"यादव": अवतरणों में अंतर

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= प्रमुख यादव साहित्यका =
 
* राजेन्द्र यादव, सम्पादक हंस पत्रिका
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यादवों की उतपत्ति: सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा के मस्तिष्क से ‘अत्री’ ऋषि उत्पन्न हुए थे। ‘अत्री’ ने ‘भद्रा’ से विवाह किया, उन दोनों ने ‘सोम’ को जन्म दिया था। यहीं से सोमवंश/चन्द्रवंश की शुरुवात हुयी। युवावस्था में ‘सोम’ की तरफ ऋषि ‘बृहस्पति’ की पत्नी ‘तारा’ आकर्षित हुयी। दोनों ने मिलकर ऋषि बृहस्पति की अनुपस्थिति में ‘बुध’ को जन्म दिया।
भागवत के अनुसार सोमपुत्र ऋषि ‘बुध’ भारत खंड आये। धरती पर सूर्यवंशी राजा मनु की पुत्री ‘इला’ को ‘बुध’ से प्रेम हो गया। दोनों के मिलन से ‘पुरुरव’ नामक पुत्र का जन्म हुआ। बाद में ‘पुरुरव’ चक्रवर्ती सम्राट हुए। राजा पुरुरव और स्वर्गलोक की अप्सरा ‘उर्वशी’ ने मिलकर ‘आयु’ को जन्म दिया. राजा आयु चौथे चंद्रवंशी सम्राट थे..राजा आयु ने राजा ‘सर्वभानु’ की पुत्री ‘प्रभा’ से विवाह किया। इस विवाह से पांच पुत्र हुए, जिनके नाम है -नहुष, क्षत्रवर्ध, रंभ, रजी और अदेना। बाद में युवराज ‘नहुष’ सिंहासन के उत्तराधिकारी बने। राजा नहुष ने ‘व्रजा’ से विवाह किया। रानी ‘व्रजा’ से छह पुत्रों(यति, ययाति, समति, अयति, वियति और कीर्ति) और एक पुत्री ‘रूचि’ को जन्म दिया। बाद में राजकुमारी रूचि का विवाह ‘च्यवन’ ऋषि और ‘सुकन्या’ के पुत्र ‘अपनवन’ से हुआ। राजा नहुष के ज्येष्ठ पुत्र ‘यति’ धार्मिक प्रवित्ति के थे, उनकी राज-पाठ में तनिक भी रूचि नहीं थी। उनके स्थान पर ‘ययाति’ राजा हुए। महाराज ‘ययाति’ ने दो विवाह किये। उनकी पहली पत्नी असुरों के गुरु शुक्राचार्य की पुत्री ‘देवयानी’ थी। दूसरी पत्नी विवाह में देवयानी के साथ आयी उनकी सहेली ‘शर्मिस्था’ थी। ‘देवयानी’ ने ‘यदु’ और ‘तुर्वसु’ को जन्म दिया तथा ‘शर्मिस्था’ ने ‘द्रुहू’ ‘अनु’ और ‘पुरु’ को जन्म दिया। ऋग वेद में इन पांचो (यदु, तुर्वसु, द्रुहू, अनु और पुरु) को ही ‘पांचजन्य’ कहा गया है। ‘यदु’ का उल्लेख ऋग वेद में है इसीलिए ‘यदुवंशियों’ को ‘वैदिक क्षत्रिय’ भी कहा जाता है। बाद में राजा ययाति ने अपने सामराज्य को अपने पांचो पुत्रों में विभक्त किया और सारे भौतिक सुखों को त्याग कर खुद वनवास को चले गये। ऋषि ‘बुध’ से राजा ‘ययाति’ तक सभी चंद्रवंशी/सोमवंशी हुए। ‘यदु’ को छोड़कर सभी ने सोमवंशी वंश को आगे बढाया। यदु के चार पुत्र हुए, उनके नाम है- सहश्त्रजीत, क्रोष्ट, नल और रिपु। राजा ‘यदु’ ने ‘यदुवंश’ की स्थापना की और अपने पुत्रो को ‘यदुवंश’ को आगे बढ़ाने का आदेश दिया। कालांतर में यदुवंश में ही भगवान् ‘श्रीकृष्ण’ का जन्म हुआ। ‘श्रीकृष्ण’ को ‘यादव’ भी कहा गया, जिसका उल्लेख ‘श्रीमद भागवत गीता में भी है। सखेति मत्वा प्रसभं यदुक्तं हे कृष्ण हे यादव हे सखेति। अजानता महिमानं तवेदं मया प्रमादात्प्रणयेन वापि॥११- ४१॥ (गीता-अध्याय 11, श्लोक 41) गीता के उपरोक्त श्लोक में अर्जुन श्रीकृष्ण को ‘यादव’ नाम से संबोधित करते है। ‘मनु’ द्वारा कृत ‘वर्ण-व्यवस्था’ में ‘यदुवंशी’ अथवा ‘यादव’ को ‘क्षत्रिय’ वर्ण माना गया है। एवं ‘ऋग वेद’ के अनुसार ‘यादव’ ‘वैदिक क्षत्रिय’ है। चूँकि ‘सोम’ ‘अत्री’ ऋषि के पुत्र थे इसलिए ‘यादवों’ का प्रधान गोत्र ‘अत्री’ गोत्र है। कालांतर में कई उपगोत्रों की भी उतपत्ति हुयी। तथा क्षेत्रिय आधार पर भी कुछ गोत्रों का गठन हुआ। परन्तु यह तथ्य स्पष्ट है कि ‘यादवों’ का प्रधान गोत्र ‘अत्री’ गोत्र ही है।
== जातियाँ, उपजातियाँ व कुल गोत्र ==
'यादव' शब्द अनेक पारंपरिक उपजातियों के समूह से बना है, जैसे कि ' हिन्दी भाषी क्षेत्र' के 'अहीर', महाराष्ट्र के 'गवली',<ref name=Jaffrelot2003p187>{{cite book |title=India's silent revolution: the rise of the lower castes in North India |page=187 |first=Christophe |last=Jaffrelot |publisher=C. Hurst & Co. |location=London |year=2003 |isbn=978-1-85065-670-8 |url=http://books.google.com/books?id=OAkW94DtUMAC |accessdate=2011-08-16}}</ref> आंध्र प्रदेश व कर्नाटक के 'गोल्ला', तथा तमिलनाडू के 'कोनार' तथा केरल के 'मनियार'। हिन्दी भाषी क्षेत्रों में अहीर,ग्वाला (गवली) तथा यादव शब्द प्रायः एक दूसरे के पर्याय माने जाते हैं ।.<ref name="Bayly2001-p383">{{cite book|author=Susan Bayly|title=Caste, Society and Politics in India from the Eighteenth Century to the Modern Age|url=http://books.google.com/books?id=HbAjKR_iHogC&pg=PA383|accessdate=7 October 2011|year=2001|publisher=Cambridge University Press|isbn=978-0-521-79842-6|page=383}} Quote: '''Ahir''': Caste title of North Indian non-elite 'peasant'-pastoralists, known also as Yadav."</ref><ref name="Swartzberg1979">{{cite book|last=Swartzberg|first=Leon|title=The north Indian peasant goes to market|url=http://books.google.com/books?id=nCUuAAAAMAAJ&pg=PA11|accessdate=7 October 2011|year=1979|publisher=Motilal Banarsidass|location=Delhi|page=11}} Quote: "As far back as is known, the Yadava were called Gowalla (or one of its variants, Goalla, Goyalla, Gopa, Goala), a name derived from Hindi ''gai'' or ''go'', which means "cow" and ''walla'' which is roughly translated as 'he who does'."</ref> कुछ वर्तमान राजपूत वंश भी स्वयं के यादव होने का दावा करते हैं,<ref name="Pate1l">{{cite book | url=https://books.google.co.in/books?id=f2EcC9ok4OEC&pg=PT65&dq=%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A4%B5+%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%AA%E0%A5%82%E0%A4%A4&hl=en&sa=X&ved=0CBwQ6AEwAGoVChMIm53eqNSmxwIVxgmOCh2-9gJW#v=onepage&q=%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A4%B5%20%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%AA%E0%A5%82%E0%A4%A4&f=false | title=Vir Vinod (4 Pts.) | publisher=Motilal Banarsidass Publishe | author=Śyāmaladāsa | year=1886 | pages= एशिया 46 | isbn=9788120801912}}</ref> तथा वर्तमान यादव भी स्वयं को क्षत्रिय मानते है।<ref name="Patel">{{cite book | url=https://books.google.co.in/books?id=58G8PPAN48cC&pg=PA33&dq=Ahir+sub+caste&hl=en&sa=X&ei=JnLsVLCOFdaJuAS9xoHwBw&ved=0CB4Q6AEwAA#v=onepage&q=Ahir%20sub%20caste&f=false | title=Awareness in Weaker Section: Perspective Development and Prospects | publisher=M.D. Publications Pvt. Ltd | author=Mahendra Lal Patel | year=1997 | pages=33 | isbn=9788175330290}}</ref>
"https://hi.wikipedia.org/wiki/यादव" से प्राप्त