"द्वैत": अवतरणों में अंतर
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[[मध्वाचार्य]] द्वारा प्रतिपादित तथा उनके अनुयायियों द्वारा उपबृंहित '''द्वैतवाद''' [[रामानुज]] के [[विशिष्टाद्वैत|विशिष्ट द्वैतवाद]] से काफी मिलता-जुलता है। मध्व बिना संकोच द्वैत का प्रतिपादन करते हैं। [[अद्वैत वेदान्त|अद्वैत वेदांत]] को मध्व "मायावादी दानव' कहते हैं। इनके अनुसार जगत्प्रवाह पाँच भेदों से समन्वित है- (१) जीव और ईश्वर में, (२) जीव और जीव में, (३) जीव और जड़ में, (४) ईश्वर और जड़ में तथा (५) जड़ और जड़ में भेद स्वाभाविक है।
संसार सत्य है और इसमें होनेवाले भेद भी सत्य हैं। वस्तु का स्वरूप ही भेदमय है। ज्ञान में हम वस्तु को अन्य वस्तुओें से अलग करके एक विलक्षण रूप में जानते हैं। चूँकि ज्ञेय विषय भिन्न हैं अत: हमारा ज्ञान भी ज्ञेय के अनुसार भिन्न भिन्न होता है।
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