"शिया इस्लाम": अवतरणों में अंतर
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हज़रत अली और सैद्धांतिक रूप से मुहम्मद सo साहब के रिश्तेदारों के समर्थकों ने उनके पुत्र हसन के प्रति निष्ठा दिखाई, लेकिन कुछ उनका साथ छोड़ गए। हसन इब्ने अली ने जंग न की बल्कि हजरत माविया के साथ सन्धि कर ली। असल में अली के समय में [[सिफ्फीन की लड़ाई]] में माविया खलीफा बन चुके थे एवं [[दमिश्क]] को अपनी राजधानी घोषित कर रखी थी। वो सीरिया का गवर्नर पिछ्ले खलीफाओं के कारण बने थे अब वो अपनी एक बड़ी सेना तैयार कर रहे थे अब उसने वही सवाल इमाम हसन के सामने रखा: ''या तो युद्ध या फिर अधीनता''। इमाम हसन ने अधीनता स्वीकार ही स्वीकार की परन्तु वो मुसलमानों का खून भी नहीं बहाना चाहते थे इस कारण वो युद्ध से दूर रहे। अब हजरत माविया भी किसी भी तरह सत्ता चाहते थे तो इमाम हसन से सन्धि करने पर मजबूर हो गए। इमाम हसन ने अपनी शर्तो पर उसको सिर्फ सत्ता सौंपी। इन शर्तो में से कुछ ये हैं: -
* वो सिर्फ सत्ता के कामों तक सीमित रहेगा यानि धर्म में कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकेगा।
* वो अपने जीवन तक ही सत्ता में रहेगा मरने से पहले किसी को उत्तराधिकारी न बना
* वो सिर्फ इस्लाम के कानूनों का पालन करेगा।
इस प्रकार की शर्तो के द्वारा वो सिर्फ नाम मात्र का शासक रह गया। उसके वंश का शासन ७५० इस्वी तक रहा और उन्हें [[उमय्यद]] कहा गया।
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