"नास्तिकता": अवतरणों में अंतर

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ईश्वरवादी एक युक्ति यह दिया करते हैं कि इस भौतिक संसार में सभी वस्तुओं के अंतर्गत और समस्त सृष्टि में, नियम और उद्देश्य सार्थकता पाई जाती है। यह बात इसकी द्योतक है कि इसका संचालन करनेवाला कोई बुद्धिमान ईश्वर है इस युक्ति का अनीश्वरवाद इस प्रकार खंडन करता है कि संसार में बहुत सी घटनाएँ ऐसी भी होती हैं जिनका कोई उद्देश्य, अथवा कल्याणकारी उद्देश्य नहीं जान पड़ता, यथा अतिवृष्टि, अनावृष्टि, अकाल, बाढ़, आग लग जाना, अकालमृत्यु, जरा, व्याधियाँ और बहुत से हिंसक और दुष्ट प्राणी। संसार में जितने नियम और ऐक्य दृष्टिगोचर होते हैं उतनी ही अनियमितता और विरोध भी दिखाई पड़ते हैं। इनका कारण ढूँढ़ना उतना ही आवश्यक है जितना नियमों और ऐक्य का। जैसे, समाज में सभी लोगों को राजा या राज्यप्रबंध एक दूसरे के प्रति व्यवहार में नियंत्रित रखता है, वैसे ही संसार के सभी प्राणियों के ऊपर शासन करनेवाले और उनको पाप और पुण्य के लिए यातना, दंड और पुरस्कार देनेवाले ईश्वर की आवश्यकता है। इसके उत्तर में अनीश्वरवादी यह कहता है कि संसार में प्राकृतिक नियमों के अतिरिक्त और कोई नियम नहीं दिखाई पड़ते। पाप और पुण्य का भेद मिथ्या है जो मनुष्य ने अपने मन से बना लिया है। यहाँ पर सब क्रियाओं की प्रतिक्रियाएँ होती रहती हैं और सब कामों का लेखा बराबर हो जाता है। इसके लिए किसी और नियामक तथा शासक की आवश्यकता नहीं है। यदि पाप और पुण्य के लिए दंड और पुरस्कार का प्रबंध होता तथा उनको रोकने और करानेवाला कोई ईश्वर होता; और पुण्यात्माओं की रक्षा हुआ करती तथा पापात्माओं को दंड मिला करता तो ईसामसीह और गांधी जैसे पुण्यात्माओं की नृशंस हत्या न हो पाती।
 
इस प्रकार अनीश्वरवाद ईश्वरवादी सूक्तियों का खंडन करता है और यहाँ तक कह देता है कि ऐसे संसार की सृष्टि करनेवाला यदि कोई माना जाय तो बुद्धिमान और कल्याणकारी ईश्वर को नहीं, दुष्ट और मूर्ख शैतान को ही मानना पड़ेगा। 'नास्तिक भारत' ने अपने एक लेख [https://www.nastik.in/p/who-is-atheist.html नास्तिक की परिभाषा] में कई सवालों के साथ ही एक सवाल और उठाया है। वह यह कि अगर सृष्टि को यदि ईश्वर ने बनाया, तब यह भी सवाल उठेगा कि ईश्वर को फिर किसने बनाया। यह एक ऐसा सवाल है जिसका संतोषजनक उत्तर भी आस्तिक लोग नहीं दे पाते।
 
पाश्चात्य दार्शनिकों में अनेक अनीश्वरवादी हो गए हैं और हैं। [[भारत]] में जैन, बौद्ध, [[चार्वाक दर्शन|चार्वाक]], सांख्य और पूर्वमीमांसा दर्शन अनीश्वरवादी दर्शन हैं। इन दर्शनों में दी गई युक्तियों का सुंदर संकलन हरिभद्र सूरि लिखित षड्दर्शन समुच्चय के ऊपर गुणरत्न के लिखे हुए भाष्य, कुमारिल भट्ट के श्लोकवार्तिक और रामानुजाचार्य के ब्रह्मसूत्र पर लिखे गए श्रीभाष्य में पाया जाता है।