref>, जो उस समय का बहुत बड़ा धार्मिक और सामाजिक आंदोलन था। उन्होंने विधवा-विवाह का समर्थन किया और १९०६ में दूसरा विवाह अपनी प्रगतिशील परंपरा के अनुरूप बाल-विधवा [[शिवरानी देवी]] से किया।<ref>{{cite web |url= http://www.indianpost.com/viewstamp.php/Paper/Watermarked%20paper/PREM%20CHAND%20WRITER|title= PREM CHAND WRITER|access-date=9 जून 2008|format= पीएचपी|publisher= इंडियन पोस्ट.कॉम|language=en}}</ref> उनकी तीन संताने हुईं- श्रीपत राय, [[अमृत राय]] और कमला देवी श्रीवास्तव। १९१० में उनकी रचना [[सोजे-वतन]] (राष्ट्र का विलाप) के लिए हमीरपुर के जिला कलेक्टर ने तलब किया और उन पर जनता को भड़काने का आरोप लगाया। सोजे-वतन की सभी प्रतियाँ जब्त कर नष्ट कर दी गईं। कलेक्टर ने नवाबराय को हिदायत दी कि अब वे कुछ भी नहीं लिखेंगे, यदि लिखा तो जेल भेज दिया जाएगा। इस समय तक प्रेमचंद, [[धनपत राय]] नाम से लिखते थे। उर्दू में प्रकाशित होने वाली [https://www.thekahaniyahindi.com/2020/03/munshi-premchand-ki-kahaniya.html ज़माना पत्रिका] के सम्पादक और उनके अजीज दोस्‍त [[मुंशी दयानारायण निगम]] की सलाह से वे प्रेमचंद नाम से लिखने लगे। उन्‍होंने आरंभिक लेखन [[ज़माना पत्रिका]] में ही किया। जीवन के अंतिम दिनों में वे गंभीर रूप से बीमार पड़े। उनका उपन्यास [[मंगलसूत्र]] पूरा नहीं हो सका और लम्बी बीमारी के बाद ८ अक्टूबर १९३६ को उनका निधन हो गया। उनका अंतिम उपन्यास ''मंगल सूत्र'' उनके पुत्र अमृतराय ने पूरा किया।