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'''[[भूर्या पितामहोपात्त निबंधी द्रव्यमेव वा।
 
तत्र स्यात् सदृशं स्वाम्यं पितुः पुत्रस्य चोभचोः]]'''।।
 
पिता पुत्र का समान अधिकार स्पष्ट कहा गया है तथापि जीमूतवाहन ने इस श्लोक से खींच तानकर यह भाव निकाला है कि पुत्रों के स्वत्व की उत्पत्ति उनके जन्मकाल से नहीं, वल्कि पिता के मृत्युकाल से होती है।