"चीन का इतिहास": अवतरणों में अंतर

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चीन के बारेमे कुछ रोचक बाते: '''[https://www.historydekho.com/%e0%a4%9a%e0%a5%80%e0%a4%a8-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%ac%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a5%87%e0%a4%ae%e0%a5%87-%e0%a4%95%e0%a5%81%e0%a4%9b-%e0%a4%b0%e0%a5%8b%e0%a4%9a%e0%a4%95-%e0%a4%ac%e0%a4%be%e0%a4%a4/ यहाँ देखे]'''
 
पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर [[चीन]] में मानव बसाव लगभग साढ़े बाईस लाख (22.5 लाख) साल पुराना है। चीन की सभ्यता [[ब्रह्माण्ड|विश्व]] की पुरातनतम सभ्यताओं में से एक है। यह उन गिने-चुने सभ्यताओं में एक है जिन्होनें प्राचीन काल में अपना स्वतंत्र लेखन पद्धति का विकास किया। अन्य सभ्यताओं के नाम हैं - प्राचीन भारत ([[सिंधु घाटी सभ्यता]]), [[मेसोपोटामिया]], [[मिस्रप्राचीन सभ्यतामिस्र|मिस्र]] और [[माया सभ्यता|माया]]। चीनी लिपि अब भी चीन, [[जापान]] के साथ-साथ आंशिक रूप से [[कोरिया]] तथा [[वियतनाम]] में प्रयुक्त होती है।
 
== मुख्य घटनाएँ ==
* '''221 ईसापूर्व''' - [[झाऊ वंश]] का शासन, सामन्तवादी प्रथा का प्रारंभ,
* '''ईसापूर्व 220 से 206 ईसापूर्व''' - [[किन वंश]] ने संगठित चीन की स्थापना की। [[चीन की विशाल दीवार]] का निर्माण पूर्ण हुआ।
* '''206 ईसापूर्व से 220 ई''' - [[हान राजवंश|हान वंश]] ने चीन की सीमा को [[कोरिया]], [[वियतनाम]], [[मंगोलिया]] व [[मध्य एशिया]] तक बढ़ाया।
* '''1368 ईस्वी''' - झू यांगझांग ने [[मंगोल|मंगोलों]] को पराजित कर [[मिंग राजवंश|मिंग वंश]] की स्थापना की।
* ''' 1851 ईस्वी''' - चीन के अंतिम राजवंश किंग ने यूरोपीय प्रभाव को समाप्त करके देश को नियंत्रण में लिया।
* ''' 1911 ईस्वी''' - [[ताइपिंग विद्रोह]] हुआ। किंग राजवंश और क्रांतिकारियों के बीच हुए संघर्ष में 2 करोड़ लोग मारे गए। यह चीनी इतिहास का सबसे हिंसक [[गृहयुद्ध]] था।
* '''1937 ईस्वी'''- [[सुन यात-सेन|सन यात-सेन]] ने किंग वंश के खिलाफ विद्रोह का नेतृत्व किया, चीन गणतंत्र राज्य घोषित।
* ''' 1939 ईस्वी''' - [[जापान]] ने चीन पर आक्रमण किया। 1945 में इस युद्ध के समाप्त होने तक 1 करोड़ चीनी नागरिक लापता हो चुके थे।
* '''1949''' - [[माओ से-तुंग|माओत्से तुंग]] द्वारा [[चीनी जनवादी गणराज्य|पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना]] की स्थापना हुई, चीन गणतांत्रिक समाजवादी देश बना।
* '''1956''' - माओत्से तुंग ने चीन के तीव्र [[औद्योगीकरण]] के लिए योजना बनाई। यह तीन वर्ष में ही धराशायी हो गई।
*'''1958''' - [[ग्रेट लीप फ़ॉर्वर्ड|ग्रेट लीप फ़ॉर्वर्ड का अकाल]], मानव इतिहास में सबसे अधिक लोगों के मौत के लिए ज़िम्मेदार त्रासदी घटी ।
*'''1966''' - माओत्से तुंग द्वारा प्रतिद्वंदियों का सफाया करने के लिए चलायी गई '[[सांस्कृतिक क्रांति]]' में 50,000 लोग मारे गए।
* '''1971''' - चीन [[संयुक्त राष्ट्र|संयुक्त राष्ट्र संघ]] के [[संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद|सुरक्षा परिषद]] का स्थायी सदस्य चुना गया।
*'''1978''' - [[देंग शियाओ पिंग|डेंग जियाओपिंग]] ने चीन में सुधार और आधुनिकीकरण को प्रेरित किया।
* '''1989''' - [[तियानानमेन चौक विरोध प्रदर्शन, १९८९|तियानानमेन चौक पर छात्रों द्वारा किए जा रहे विरोध प्रदर्शनों]] को क्रूरता से कुचला गया।
* '''2008''' - [[बीजिंग]] ने 2008 [[ओलम्पिक खेल|ओलंपिक]] खेलों की मेजबानी की।
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[[चित्र:Terracotta pmorgan.jpg|thumb|left|किन वंश के मिटटी के बने हजारों मानवाकार योद्धाओं में से कुछ, २१० ईसापूर्व]]
 
दूसरा वंश शांग जो की कुछ कलहकारी था, १८वीं से १२वीं शताब्दी ईसापूर्व पूर्वी चीन की [[ह्वांगहो|पीली नदी]] किनारे बसा। पश्चिम में बसे झोऊ साम्राज्य ने आक्रमण के बाद १२वीं से ५वीं शताब्दी ईसापूर्व तक उन पर शासन किया जब तक की उनका एकीकृत नियंत्रण पड़ोस के साम्राज्यों के हमलों से क्षीण नहीं हो गया। कई शक्तिशाली और स्वतंत्र राज्य आपस में लगातार एक-दूसरे पर बसंत और पतझड़ के महीनो में युद्ध करते जिससे झोऊ के राजाओं को कुछ समय मिल जाता।gyan
 
== [[प्राचीन चीन]] ==
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लेकिन यह याद रखनी चाहिए कि इस विज्ञप्ति के अनुसार चीन में आए हुए विदेशियों को चीन से बाहर नहीं निकाला गया। केवल उन पर या विभिन्न देशों से आये हुए व्यापारियों पर एक प्रकार का नियन्त्रण रखने की बात कही गयी। चीन की मंचू सरकार को यह आशंका हो गयी थी कि अगर इन व्यापारियों को व्यापार करने की अनुमति नहीं दी जाएगी तो वे सम्पूर्ण चीन में फैलकर अशांति फैलाने का प्रयत्न करेंगे। इसलिए इस विज्ञप्ति में यह स्पष्ट कर दिया गया कि ये विदेशी व्यापारी चीन के सभी तटवर्ती बन्दरगाहों से शांतिपूर्वक उचित व्यापार कर सकते हैं। व्यापार करने की अनुमति मिलते ही विदेशियों की प्रसन्नता का पारावार नहीं रहा क्योंकि बड़े सहज ढंग से ही उन्हें यह अनुमति मिल गयी थी। इससे उनका उत्साह और हौसला दोनों बढ़ा। फलतः अर्थ-लोलुपता के चलते इन लोगों ने नाजायज व्यापार भी करना प्रारम्भ किया। वे उन व्यापारिक सुविधाओं का भी दुरुपयोग करने लगे जो उन्हें प्राप्त हुए थे। स्वाभाविक रूप से चीन की सरकार का ध्यान पुनः उनकी ओर आकर्षित हुआ। इसीलिए मंचू वंश के दूसरे सम्राट् चिएन लुग ने 1757 ई. में एक दूसरी विज्ञप्ति निकाली जिसके चलते वैदेशिक व्यापार को चीन में सीमित कर दिया गया और व्यापारियों पर अनेक प्रकार के प्रतिबन्ध लगाये गये। इस विज्ञप्ति के अनुसार इन विदेशी व्यापारियों को दक्षिणी चीन के केवल एक बन्दरगाह कैण्टन से व्यापार करने की अनुमति मिली। इसके अतिरिक्त चीन में एक व्यापारिक दल का संगठन किया गया जिसे ‘को-हंग’ कहा गया। इस दल के परामर्श तथा देख-रेख में ही विदेशी व्यापारी चीन से व्यापार कर सकते थे। इस तरह अठारहवीं सदी के उत्तरार्द्ध में उन व्यापारियों की चाल पर चीन की सरकार ने एक पैनी दृष्टि रखी और यह स्पष्ट कर दिया कि वे व्यापारिक मामलों के लिए किसी अन्य बन्दरगाह का दौरा नहीं कर सकते हैं। पर इस विज्ञप्ति का कोई विशेष असर विदेशी व्यापारियों पर नहीं पड़ा। व्यापार के साथ-साथ चीन की राजनीति पर भी इनका हस्तक्षेप होना प्रारम्भ हो गया और ईसाई मिशनरियों के कर्तृत्व तो और भी अधिक बुरे होने लगे। कैण्टन से व्यापार करते-करते वे चीन के अन्य बन्दरगाहों से भी व्यापार करने लगे। चीनियों को अफीम का सेवन कराकर उनकी आदतें बुरी बनाने लगे। अफीम खाने की आदत पड़ जाने से व्यापारी अफीम की बिक्री द्वारा आर्थिक लाभ प्राप्त करना चाहते थे। जब अफीम के बुरे परिणामों को चीन की सरकार देखने लगी और इस व्यापार पर रोक लगायी, तब विदेशी व्यापारी चीन के आफिसरों को घूस देकर अपनी ओर मिलाने लगे और चोरी छिपे यह व्यापार चलता रहा। इस कार्य में इंगलैण्ड के अँग्रेज अत्यन्त पटु थे। अफीम के चलते चीन को दो प्रकार के नुकसान होने प्रारम्भ हो गये।
एक तो अफीम की बिक्री बढ़ जाने से अँग्रेजों को फायदा हुआ, लेकिन चीन को आर्थिक क्षति उठानी पड़ी। दूसरा यह कि चीन की जनता का नैतिक धरातल नीचे गिरने लगे। फलतः सरकार ने पूर्ण कठोरता के साथ अफीम के व्यापार पर नियन्त्रण रखने का प्रयास किया जिसके फलस्वरूप चीन तथा [[ब्रिटेन]] में [[अफ़ीम युद्ध|अफीम युद्ध]] हुआ। इस युद्ध में चीन सफल नहीं हो सका क्योंकि उसके दुश्मनों के पास शक्तिशाली और केन्द्रित सरकार थी और चीन का शासन कमजोर तथा विकेन्द्रित था। अतः इन शत्रुओं का सामना करने के लिए चीन शासन कमजोर तथा विकेन्द्रित था। अतः इन शत्रुओं का सामना करने के लिए चीन कतई तैयार नहीं था।’’
 
इस तरह अनेक वर्षों के बाद उन्नीसवीं सदी तक चीन के साथ विदेशियों का सम्बन्ध कायम हुआ। इस सम्बन्ध के परिणाम चीनियों के लिए नितान्त बुरे ही सिद्ध हुए। यह सही है कि इन्हीं विदेशियों के चलते चीन में राष्ट्रीयता की भावना आयी, लेकिन जबतक विदेशियों की दाल गलती रही वे चीन में अपने साम्राज्यवाद के विकास का प्रत्यन करते रहे। भारतीय इतिहासकार श्री पन्निकर का मत है कि पाश्चात्य देशों के सम्पर्क से चीन को लाभ से अधिक क्षति उठानी पड़ी और प्रथम विश्व-युद्ध के पाँच-छः वर्षों के पश्चात् तक चीन का गौरव धूल-धूसरित होता रहा, राजनीतिक अखण्डता टूटती रही और प्रशासनिक दृढ़ता लायी नहीं जा सकी।
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१९१६ में युआन शिकाई की मृत्यु के बाद चीन राजनेतिक रूप से खंडित हो गया, यद्यपि अन्तराष्ट्रीय समुदाय द्वारा मान्यताप्राप्त लेकिन वास्तविक रूप से शक्तिहीन सरकार बीजिंग में स्थापित थी। सिपहसालारों का उनके द्वारा नियंत्रित क्षेत्रों पर वास्तविक अधिकार था। १९२० के अंतिम वर्षों में चियांग काई-शेक द्वारा कुओमिन्तांग (राजनेतिक दल) की स्थापना की गयी जिसने चीन को पुनः एकीकृत किया और राष्ट्र की राजधानी नानकिंग (वर्तमान नानजिंग) घोषित की और एक "राजनीतिक संरक्षण" का कार्यान्वयन किया जो सुन यात-सेन द्बारा चीन के राजनेतिक विकास के लिए निधारित किये गए कार्यक्रम का मध्यवर्ती स्टार था जिसका उद्देश्य चीन को आधुनिक और लोकतांत्रिक राष्ट्र बनाना था। प्रभावी रूप से, "राजनीतिक संरक्षण" का अर्थ कुओमिन्तांग द्वारा एक-दलीय शाशन था।
 
१९३७-१९४५ के [[प्रथम चीन-जापान युद्ध|चीन-जापान युद्ध]] के कारण राष्ट्रवादियों और साम्यवादियों के बीच एक असहज गठबंधन हुआ और साथ ही १ करोड़ चीनी नागरिक भी मारे गए। १९४५ में जापान के समर्पण के साथ, चीन विजयी राष्ट्र के रूप में तो उभरा लेकिन वित्तीय रूप से उसकी स्तिथि बिगड़ गयी। राष्ट्रवादियों और साम्यवादियों के बीच जारी अविश्वास के कारण चीनी गृह युद्ध की नींव पड़ी। १९४७ में, संवैधानिक शासन स्थापित किया गया था, लेकिन आर॰ओ॰सी संविधान के बहुत से प्रावधानों को चल रहे गृह युद्ध के कारण मुख्य भूमि पर कभी भी लागू नहीं किया गया।
 
=== चीनी जनवादी गणराज्य और चीनी गणतंत्र (१९४९-वर्तमान) ===
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१९७० के अंतिम वर्षों के बाद से, चीन गणराज्य ने अपने नियंत्रण के क्षेत्रों में पूर्ण, बहु-दलीय, प्रतिनिधियात्मक लोकतंत्र लागू किया जैसे ताइवान, बहुत से छोटे द्वीपों जैसे कुइमोय और मात्सु में। समाज के सभी क्षेत्रों द्वारा आज, चीनी गणराज्य (ताइवान) में सक्रिय राजनीतिक भागीदारी है। चीनी गणराज्य (ताइवान) की राजनीति में मुख्य विपाटन ताइवान की औपचारिक स्वतंत्रता बनाम चीन की मुख्य भूमि के साथ अंतिम राजनीतिक एकीकरण प्रमुख मुद्दा है।
 
[[चीनी गृहयुद्ध|चीनी गृह युद्ध]] के बाद, मुख्य भूमि चीन विघटनकारी सामाजिक आंदोलनों के दौर से गुजरा जिसका आरम्भ १९५० में "[[ग्रेट लीप फ़ॉर्वर्ड ]]" से हुई और जो १९५० के दशक की "सांस्कृतिक क्रांति" के साथ जारी रही जिसने चीन की शिक्षा व्यवस्था और अर्थव्यवस्था का बिखराव कर दिया। माओ ज़ेदोंग और झोउ एनलाई जैसे अपनी पहली पीढ़ी के साम्यवादी दल के नेताओं की मृत्यु के साथ ही, चीनी जनवादी गणराज्य ने देंग जियाओपिंग की वकालत में राजनीतिक और आर्थिक सुधारों की एक श्रृंखला आरम्भ की जिसने अंतत: १९९० के दशक में चीनी मुख्य भूमि के तीव्र आर्थिक विकास की नींव रखी।
 
१९७८ के बाद के सुधारों के कारण समाज के कई क्षेत्रों पर नियंत्रण में कुछ ढील दी गयी है। बहरहाल, ची ज ग (परक) सरकार का अभी भी राजनीति पर लगभग पूर्ण नियंत्रण है और यह लगातार उन कारणों के उन्मूलन प्रयासों में लगी रहती है जिसे ये देश के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक स्थिरता के लिए खतरे के रूप देखती है। उदाहरण के लिए आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई, राजनीतिक विरोधियों और पत्रकारों को कारावास, प्रेस विनियमन की निगरानी, धर्म का विनियमन और स्वतंत्रता/पृथकतावादी आंदोलनों को कुचलना। १९८९ में त्यानआनमेन चौक में छात्र विरोध समाप्त करने के लिए चीन की सेना ने मार्शल लॉ के १५ दिन के बाद हिंसक रूप से कुचल दिया। १९९७ में ब्रिटेन द्वारा [[हॉन्ग कॉन्ग|हांगकांग]] के चीन को वापस दे दिया गया और १९९९ में [[पुर्तगाल]] द्वारा [[मकाउ]]।
 
== इन्हें भी देखें ==