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* [[कहानी]]
* [[लघुकथा]]
*उदाहरण- #"लगाव"                2 साल पहले मैं पॉलिटेक्निक करने के बाद ऋषिकेश में ताऊ जी के यहां छुट्टियां बिता रहा था। एक दिन मुझे फोन आया की मुझे सरस्वती शिशु मंदिर लंब गांव टिहरी गढ़वाल में पढ़ाने के लिए जाना है । मैं घूमने का काफी  शौकीन हूं, इसलिए मैं कुछ दिनों के लिए वहां चला गया। वहां पर मेरे लिए सब कुछ नया नया सा था  अनजाने लोग, नई जगह थी। धीरे धीरे स्टाफ से बच्चों से रूबरू हुआ ।अब थोड़ा अच्छा सा लगने लगा था । मैं प्रधानाचार्य जी के साथ उनके कमरे पर ही रहता था,  इसलिए सांय काल में बच्चों के साथ विद्यालय में शाखा लगाता था।मुझे संगीत का काफी शौक है, इसलिए विद्यालय में जब भी सांस्कृतिक कार्यक्रम होते थे, मैं बच्चों की तैयारी बड़े उत्साह से करवाता था । वहां के बच्चों के साथ मेरा लगाव धीरे धीरे बढ़ता गया। अब लगाव कुछ इस कदर बढ़ गया कि, कभी रविवार की छुट्टी होती थी तो मैं कमरे में बोर हो जाया करता था। बस सोमवार का इंतजार करता रहता था।                 इसी तरह सब बढ़िया चल रहा था। लेकिन कुछ महीने पहले मुझे विद्यालय छोड़ना पड़ा तो, मैं 1 जुलाई को अपना सामान लेने  लंब गांव गया ।उन दिनों बरसात हो रही थी, बच्चे स्कूल नहीं आ रहे थे ।जिस कारण मैं सभी बच्चों से नहीं मिल पाया। 3 तारीख को  मैं वापस आया, लेकिन कुछ अलग सा लगने लगा। फिर मैंने सोचा की 15 अगस्त को कार्यक्रम के लिए जाऊंगा तो सभी बच्चों से  भी मिलकर आऊंगा।।।               अब मैं बस 15 अगस्त का इंतजार कर रहा था, उंगलियों में दिन गिन रहा था। फिर 15 अगस्त का दिन आया मैं सुबह 5:00 वाली बस से  लंब गांव गया। वहां पर मैं करीब 8:00 बजे पहुंचा बच्चे उस समय प्रभात फेरी में घूम रहे थे मैं ऊपर एक अभिभावक के घर पर नाश्ता करने गया, तथा उसके बाद विद्यालय में कार्यक्रम देखने गया। वहां पर  नया स्टाफ व्यवस्थाओं में लगे थे, मैं भी उनके साथ व्यवस्थाओं में लग गया। कार्यक्रम शुरू हुए, मैंने भी एक प्रस्तुति दी। सभी बच्चे खुश थे, मुझे भी एक आनंद की अनुभूति हुई।              अगले दिन 16 तारीख को मैं वापिस आ रहा था, लेकिन जैसे ही मैं मैक्स में बैठा और गाड़ी स्टार्ट हुई, मेरे आंखों से पानी की बरसात होने लगी दिल में   हल्का सा दर्द होने लगा और करीब 10 किलोमीटर की दूरी तक यही चलता रहा। फिर मैंने आंखें बंद कर सोने की कोशिश की लेकिन नींद  नहीं आ रही थी। बस बच्चों की याद आ रही थी, वहां की गलियां, वहां के लोग,वहां का स्टाफ सभी की याद आ रही थी। उस दिन खाने का भी मन नहीं किया, फोन पर भी किसी से बात नहीं हो पाई। फिर अगले दिन वहां के बच्चों के साथ बात हुई तो सुकून मिला।  अब तो बस फिर वहां जाने के लिए मैं आतुर हो रखा हूं पता नहीं अब कब और कैसे वहां जाना होगा!!! : राम माधव
 
== बाहरी कड़ियाँ ==
"https://hi.wikipedia.org/wiki/कथा" से प्राप्त