"कहरुवा": अवतरणों में अंतर

छो बॉट: वर्तनी एकरूपता।
छो बॉट: पुनर्प्रेषण ठीक कर रहा है
पंक्ति 1:
::''अगर आप संगीत की ताल ढूंढ रहें हैं तो [[कहरवा]] का लेख देखिये''
[[चित्र:Amber.pendants.800pix.050203.jpg|thumb|230px|मालाओं में लगे कहरुवे]]
'''कहरुवा''' या '''तृणमणि''' (<small>[[जर्मन भाषा|जर्मन]]: Bernstein, [[फ़्रान्सीसी भाषा|फ्रेंच]]: ambre, [[स्पेनी भाषा|स्पेनिश]]: ámbar, [[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]]: amber, ऐम्बर</small>) वृक्ष की ऐसी गोंद ([[रेज़िन|सम्ख़]] या रेज़िन) को कहते हैं जो समय के साथ सख़्त होकर पत्थर बन गई हो। दूसरे शब्दों में, यह [[जीवाश्म]] रेजिन है। यह देखने में एक कीमती पत्थर की तरह लगता है और प्राचीनकाल से इसका प्रयोग आभूषणों में किया जाता रहा है। इसका इस्तेमाल सुगन्धित धूपबत्तियों और दवाइयों में भी होता है। क्योंकि यह आरम्भ में एक पेड़ से निकला गोंदनुमा [[रेज़िन|सम्ख़]] होता है, इसलिए इसमें अक्सर छोटे से कीट या पत्ते-टहनियों के अंश भी रह जाते हैं। जब कहरुवे ज़मीन से निकाले जाते हैं जो वह हलके पत्थर के डले से लगते हैं। फिर इनको तराशकर इनकी मालिश की जाती है जिस से इनका रंग और चमक उभर आती है और इनके अन्दर झाँककर देखा जा सकता है। क्योंकि कहरुवे किसी भी सम्ख़ की तरह [[हाइड्रोकार्बन]] के बने होते हैं, इन्हें जलाया जा सकता है।<ref name="ref16vafir">[http://books.google.com/books?id=PVxX_0Jrt7kC Amber and the Ancient World], Faya Causey, Getty Publications, 2012, ISBN 978-1-60606-082-7, ''... The burning of amber would not have been considered a destructive act, but rather an elevated use of the material ... Amber burned as incense was of great consequence in rituals involving solar deities ...''</ref><ref name="ref85jiduf">[http://books.google.com/books?id=fPTVAAAAMAAJ हिन्दी शब्दसागर, ९वां खंड], श्यामसुंदर दास, बालकृष्ण भट्ट, नागरीप्रचारिणी सभा, ''... कहरुवा नामक गोद जो बरमा की खानों से ...''</ref>
 
यह पदार्थ [[म्यान्मार|म्यांमार]] की [[खान|खानों]] से निकलता है। यह रंग में पीला होता है और औषध में काम आता है। चीन देश में इसको पिघलाकर माला की गुरियाँ, मुँहनालइत्यादि वस्तुएँ बनाते हैं। इसकी [[वार्निश|वारनिश]] भी बनती है। इसे कपड़े आदि पर रगड़कर यदि घास या तिनके के पास रखें तो उसे चुंबक की तरह पकड़ लेता है।
 
== परिचय ==
ऐंबर एक जीवाश्म रेज़िन है। यह एक ऐसे वृक्ष का जीवाश्म रेज़िन है जो आज कहीं नहीं पाया जाता। रगड़ने से इससे बिजली पैदा होती है (यह [[विद्युत आवेश|आवेशित]] हो जाता है)। यह इसकी विशेषता है और इसी गुण के कारण इसकी ओर लोगों का ध्यान पहले पहल आकर्षित हुआ। आजकल ऐंबर के अनेक उपयोग हैं। इसके मनके और मालाएँ, तंबाकू की नलियाँ (पाइप), सिगार और सिगरेट की धानियाँ (होल्डर) बनती हैं।
 
ऐंबर बाल्टिक सागर के तटों पर, समुद्रतल के नीचे के स्तर में, पाया जाता है।<ref name="Ostsee">[https://books.google.com/books?id=VWkX5TzCF1IC Danzig, Ostsee, Masuren: unterwegs im Nordosten Polens], Klaus Klöppel und Peter Hirth, DuMont Reiseverlag, 2010, ISBN 978-3-77019-209-0, ''... Noch bis ins 19. Jahrhundert wurde Bernstein vor allem am Strand der Ostsee aufgelesen. Bernsteinfischer suchten mit an langen Stangen befestigten Netzen den Meeresboden nach dem Gold der Ostsee ab ...''</ref> समुद्र की तरंगों से बहकर यह तटों पर आता है और वहाँ चुन लिया जाता है, अथवा जालों में पकड़ा जाता है। ऐसा ऐंबर [[डेनमार्क]], [[स्वीडन]] और बाल्टिक प्रदेशों के अन्य समुद्रतटों पर पाया जाता है। [[सिसिली|सिसली]] में भी ऐंबर प्राप्त होता है। यहाँ का ऐंबर कुछ भिन्न प्रकार का और प्रतिदीप्त (फ़्लुओरेसेंट) होता है। ऐंबर के समान ही कई किस्म के अन्य फ़ौसिल रेज़िन अन्य देशों में पाए जाते हैं।
 
ऐंबर के भीतर लिगनाइट अथवा काठ-फ़ौसिल और कभी कभी मरे हुए कीड़े सुरक्षित पाए जाते हैं। इससे ज्ञात होता है कि इसकी उत्पत्ति कार्बनिक स्रोतों से हुई है।
पंक्ति 31:
 
== इन्हें भी देखें ==
* [[रेज़िन|सम्ख़]]
* [[टरपीन]]