"पृथ्वीराज रासो": अवतरणों में अंतर

छो बॉट: पुनर्प्रेषण ठीक कर रहा है
व्याकरण सुधार
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
पंक्ति 33:
यहाँ पर 'पृथ्वीराजरासो' की कथा समाप्त होती है।
 
'रासो' की ऐतिहासिकता को लेकर, विशेष रूप से जब से प्रसिद्ध विद्वान्‌ और पुरातत्वज्ञ व्यूलर को 'पृथ्वीराज विजय' नामक संस्कृत काव्य की खंडित प्रति मिली, बड़ा विवाद चला है। यह विवाद उसके बृहत्‌ पाठ को लेकर चला है, किंतु रचना का लघुतम पाठ तक ऐसा नहीं है जो अनैतिहासिकता से सर्वथा मुक्त हो।== उदाहरणार्थ जयचंद के द्वारा डाहल के कर्ण को दो बार पराजित और बंदी किए जाने का उल्लेख मिलता है, किंतु वह जयचंद से लगभग सवा सौ वर्ष पूर्व हुआ था। जयचंद से हुए कहे गए पृथ्वीराज के युद्ध के संबंध में कोई निश्चित ऐतिहासिका समर्थन अभी तक नहीं प्राप्त हो सका है। पृथ्वीराज अजमेर का शासक था; दिल्ली का शासक कोई गोविंदराय या खांडेराय था जो पृथ्वीराज की ओर से दोनों युद्धों से लड़ा था ओर दूसरे युद्ध में मारा गया था। मुसलमान इतिहासकारों के अनुसार गोरी से पृथ्वीराज के केवल दो युद्ध हुए थे, 'रासो' के अनुसार कम से कम चार युत्र हुए थे¾ जिनमें से तीन में शहाबुद्दीन पराजित हुआ था और बंदी किया गया था। मुसलमान इतिहासकारों के अनुसार पृथ्वीराज पराजित होने के अनंतर सरस्वती के निकट पकड़ा गया और मारा गया था, जबकि 'रासो' के अनुसार वह श्हाबुद्दीन को गजनी में उपर्युक्त प्रकार से मारकर मरा था। ये अनैतिहासिक उल्लेख और विवरण 'पृथ्वीराजरासो' के समस्त रूपों में पाए जाते हैं और इनमें से अधिकरतर उसके ताने बाने के हैं, इसलिये उसके किसी भी पुनर्निमित रूप में भी पाए जाण्‌एँगे। इसलिये यह मानना ही पड़ेगा कि उसका कोई भी रूप पृथ्वीराज की समकालीन रचना नहीं हो सकता है।
== ऐतिहासिकता ==
'रासो' की ऐतिहासिकता को लेकर, विशेष रूप से जब से प्रसिद्ध विद्वान्‌ और पुरातत्वज्ञ व्यूलर को 'पृथ्वीराज विजय' नामक संस्कृत काव्य की खंडित प्रति मिली, बड़ा विवाद चला है। यह विवाद उसके बृहत्‌ पाठ को लेकर चला है, किंतु रचना का लघुतम पाठ तक ऐसा नहीं है जो अनैतिहासिकता से सर्वथा मुक्त हो। उदाहरणार्थ जयचंद के द्वारा डाहल के कर्ण को दो बार पराजित और बंदी किए जाने का उल्लेख मिलता है, किंतु वह जयचंद से लगभग सवा सौ वर्ष पूर्व हुआ था। जयचंद से हुए कहे गए पृथ्वीराज के युद्ध के संबंध में कोई निश्चित ऐतिहासिका समर्थन अभी तक नहीं प्राप्त हो सका है। पृथ्वीराज अजमेर का शासक था; दिल्ली का शासक कोई गोविंदराय या खांडेराय था जो पृथ्वीराज की ओर से दोनों युद्धों से लड़ा था ओर दूसरे युद्ध में मारा गया था। मुसलमान इतिहासकारों के अनुसार गोरी से पृथ्वीराज के केवल दो युद्ध हुए थे, 'रासो' के अनुसार कम से कम चार युत्र हुए थे¾ जिनमें से तीन में शहाबुद्दीन पराजित हुआ था और बंदी किया गया था। मुसलमान इतिहासकारों के अनुसार पृथ्वीराज पराजित होने के अनंतर सरस्वती के निकट पकड़ा गया और मारा गया था, जबकि 'रासो' के अनुसार वह श्हाबुद्दीन को गजनी में उपर्युक्त प्रकार से मारकर मरा था। ये अनैतिहासिक उल्लेख और विवरण 'पृथ्वीराजरासो' के समस्त रूपों में पाए जाते हैं और इनमें से अधिकरतर उसके ताने बाने के हैं, इसलिये उसके किसी भी पुनर्निमित रूप में भी पाए जाण्‌एँगे। इसलिये यह मानना ही पड़ेगा कि उसका कोई भी रूप पृथ्वीराज की समकालीन रचना नहीं हो सकता है।
 
प्रश्न यह है कि 'रासो' किस समय की रचना मानी जा सकता है। कुछ समय हुआ, प्रसिद्ध अन्वेषी विद्वान्‌ [[मुनि जिनविजय]] को जैन भांडरों में दो 'जैन प्रबंध' संग्रहों की एक एक प्रति मिली, जिनमें 'पृथ्वीराज प्रबंध' और 'जयचंद प्रबंध' सकलित थे। इन प्रबंधों में जो छंद उद्धृत थे उनमें से कुछ 'पृथ्वीराज रासो' में भी मिले, यद्यपि इन उद्धरणों की भाषा में 'रासो' की भाषा की अपेक्षा प्राचीनता अधिक सुरक्षित थी। दोनों प्रतियों में 'पृथ्वीराज प्रबंध' प्राय: अभिन्न था और एक प्रबंधसंग्रह की प्रति सं. 1528 की थी। इनसे मुनि जी ने यह परिणाम निकाला कि चंद अवश्य ही पृथ्वीराज का समकालीन और उसका राजकवि था। किंतु इतने से ही यह परिणाम निकालना तर्कसंगत न होगा। इन तथ्यों के आधार पर हम इतना ही कह सकते हैं कि चंद को रचना का कोई न कोई रूप संवत् 1528 के पहले प्राप्त था, जिससे लेकर वे छंद उक्त 'पृथ्वीराजप्रबंध' में उद्धृत किए गए। वह रूप सं. 1528 के कितने पूर्व निर्मित हुआ होगा इसके संबंध में कुछ अनुमान से ही कहा जा सकता है, जिसके लिये निम्नलिखित आधार लिए जा सकते हैं :