"सागर (जलनिकाय)": अवतरणों में अंतर

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[[File:Waves lajolla.jpg|thumb|upright=1.5|alt=Waves dashing on the shore|[[सेंटा कैटालिना की खाड़ी]] में तटीय समुद्र की लहरें]]
 
[[पृथ्वी]] की सतह के 70 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र में फैला, '''सागर''', [[नमकसाधारण नमक|खारे]] पानी का एक सतत निकाय है। पृथ्वी पर [[जलवायु]] को संयमित करने, [[भोजन]] और [[ऑक्सीजन]] प्रदान करने, [[जैव विविधता]] को बनाये रखने और [[परिवहन]] के क्षेत्र में सागर अत्यावश्यक भूमिका निभाते हैं। प्राचीन काल से लोग सागर की यात्रा करने और इसके रहस्यों को जानने की कोशिश में लगे रहे हैं, परंतु माना जाता है कि सागर के वैज्ञानिक अध्ययन जिसे [[समुद्र विज्ञान]] कहते हैं की शुरुआत कप्तान जेम्स कुक द्वारा 1768 और 1779 के बीच प्रशांत महासागर के अन्वेषण के लिए की गयीं समुद्री यात्राओं से हुई।
 
सागर के पानी की विशेषता इसका खारा या नमकीन होना है। पानी को यह खारापन मुख्य रूप से ठोस सोडियम क्लोराइड द्वारा मिलता है, लेकिन पानी में पोटेशियम और मैग्नीशियम के क्लोराइड के अतिरिक्त विभिन्न रासायनिक तत्व भी होते हैं जिनका संघटन पूरे विश्व मे फैले विभिन्न सागरों में बमुश्किल बदलता है। हालाँकि पानी की लवणता में भीषण परिवर्तन आते हैं, जहां यह पानीकी ऊपरी सतह और नदियों के मुहानों पर कम होती है वहीं यह पानी की ठंडी गहराइयों में अधिक होती है। सागर की सतह पर उठती लहरें इनकी सतह पर बहने वाली हवा के कारण बनती है। भूमि के पास उथले पानी में पहँचने पर यह लहरें मंद पड़ती हैं और इनकी ऊँचाई में वृद्धि होती है, जिसके कारण यह अधिक ऊँची और अस्थिर हो जाती हैं और अंतत: सागर तट पर झाग के रूप में टूटती हैं। [[सूनामी|सुनामी]] नामक लहरें समुद्र तल पर आये [[भूकम्प|भूकंप]] या भूस्खलन की वजह से उत्पन्न होती है और सागर के बाहर बमुश्किल दिखाई देती हैं, लेकिन किनारे पर पहँचने पर यह लहरें प्रचंड और विनाशकारी साबित हो सकती हैं।
 
हवायें सागर की सतह पर घर्षण के द्वारा धाराओं का निर्माण करती हैं जिसकी वजह से पूरे सागर के पानी एक धीमा लेकिन स्थिर परिसंचरण स्थापित होता है। इस परिसंचरण की दिशा कई कारकों पर निर्भर करती है जिनमें महाद्वीपों का आकार और पृथ्वी का घूर्णन शामिल हैं। गहरे सागर की जटिल धारायें जिन्हें [[थर्मोहेलीन परिसंचरण| वैश्विक वाहक पट्टे]] के नाम से भी जाना जाता है ध्रुवों के ठंडे सागरीय जल को हर महासागर तक ले जाती हैं। सागरीय जल का बड़े पैमाने पर संचलन [[ज्वार-भाटा |ज्वार]] के कारण होता है, दैनिक रूप से दो बार घटने वाली यह घटना [[चन्द्रमा|चंद्रमा]] द्वारा पृथ्वी पर लगाये जाने वाला गुरुत्व बल के कारण घटित होती है, हालाँकि पृथ्वी, सूर्य द्वारा लगाये जाने वाला गुरुत्व बल से भी प्रभावित होती है पर चंद्रमा की तुलना में यह बहुत कम होता है। उन खाड़ियों और ज्वारनदमुखों में इन ज्वारों का स्तर बहुत अधिक हो सकता है जहां ज्वारीय प्रवाह संकीर्ण वाहिकों में बहता है।
 
सागर में जीवित प्राणियो के सभी प्रमुख समूह जैसे कि [[जीवाणु]], प्रोटिस्ट, [[शैवाल]], [[फफूंद|कवक]], पादप और जीव पाए जाते हैं। माना जाता है कि जीवन की उत्पत्ति सागर में ही हुई थी, साथ ही यहाँ पर ही जीवों के बड़े समूहों मे से कइयों का विकास हुआ। सागरों में पर्यावास और पारिस्थितिकी प्रणालियों की एक विस्तृत श्रृंखला समाहित है।
 
सागर दुनिया भर के लोगों के लिए भोजन, मुख्य रूप से [[मछली]] उपलब्ध कराता है किंतु इसके साथ ही यह कस्तूरों, सागरीय स्तनधारी जीवों और सागरीय शैवाल की भी पर्याप्त आपूर्ति करता है। इनमें से कुछ को मछुआरों द्वारा पकड़ा जाता है तो कुछ की खेती पानी के भीतर की जाती है। सागर के अन्य मानव उपयोगों में [[व्यापार]], [[यात्रा]], खनिज दोहन, बिजली उत्पादन और नौसैनिक युद्ध शामिल हैं, वहीं आनंद के लिए की गयी गतिविधियों जैसे कि तैराकी, नौकायन और स्कूबा डाइविंग के लिए भी सागर एक आधार प्रदान करता है। इन गतिविधियों मे से कई गतिविधियां सागरीय प्रदूषण का कारण बनती हैं। मानव संस्कृति में सागर महत्वपूर्ण है और इसका प्रयोग सिनेमा, शास्त्रीय संगीत, साहित्य, रंगमंच और कलाओं में बहुतायत से किया जाता है। हिंदु संस्कृति में सागर को एक देव के रूप में वर्णित किया गया है। विश्व के कई हिस्सों में प्रचलित पौराणिक कथाओं में सागर को विभिन्न रूपों में दर्शाया गया है। हिन्दी भाषा में सागर के कई [[पर्यायवाची]] शब्द हैं जिनमें जलधि, जलनिधि, नीरनिधि, उदधि, पयोधि, नदीश, तोयनिधि, कम्पती, वारीश, अर्णव आदि प्रमुख हैं।